कान के विविध रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Ear Disease ]

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कान के मुख्यतः तीन भाग माने जाते हैं-(1) कान का बाहरी भाग जो सबको दिखाई देता है, (2) कान का मध्ये भाग जो कान के छिद्र से होता हुआ कान के पटल तकं जाता है और जिससे शब्द सुनाई देता है, (3) कान के पटल से आगे जहां कान की नलीं गले में खुलती है, वह कान का अंतर्भाग है। कान के बाहरी भाग में सूजन आ जाती है, एग्जीमा हो जाता है; कान के मध्य भाग में ठंड आदि लगने या अन्य किसी कारण से सूजन, मवाद आदि की शिकायत हो जाती है।

कान बहने लगता है, पक जाता है, कान का पर्दा फट जाने से व्यक्ति बहरा हो जाता है, पर्दे के आगे का अंतर्भाग “युस्टेकियन-ट्यूब” कहलाती है। जुकाम आदि का शोथ इस ट्यूब में बढ़ जाने से इसकी सूजन से यह टूयूब बंद हो जाया करती है, जिससे कम सुनाई देने लगता है। कभी-कभी कान में आवाजें “सायं-सायं” करने लगती हैं। यदि औषधि जल्दी-जल्दी देनी हो और निम्न शक्ति, कुछ समय छोड़कर देनी हो, तो उच्च शक्ति दी जा सकती है।

कान के बाहरी भाग के रोग

एपिस 3x — यदि कान के बाहरी भाग का शोथ हो, तो यह औषधि हर 2 घंटे बाद दें।

कैली बाईक्रोम 3 — कान के बाहरी भाग में कान के छिद्र का सूज जाना, उसमें से सूतदार पस का निकलना आदि लक्षणों में उपयोगी है। हरेक 2 घंटे बाद दें।।

बेलाडोना 3 — कान के बाहरी भाग की त्वचा की सूजन के साथ ज्वर भी हो, तो यह औषधि 2-2 घंटे में दें।

रंस-टॉक्स 6 — कान के बाहरी भाग पर छाले, फुसियां हों, तो यह उपयोगी है।

कान के बाहरी भाग का तरुण एग्जीमा

रस-टॉक्स 3 — कान के बाहरी भाग में तरुण (नया) एग्जीमा रोग में यह औषधि उपयोगी है।

क्रोटन टिग 3 — यदि रस-टॉक्स से दो-तीन दिन में लाभ दिखाई न दे, तो इस औषधि को देना चाहिए।

मेजेरियम 1 — यदि रस-टॉक्स तथा क्रोटन टिग इन दोनों से कोई लाभ न हो, तो इस औषष्टि को दें।

कान के बाहरी भाग का जीर्ण एग्जीमा

गन पाउडर 3x — कान के बाहरी भाग के पुराने एग्जीमा में इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। 6 ग्रेन प्रति 8 घंटे में दें।

गैफाइटिस 6 — कान के पीछे के हिस्से में यदि एग्जीमा हो जाए, तो यह औषधि अत्यंत उपयोगी है।

बोविस्टा 6 — इस औषधि का त्वचा पर विशेष प्रभाव है, एग्जीमा जैसे दानों में उपयोगी है; सारे शरीर पर भी दाने हो जाते हैं, उसमें भी लाभकारी है। प्रातःकाल उठने पर पित्ती उछल जाती है और स्नान करने से यह और बढ़ जाती है। बोविस्टा के बाद आर्स 3 प्रति 4 घंटे में देनी चाहिए।

कान के बाहरी छिद्र की सूजन

सल्फर 3 — यदि कान के छिद्र में पीब भरे छाले बनते रहते हों, तो प्रति 8 घंटे में इसका प्रयोग करें।

कैलि बाईक़ाम 3 — यदि कान का छिद्र सूज जाए और उसमें से सूतदार पस निकलने लगे, तो यह औषधि लाभदायक सिद्ध होगी।

ग्रैफाइटिस 6 — यदि कान के छिद्र की सूजन पुरानी हो जाए, कान की नाली बंद हो जाए, तो इस औषधि का प्रयोग करें। इसके साथ ही 1 औंस पानी में 1 ग्रेन सिल्वर नाइट्रेड डालकर सूजी हुई जगह पर मलें, लाभ शीघ्र होगा।

