मूत्रमेह का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Diabetes Insipidus ]

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इस बहुमूत्र के रोग में मूत्र में चीनी (शुगर) नहीं रहती, किंतु मूत्र कई बार बहुत अधिक परिमाण में होता है। मूत्र का आपेक्षिक गुरुत्व स्वाभाविक की अपेक्षा कम होता है। साधारणतः दस से पन्द्रह वर्ष की आयु के भीतर और स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों को ही यह रोग अधिक होता है। इस रोग की उत्पत्ति के कारण हैं-(1) किसी-किसी व्यक्ति के वंश में तीन-चार पुश्त तक इस रोग का आक्रमण होता रहता है; (2) स्नायुमंडल पर प्रबल झटका, जैसे डर जाना, मर्माहित हो जाना, उधिक मदिरा का सेवन करना, मस्तिष्क में चोट आदि लगना; (3) किसी नए रोग में या केसी कठिन प्रकार के ज्वर की आरोग्य-अवस्था में इस रोग का होना; (4) मस्तिष्वः वा ट्यूमर, स्नायु का पक्षाघात आदि; (5) पेट में ट्यूमर व अल्सर आदि। इस रोग का वास्तविक या प्रकृत कारण का आज तक निर्णय नहीं हो सका है, किंतु अधिकांश चिकित्सकों के मत से स्नायु की गड़बड़ी ही इसका मुख्य कारण है। इसमें शरीर के किसी अंग आदि में कोई परिवर्तन नहीं होता।

इस रोग में मूत्र जल्दी-जल्दी और परिमाण में बहुत अधिक होता है और यह पानी की तरह निर्मल या वर्णशून्य होता है। मूत्र में युरिया नामक पदार्थ का भाग अधिक रहता है। प्यास मूत्र के परिमाण के अनुसार बढ़ जाती है, जिह्वा से लार कम निकलती है, जिह्म लाल और चमकीली दिखाई देती है। मुंह हमेशा सूखा रहता है, शरीर का ताप बहुत घट जाता है। कठिन प्रकार के रोग में पाचन-शक्ति की कमी, सिरदर्द, शारीरिक और मानसिक दुर्बलता, नाना प्रकार के स्नायविक रोग हो जाना तथा फेफड़े और नेत्र-रोग भी संभावित हो जाते हैं। इस रोग से आराम होने में बहुत देर लगती है। स्वास्थ्य के लिए उत्तम स्वास्थ्यकर स्थान में रहना आवश्यक है। नींबू का रस पानी में मिलाकर पीना इस रोग में अधिक लाभदायक है।

नैट्रम म्यूर 6x — बहुत अधिक परिमाण में बार-बार मूत्र (पेशाब) होना, प्यास की अधिकता, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, रक्तहीनता, शीर्णता, छींकने में मूत्र निकल जाना, कलेजा बहुत धड़कना और उससे सारा शरीर कांपना, शरीर पर उल्लेद निकलना और उसमें बहुत खुजलाहट का होना।

सिला 30 — मूत्र का परिमाण बहुत अधिक होना, कभी-कभी मूत्र का परिमाण और वेग इतना अधिक होना कि जरा देर हो जाए, तो कपड़ों में ही मूत्र निकल जाए।

एसिड फाँस 30 — स्नायु-दौर्बल्य; मूत्र गाढ़ा, दूध की तरह सफेद और अधिक मात्रा में होना।

हेलोनियस θ — बहुत अधिक परिमाण में स्वच्छ जल जैसा मूत्र, मूत्र का आपेक्षिक गुरुत्व कम, बहुत कमजोरी, दिनोंदिन कृश होते जाना, किडनी की जगह सदैव एक प्रकार का दर्द रहना, सदा सोने को दिल चाहना। इस औषधि के मदर टिंक्चर को 4-5 बूंद की मात्रा में दिन में 3-4 बार देनी चाहिए।

सिकेलि कोर 30 — शरीर के भीतर गर्मी और बाहर सर्दी मालूम होना, शरीर में जलन, जलन के कारण शरीर पर एक क्षण भी वस्त्र सहन न होना, बहुत बेचैनी, प्यास, खट्टा पानी पीने की प्रबल इच्छा का होना।

एनन्थिरम 200 — कमजोरी और प्यास के साथ दिन-रात में बहुत अधिक परिमाण में साफ मूत्र होता हो, तो यह औषधि बहुत लाभ पहुंचाती है।

अल्फाल्फा 8 — शर्कराविहीन बहुमूत्र, आपेक्षिक गुरुत्व कम और बहुत बार साफ पेशाब होता हो, प्यास कभी रहती हो और कभी न रहती हो, तो इस मदर-टिंक्चर की 4-5 बूंद पानी में नित्य 3-4 बार प्रयोग करें।

उपर्युक्त औषधियों के अलावा इग्नेशिया, बैलेरियाना, जिंक-वैलेरियाना, पल्सेटिला, एपिस, रस एरोमैटिक, कॉस्टिकम, टेरिबिंथ, मर्क पिरेनिस, लैक डिफ्लोर, म्यूरेक्स, टैरक्सेकम, कैलि नाइटर आदि औषधियां भी इस रोग में प्रयुक्त की जाती हैं।

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