बार बार डकार आना होम्योपैथिक दवा [ Homeopathic Medicine For Excessive Burping ]

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डकार आना कोई साधारण बात नहीं है, इसका संबंध सीधा पेट से है, जब पेट में कोई गड़बड़ी होती है, तब इस प्रकार के उपद्रव शुरू हो जाते हैं। इसके अलावा बहुत से ऐसे रोग भी हैं, जिनके होने पर यह रोग हो जाता है।

नक्सवोमिका 3, 30 – डकार में कड़वा तथा खट्टा पानी आता है। खाने के बाद जी मिचलाता है, उल्टी करने की इच्छा होती है, पेट की वायु ऊपर की ओर आती है और छोटी पसलियों के नीचे से दबाव डालती है। इस औषधि के चरित्रगत लक्षण हैं – रोगी शीत-प्रकृति का होता है, ठण्ड सहन नहीं कर सकता, हरेक बात में मीन-मेख निकालने वाला (आर्सेनिक जैसा जो दीवार पर टंगी टेढ़ी पेंटिंग को तत्काल सीधा किए बिना चैन से नहीं रहता), बड़ा सावधान ओर ईर्ष्यालु, तनिक-सी बात पर क्रोधी हो जाने वाला, उत्तेजित हो जाना, नाराजगी, परेशान, दुखी । इसका रोगी प्रायः दुबला-पतला होता है और हर बात में जल्दबाजी करता है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 3, 30 – ऊंचे-ऊंचे, अधिक मात्रा में, कष्ट-रहित डकार, फीके डकार। हर बार भोजन के बाद ऊंचे-ऊंचे डकार मानों पेट फूट जाएगा। पहले तो डकार अड़ा रहता है, अंत में डकार की वायु बड़े वेग से, बड़ी जोरदार आवाज से डकार में ही निकल पड़ती है। इस औषधि के चरित्रगत लक्षण हैं मीठे या मिठाइयों के लिए लिप्सा, हर काम में जल्दी; किसी बात की अप्रत्याशित आशंका कि कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वह आ न जाए इस तरह के विचित्र भय; ऊंची जगह से, मकान की मुंडेर पर खड़े होने से भय इत्यादि । रोगी ऊष्ण-प्रकृति का होता है। इन लक्षणों के साथ यदि पेट का अफारा हो, डकार आएं, तो यह औषधि लाभकर सिद्ध होगी।

पल्सेटिला 30, 200 – संध्याकाल में पित्त के डकार आते हैं, ये कड़वे तथा खट्टे होते हैं, डकारों में पहले के खाये भोजन का स्वाद अनुभव होता है। इस औषधि का चरित्रगत लक्षण है। मुंह सूखा किंतु प्यास नहीं; रोगी को घी-चर्बी के पदार्थों के प्रति अरुचि होती है। वह मक्खन नहीं खा सकता । केक, पेस्ट्री, परांठा, रबड़ी, मलाई आदि खा ले तो पेट खराब हो जाता है। भूख नहीं, प्यास नहीं, कब्ज भी नहीं, सरल स्वभाव, बात कहने से झट मान जाता है, आसानी से रो पड़ता है, स्वभाव तथा लक्षण बदलते रहते हैं; ऊष्ण-प्रकृति का होता है, ठंडी तथा खुली वायु पसंद करता है, सबसे सहानुभूति चाहता है। हर काम को निश्चिंत होकर करता है और किसी भी काम में कभी जल्दबाजी नहीं करता।

कार्बो वेज 6, 30, 200 – रोगी का पेट इस हद तक गैस से भर जाता है कि पेट का ऊपर का हिस्सा फूल जाता है, पेट में जलन होती है, लगातार डकार आती रहती हैं, अपचन में डकारों के साथ पनीला आमाशय-रस मुंह में आ जाता है, अपच का रोगी होता है। रोगी घी-मक्खन, दूध पसंद नहीं करता, अर्जेन्ट नाइट्रिकम की तरह मीठा तथा नैट्रम म्यूर की तरह नमकीन पसंद करता है, उसे कॉफी की चाह अधिक होती है। इसका विशेष लक्षण यह है कि रोगी को डकारों से राहत मिलती है, यहां तक कि सिरदर्द, गठिया आदि का दर्द भी डकार आने से कम हो जाता है, रोगी हर समय डकारा करता है, जब देखो डकार । रोगी वायु का चाहने वाला होता है। इसका विलक्षण-लक्षण यह है कि रोगी अंदर से जलन महसूस करता है, किंतु बाहर त्वचा से उसे ठंड अनुभव होती है।

कार्बो एनीमैलिस 200 – पेट के ऑपरेशन के बाद जब पेट वायु से फूल जाता है, तब औषधि की 200 शक्ति की एक मात्रा देने से ही जो चमत्कारी लाभ होता है, वह देखते ही बनता है। डॉ. क्लार्क का कथन है कि कार्बोवेज देने के बाद डकारों में यह औषधि लाभ पहुंचाती है; यदि वायु पेट से उठकर गले की नली में आ फंसे, तो इस से वायु डकार में निकल जाती है। कार्बोवेज के बाद का ऐनीमैलिस दिया जा सकता है।