कैलि म्यूर 3x — यदि कान के छिद्र में से साधारणतः पस निकलने लगे, तो यह औषधि अत्यंत उपयोगी है।

एकोनाइट 3 — कान के सूज जाने की पीड़ा और दर्द में हरेक घंटे के बाद यह औषधि देने का उपक्रम करना चाहिए। जब दर्द कम हो जाए, तब समय के अंतर को बढ़ाया जा सकता है। इससे कान का भयंकर दर्द भी काफूर हो जाता है।

बेलाडोना 3 — यदि एकोनाइट से चार-पांच घंटे में भी आराम न हो, तो फिर यह औषधि अवश्य ही दी जानी चाहिए। इससे निश्चित लाभ हो जाता है, किंतु पहले देनी एकोनाइट ही चाहिए।

मर्कसोल 6 — पहले बेलाडोना देने के बाद कुछ मात्राएं इसकी देनी चाहिए।

कान के मध्य भाग की सूजन

प्लाण्टेगो (मूल-अर्क) — इस औषधि को सम-भाग पानी में डालकर हर 10 मिनट के बाद इसकी कुछ बूंदे कान में डालें और कान के छिद्र पर रुई की फुरेरी रख दें।

पल्सेटिला 3 — कान के भीतर ऐसा भयंकर दर्द मानों कोई चीज भीतर से बाहर आने के लिए जोर लगा रही है; बाहर का कान भी सूज जाए, तब यह औषधि उपयोगी है।

एकोनाइट 3 — यदि ठंड लगने से कान के भीतर (मध्य भाग में) दर्द होने लगे, तो आरंभ में इस औषधि का प्रयोग करें।

कैलि म्यूर 3x — यदि कान से पस निकलने की शिकायत पुरानी हो जाए, तब इस औषधि का प्रयोग करें।

कान के मध्य भाग से स्राव बहना

हिपर सल्फर 6 — यदि कान से निकले स्राव से खट्टी बू आती हो, रोगी अधिक फंसी-फोड़ों से ग्रस्त हो, तो यह औषधि उपयोगी है।

सोरिनम 30 — कान के स्राव में इसकी 1 मात्रा नित्य 8-10 दिन तक देते रहें।

मर्क सोल 6 — यदि कान के भीतर से पस का स्राव हो रहा हो, तो इस औषधि का प्रयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए।

टॅल्यूरियम 6 — यदि कान के भीतर से मछली की बू वाला पनीला स्राव जो लगने वाला हो, वह बह रहा हो, तो यह लाभदायक है।

कैलि म्यूर 3x, 3 — इन दोनों शक्तियों में से किसी भी एक औषधि-शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है। यह कान के बहने में लाभ करती है।

बोरेक्स 3 — कान से स्राव बहता हो, तो बोरैक्स 3 देने के साथ सोते समय 6 ग्रेन बोरिक एसिड को बारीक करके कान में फेंक दें या बोरिक एसिड, प्लाण्टेगो तथा शुगर ऑफ मिल्क को समभाग लेकर और खूब महीन पीसकर, जब यह सूख जाए, तब कान में फेंक दें। इससे लाभ शीघ्र होगा।

हाइड्रेस्टिस 1 — प्रत्येक रात्रि में इसके मूल-अर्क की 8 बूंदे आधा औंस ग्लिसरीन में घोलकर उसकी कुछ बूंदे कान में डालते रहें। इसका कान के मध्य भाग से स्राव बहने में प्रयोग किया जाता है। यह बहुत लाभदायक औषधि है।

कान का ट्यूमर

कैल्केरिया कार्ब 6 — यदि रोगी को ग्लैंड्स के ट्यूमर हों या शरीर में यक्ष्मा रोग की प्रवृत्ति के लक्षण हों, तब यह औषधि निम्न-शक्ति में देते रहना चाहिए तथा समय-समय पर 200 शक्ति में देना भी लाभकारी रहता है।

थूजा 30 — यदि रोगी में कैल्केरिया कार्ब के लक्षण उजागर न हों और किसी अन्य प्रकार का रोग हो, अर्थात जिस औषधि के लक्षण हों, उसके साथ इसका मूल-अर्क प्रत्येक रात्रि में छुआते भर रहें, इसी से लाभ हो जाता है।

