Dhruvasana, Bhagirathasana Method and Benefits In Hindi

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ध्रुव आसन/भागीरथ आसन

शब्दार्थ: भक्त ध्रुव एवं भागीरथ ऋषि ने इसी आसन से साधना की थी। संभवतः तब से इस आसन का नाम ध्रुव आसन या भागीरथ आसन पड़ा।
इसे दो प्रकार से किया जा सकता है।

प्रथम विधि

समावस्था में खड़े हो जाएँ। इसके बाद दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर बाएँ पैर के जंघा मूल पर पंजे को स्थापित करें। अब दोनों हाथों को वक्षःस्थल के सामने नमस्कार की मुद्रा बना लें। बाएँ पैर को द्रढ़तापूर्वक ज़मीन पर स्थिर रखकर संतुलन बनाएँ। यही क्रम पैर बदलकर करें। श्वासक्रम सामान्य रखें।

द्वितीय विधि

समावस्था में खड़े हो जाएँ। उपरोक्त विधि अनुसार दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर पंजे को बाएँ पैर की जंघा मूल पर स्थापित कर दें। फिर बाएँ हाथ की अंजलि बनाकर नाभि के समीप रखें। अब कुंभक करते हुए दाहिने हाथ को सीधे ऊपर की ओर उठाएँ एवं अनुकूलतानुसार रुकें। वापस मूल अवस्था में आएँ और पैर बदलकर यही क्रिया करें।
श्वासक्रम: पूर्ण-स्थिति में सामान्य श्वास-प्रश्वास करें।
समय: अनुकूलतानुसार।

लाभ

  • पैरों में दृढ़ता आती है। पैरों का काँपना बंद होता है।
  • आलस समाप्त होता है। जीवन में संतुलन लाता है।
  • मूलाधार चक्र उत्थित होता है। नई चेतना का प्रादुर्भाव होता है।
  • साधना सिद्धि में सहायक है।

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