सल्फर 30 – भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े डकारों में आते हैं, जो अत्यंत खट्टे होते हैं, उसमें यह लाभकारी है।

चायना 30 – इसमें भी पेट में, केवल ऊपर के हिस्से में नहीं, समूचे पेट में वायु भर जाती है, डकारें आती हैं। पेट से कड़वा पानी ऊपर उठ आता है, किंतु इसके डकारों में रोगी को आराम नहीं मिलता, हिचकियां आती हैं, फलों का पाचन नहीं होता, फल खाने से कष्ट बढ़ जाता है।

ऐसाफेटिडा 3, 30 – ऊंची-ऊंची डकारें; वायु से नहीं निकलतीं, सब ऊपर को चढ़ती हैं; पेट से वायु (डकार) ऐसे निकलती है, जैसे बम छूट रहे हों, लगभग हर क्षण इतनी वायु कहां पैदा होती है यह समझा नहीं आता।

इपिकाक 6, 30 – जी मिचलाने के साथ तेज डकार आते हैं और मुंह से सेलाइवा निकलता है, वमन आ जाता है, वमन के साथ जीभ बिल्कुल साफ रहती है, वमन आने पर भी रोगी को राहत नहीं मिलती। उल्टी आने पर भी जीभ साफ रहना इसका विशेष लक्षण है।

कैमोमिला 30 – डकार आने से पेट-दर्द बढ़ जाता है जो स्वयं एक विचित्र-लक्षण है। साधारण रूप से डकार आने से पेट दर्द में आराम आना चाहिए, इसमें उल्टी बाते होती है। मुंह सेलाइवा से भर आता है, वायु पेट में अटक जाती है। जो लोग दर्द को आराम से सहन कर लेते हैं, उनके लिए यह औषधि उपयुक्त नहीं है। यदि निर्दिष्ट औषधियों से लाभ होता न दिखे, तो उनके मध्य में इसे देकर देखना चाहिए।

फास्फोरस 30, 200 – इसमें भी फोके डकार आते हैं, कभी-कभी खाये हुए पदार्थ की उछाली आ जाती है, पेट में जलन होती है, तेज प्यास होती है, किंतु रोगी ठंडा (बर्फीला) पानी पीना चाहता है या इससे उल्टा लक्षण भी हो सकता है। कुछ रोगी पानी को देखना तक नहीं चाहते, पानी के नाम से ही जी मिचलाने लगता है, स्नान करते हुए पानी को न देखे, इसलिए वह आंखें बंद कर लेता है। पानी पेट में पड़ा-पड़ा जब गर्म हो जाता है, तब पेट उसे रखती नहीं, उल्टी कर देता है। पेट में ठंड की इतनी चाह होती है कि पेट दर्द भी आइसक्रीम खाने या ठंडा पेय लेने से ठीक हो जाता है।

बदहजमी में डकारों के साथ भोजन-नली में जलन और दर्द होता है। यह जलन पेट से ऊपर तक की भोजन-नली में होती है। इसका कारण पेट में अत्यधिक अम्ल का होना होता है इसकी कुछ प्रमुख औषधियां निम्नलिखित हैं :-

चायना 30 – इसमें सारा पेट वायु से भरा रहता है, खूब डकारें आती हैं, ये डकारें खट्टी भी हो सकती हैं। पेट की वायु से दर्द होता है, किंतु डकार आने पर थोड़ा-सा हल्कापन भी महसूस होता है।

कार्बो वेज 30 – इसमें बुसे खाने जैसे डकार आते हैं, खट्टी डकारों की भी भरमार रहती है। रोगी की पाचन-क्रिया अत्यंत शिथिल होती है। पेट में ऊपर के हिस्से में वायु भरी रहती है।

अर्जेन्टम नाइटिकम 6 – रोगी को डकारें आती हैं, जी मिचलाता है, पेट में वायू भरी होने के साथ-साथ दर्द भी रहता है, भोजन-नली और छाती में भी जलन होती है।

लाइकोपोडियम 30 – छाती में जलन के साथ खट्टी डकारें आती हैं, पेट फूला हुआ-सा महसूस होता है।

पल्सेटिला 6, 30 – इसमें रोगी को पेट दर्द की शिकायत रहती है, पेट में गड़बड़ी से ही पनीली डकारें आती हैं, छाती में जलन रहती है।

नक्सवोमिका 6 – डकार आने में कठिनाई, भोजन-नली में जलन, पनीली और खट्टी डकार, सवेरे के समय बासी डकारों की अधिकता।

ब्रायोनिया 6, 30 – भोजन के बाद कड़वी तथा खट्टी डकारें आती रहना, अम्ल के कारण छाती में जलन होती है, भारी-भारी डकार आती हैं, ठंडा पानी पीने की अधिक इच्छा होती है।

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