नाइट्रिक एसिड 6 — यदि उक्त प्रकार से लाभ न हो, तब इसका प्रयोग करें।

सँग्विनेरिया 3, 30 — जब किसी औषधि का कोई प्रभाव न पड़ रहा हो, तब इसका प्रयोग कर देखना चाहिए।

कान में कर्णनाद, सांय सांय अथवा सनसनाहट

कैलि आयोडाइड 30 — यदि कान में सांय-सांय होती हो, जिस कारण रोगी बहुत व्याकुल रहता हो, तो इसकी 30 शक्ति की एक मात्रा नित्य देने से रोगी आरोग्य हो जाता है।

पाइलोकारपीन 2x — यदि उक्त औषधि से कोई लाभ होता न दिखे, तो इसे दें।

हाइडेस्टिस 3 — यदि यह रोग मुख को कान से मिलाने वाली यूस्टैकियन ट्यूब की हाल ही की शोथ से उत्पन्न हुआ हो, तो इस औषधि को देने से लाभ होता है। इसके स्थान पर मर्क सोल 6 भी दी जा सकती है।

ग्रैफाइटिस 3, 6 — कान में गाड़ी की गड़गड़ाहट अथवा मशीनों के शोर में, उच्च स्वर में अधिक अच्छा सुनाई पड़ता है और बिना किसी शोर अथवा गड़गड़ाहट के सुनाई नहीं पड़ता; तब इस औषधि से लाभ होता है।

नैट्रम सैलिसिलिकम 3, 3x — कर्णनाद के साथ सिर में चक्कर आना। इसका नाद (शब्द) ग्रैफाइटिस की तरह उच्च शब्द नहीं होता, मध्यम नाद कान में सुनाई पड़ता रहता है, इसके साथ-साथ चायना 6 भी देते रहना चाहिए।

थियोसिनेमाइन 1x, 2x — कान में आवाज आने में यह औषधि लगातार देते रहने से लाभ होता है। इसके साथ चायना का प्रयोग करते रहना चाहिए। कई होम्योपैथ रोगी को चिनिनम सल्फ लेने का परामर्श देते हैं।

सुनाई न पड़ना, बहरापन

कैल्केरिया कार्ब 30 — यह बच्चों के बहरेपन में लाभ करती है।

मैग्नेशिया कार्ब 200 — अधेड़ आयु या वृद्ध लोगों के बहरेपन में उपयोगी है।

वेरबैस्कम 1 — यदि ऐसा लगे कि कान बंद है, तब दें। मैग्नम 6 भी दे सकते हैं।

मर्क सोल 3, 6 — यदि युस्टेकियन ट्यूब के बंद हो जाने के कारण बहरापन हो, तब इसे दें।

हाइड्रेस्टिस 1 — यदि मर्क सोल से सप्ताह भर में भी लाभ दिखाई न दे, तब इसे देना उपयोगी होता है।

मेजेरियम 1 — यदि मर्क सोल के बाद हाइड्रेस्टिस से भी लाभ न हो, तब इसका प्रयोग करें।

कान से मवाद निकलना

पल्सेटिला 3, 30 — कान से मवाद निकलने के हाल ही के रोग में इस औषधि से लाभ होता है। हर प्रकार के स्राव में इस औषधि का प्राकृतिक लक्षण है-पीला या पीला हरा, गाढ़ा-सा स्राव जो लगने वाला नहीं होता, जिस जगह बहता है, उसे कुरेदता नहीं है।

सल्फर 30 — यदि पल्सेटिला से लाभ न हो, तो कान के स्राव में इससे लाभ हो जाता है।

हिपर सल्फर 30 — यदि मवाद से खट्टी बू आती है, तब दें।

एकोनाइट 30 — सर्दी आदि लग जाने पर हाल ही के रोग में इससे लाभ होता है।

बेलाडोना 30 — यदि कान से मवाद निकलने के साथ सिरदर्द अथवा ज्वर हो, तब उपयोगी है।

जीर्ण रोग में

टेल्यूरियम 6 — मध्य कान से स्राव बहता है, कान में लगता है, पतला होता है, बदबूदार होता है; कान बहने का जीर्ण (पुराना) रोग इस औषधि की 6 शक्ति से ठीक हो जाता है। इसमें दूसरी कोई और शक्ति काम नहीं करती।

पल्सेटिला 30 — जैसे हाल के कान से मवाद में यह उपयोगी है, वैसे ही यह पुराने रोग में भी उपयोगी है; लक्षण वही के वही हैं। यदि खसरे के बाद कान से मवाद आने लगे, तब भी यही औषधि देनी चाहिए।

ग्रैफाइटिस 30 — कान से निकलने वाला स्राव (मवाद) चिपचिपा, गोंद-सरीखा, शहद की तरह होता है। यह त्वचा को जहां छूता है, वहां छाले पड़ जाते हैं। ग्रैफाइटिस से इसमें बहुत लाभ होता है।

मर्क सोल 30, 6 — मध्य कान से पतला या खूब गाढ़ा, लगने वाला, पीला या रक्त-मिश्रित स्राव निकलता है। प्रायः सिफिलिस के रोगियों में, जिनका पारे की औषधियों से उपचार हो चुका होता है, उनके लिए यह औषधि विशेष लाभप्रद है।

सोरिनम 200 — कान के पुराने रोग में किसी औषधि से जब कोई लाभ होता दिखाई न दें, तब इसका प्रयोग करना चाहिए।

सल्फर, कैल्केरिया, लाइकोपोडियम, साइलीशिया 30 — यदि रोग जीर्ण हो गया हो और अन्य औषधियों से लाभ न हुआ हो, तो उपर्युक्त चारों औषधियों को समय-समय का अंतर देकर देना चाहिए। सल्फर, कैल्केरिया कार्ब का लिंक है, जिसे कठिन समय में देने की आवश्यकता पड़ जाती है।

कैलि बाईक्रोम 3x, 30 — यदि बाएं कान में तेज चुभन का-सा दर्द हो और दाएं कान से सूतदार, गाढ़ा, चिपचिपा पीला स्राव जो बेहद बदबूदार हो, निकलता हो, तब इसे दें।

हिपर सल्फर 30 — यदि कान के पटह (ड्रम या टाइमपेनम) में छिद्र हो गया तो अथवा कान में घाव होने पर उससे मवाद जाता हो, तब यह अच्छा काम करती है।

साइलीशिया 30 — यदि कान की हड्डी के क्षय के कारण कान से मवाद जाता हो, तब यह उपयोगी है।

ऑरम मेट 30 — यदि कान के पटह का सर्वथा नाश हो गया हो और कान की अस्थियों के क्षय से मवाद बहता हो, कान का छिद्र पस से भरा रहता हो, इसका कारण उपदंश-रोग या पारे की औषधियों का अधिक सेवन हो, तब उपयोगी है।

श्रवण शक्ति की कमी (Hearing Loss)

सर्दी लगना, कान का प्रदाह, कान में मैल होना या पीब होना, स्नायविक दुर्बलता आदि कारणों से कान की सुनने की शक्ति क्षीण हो जाती है, इसे ही “श्रवण-शक्ति का हास” कहते हैं।

सर्दी के दिनों की सूखी ठंडी हवा लगने के कारण रोग होने पर एकोनाइट 3, कैमोमिला 6, पल्सेटिला 3 या मर्क 3; बरसात की तर हवा लगने के कारण यदि कम सुनाई पड़े, तो डुल्कामारा 6; कान में प्रदाह होने के कारण गुनगुनाहट की आवाज मालूम हो, तो बेलाडोना 3, कॉस्टिकम 6, साइलीशिया 6, सल्फर 30; कान में पीब या घाव अथवा पीब निकलना एकाएक बंद होकर सुनने की शक्ति कम पड़ जाए, तो हि, सल्फर 6, सल्फर 30, पल्सेटिला 6, सर्क 6, कैल्केरिया कार्ब 6; स्नायविक दुर्बलता के कारण कम सुनाई देने पर-फास्फोरिक एसिड 1X, 6, फास्फोरस 6, अधिक मात्रा में पारा या मर्करी का व्यवहार करने के कारण उत्पन्न हुई श्रवण-शक्ति की कमी में-नाइट्रिक एसिड 6, हिपर सल्फर 6, ऑरम मेट 3, 200; किवनाइन के अपव्यवहार के कारण सुनने की शक्ति कम हो जाने। पर-कैल्केरिया कार्ब 6; वृद्धों की श्रवण-शक्ति की कमी में-पेट्रोलियम 6, साइक्यूटी 3; मोह-ज्चर में एकदम बहरे हो जाने पर-आर्जन्ट नाई 6; बाल कटवाने के बाद या सिर में सर्दी लगकर सुनने की शक्ति घट गई हो, तो लिडम 6; नए चर्म-रोग के बाद या खसरा, चेचक होने अथवा पारे के अपव्यवहार के बाद सुनने की शक्ति घट जाए, तो-कार्बोवेज 3x, 200 देनी चाहिए।

कान में मैल (Earwax)

कान से तेल की तरह एक तरह का पदार्थ निकलता है और जमकर कड़ा हो जाता है, उसे “मैल” कहते हैं। कान साफ रखने के लिए बार-बार कान कुरेदने से अधिक मैल इकट्ठा हो जाता है। किसी-किसी के कान में मैल अधिक होता है, इस कारण से दर्द होता है। किसी के कान में मैल न होने पर भी मैल का आभास होता है।

मैल जमकर पीब या बदबू होने पर-कोनायम 3 या कार्बावेज 30; कान में कम सुनाई पड़ता है, यद्यपि कान में जरा-सा भी मैल नहीं होता, कान सूखा और कान का मैल भी सूखा और काला-लैकेसिस 6 यो म्यूरियेटिक एसिड 6 या गैफाइटिस 6, स्पंजिया 3x, सल्फर 30 देनी चाहिए। कान के मैल का रंग लाल हो, तो-कोनायम 6 लाभकारी है।

विशेष — तीन-चार दिन रात के समय बराबर कान में कुछ गरम तेल डालने और कान धोने की पिचकारी से गुनगुने पानी से कान धोने पर मैले सहज में ही निकल जाता है। रात के समय में बादाम का तेल कुछ गरम करके उसकी दो-तीन बूंदे कान में डालने से कान कुरेदने की नौबत नहीं आती और नींद भी सुखकर आती है।

कान के रोग के कुछ उपसर्ग और औषधियां

एण्टिम क्रूड 3 — कान के पिछले भाग में तर दाने होने पर।

एसिड नाइट्रिक 6 — कुछ भी चबाने के समय एक तरह की आवाज होती है, जिससे सुनने की शक्ति घट जाती है।

इलैप्स 30 — बराबर बहरापन, विभिन्न प्रकार के वाद्यों की आवाज सुनना, सीढ़ी चढ़ते समय श्वास बंद होना।

कैलि बाइक्रोम 6 या हिपर सल्फर 6 — गले में घावों के साथ कानों में सुई गड़ने की तरह दर्द।

कैलेण्डुला 8 — स्नान करने या दूसरे रोगों के कारण बहरेपन में हर बार पानी में 5 बूंद डालकर सेवन करने से आशातीत लाभ होता है।

कैल्केरिया कार्ब 6 — पीब बहने और गांठे फूलने पर दें।

ग्रैफाइटिस 30, 200 — आरक्त-ज्वर के बाद कान बहने पर दें।

चायना 3 — कर्णनाद (कान में एक प्रकार की आवाज) के समय बहुत तरह की आवाजें सुनना।।

चेइरैन्थस-चेइरि θ — दो बूंद के हिसाब से हर बार सेवन करें, इससे बहरापन दूर होता है।

टेल्यूरियम 6, 200 — खुजली और सूजन के साथ कान के छिद्र में टनक की तरह दर्द; तीन-चार दिन बाद पानी की तरह बदबूदार स्राव निकलता है। यह स्राव जिस जगह लग जाता है, वहीं खुजली हो जाती है; कान नीली आभा लिए लाल, देखने में शोथ की तरह रहता है। डॉ० डनहम के अनुसार इसमें सुनने की शक्ति घट जाती है।

थूजा 30 — कान में अर्बुद होने और पीब, रक्त आदि निकलने पर नित्य एक बार सेवन करें।

बैराइटा कार्ब 6 — श्रवण-शक्ति की कमी, कान की चारों तरफ की ग्रंथियों का फूलना व दर्द।

बेलाडोना 6 — ऊंची आवाज बिल्कुल सहन न होना।

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