संक्रामक नेत्र रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Eye Flu ]

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इंस संक्रामक नेत्र-रोग का आक्रमण प्रायः समय-समय पर होता रहता है और यह पुरुष और बच्चों को अपना शिकार बनाता है। इस संक्रामक नेत्र-रोग को “आई-फ्लू” कहा जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह रोग पित्त के प्रकोप से होता है। खट्टे-मीठे, तेल-मिर्च के मसालेदार, अम्लीय खाद्य-पदार्थ खाने तथा मांस-मछली के अधिक सेवन से पित्त विकृत होकर नेत्रों को प्रभावित करता है और इससे आई-फ्लू की उत्पत्ति होती है।

आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार जब कोई व्यक्ति अधिक तापयुक्त वातावरण। में अधिक समय तक रहता है और फिर एकदम शीतल वातावरण में पहुंच जाता है, तो कफ के दूषित होने से आई-फ्लू की उत्पत्ति होती है।

धूप में चलने-फिरने से प्रायः सिर के बालों की जड़ में पसीना भर जाता है। ऐसे में कोई व्यक्ति तुरंत शीतल जल से स्नान कर ले या बर्फ का पानी पी ले, तो कफ का प्रकोप अवश्य होता है। कफ दूषित होने से नेत्र-रोग हो जाता है।

एलोपैथी के अनुसार आई-फ्लू एक विशेष प्रकार के वायरस (विषाणुओं) द्वारा तीव्र संक्रामक जल व वायु द्वारा लोगों तक पहुंचते हैं और तुरंत संक्रमण कर रोग की उत्पत्ति करते हैं। इस रोग का संक्रमण इतना तीव्र होता है कि स्वस्थ मनुष्य रोगी से कुछ देर बात करने के बाद ही रोगी से छूत लगा बैठता है।

रोगी के वस्त्र, रूमाल, तौलिए के स्पर्श मात्र से ही रोग के वायरस हाथों में लग जाते हैं, जब कोई मुंह या आंखों को स्पर्श करता है, नेत्राभिष्यंद (आई-फ्लू) हो जाता है। रोग के जीवाणु वायु द्वारा उड़कर स्वस्थ लोगों तक पहुंचकर उन्हें रोगी बनाते हैं।

नेत्रों की पलकों की श्लैष्मिक-कला पर संक्रमण से शोथ उत्पन्न होता है। पलकों की श्लैष्मिक कला एकदम लाल हो जाती है। इसमें तीव्र शूल व जलन होती है। रोगी पलकें नहीं खोल सकता और धूप की रोशनी तो असह्य हो जाती है। भीतर से पूय (पस-सा) निकलने पर पलकें चिपक जाती हैं। रोगी को ऐसा लगता है कि नेत्रों में कोई धूल-मिट्टी, कंकर आदि गिर गई है। रोगी पलकें रगड़ता है, तो पीड़ा अधिक होती है। नेत्रों (आंखों) से आंसू निकलते रहते हैं। प्रारंभ में तीव्र खुजली होती है और फिर खुजलाने से शोथ हो जाता है। अधिकतर इस रोग की उत्पत्ति ग्रीष्म ऋतु में होती है।

ऐकोनाइट 30 — डॉ० ज्ह्यर के मतानुसार आई-फ्लू में सर्वप्रथम इसी औषध . का प्रयोग करना चाहिए।

एल्यूमिना 3, 30 — यह श्लैष्मिक-झिल्ली पर विशेष प्रभावकारी है तथा एकोनाइट की तरह ही लाभ करती है।

सल्फर 30 — यदि केवल पलकों पर सूजन हो, कीचड़ अधिक निकलती हो तथा प्रकाश सहन न हो, तो इसे दें।

कैल्केरिया कार्ब 30 — पलकों का बंद रहना, सूज़ जाना, लाल हो जाना, दर्द, जलन, आंखों में सुई चुभने जैसी पीड़ा तथा रोशनी में आंखें न खुलना, इन लक्षणों में दें।

कैलि बाईक्रोम 3x — यदि उक्त औषधियों के कुछ सप्ताह तक व्यवहार करते रहने के बाद भी कोई लाभ दिखाई न दे, तो इसे 2 ग्रेन की मात्रा में प्रति 6 घंटे के अंतर पर देकर देखें।

थूजा 12 — उक्त औषधियों के साथ दें। बीच-बीच में इसके मूल-अर्क के लोशन से आंखें धोते रहें। 5 बूंद मूल-अर्क (मदर-टिंक्चर) को 1 औंस पानी में डालने से लोशन तैयार हो जाता है।

कैलेण्डुला 6 — यदि आंखों में तेज औषधियों के प्रयोग से उनकी तीक्ष्णता के कारण आंखों में दर्द होता हो, तो इसके मूल-अर्क के लोशन से प्रति 3 घंटे बाद आंखों को धोना भी हितकर है।

एपिस-मेल 6 — पलकों के फूल जाने अथवा आंखों से पीब गिरने में उपयोगी है।

कोनायम θ — यदि धूप या रोशनी बिल्कुल भी सहन न हो, तो इसे दें।

युफ्रेशिया 6 — आंखों के रोग की सभी अवस्थाओं में लाभकारी है। इसके मदर-टिंक्चर की 10 बूंदें 1 औंस पानी में डालकर लोशन तैयार करें, उससे दिन में 3-4 बार आंखों को धोएं।

बेलाडोना 3x — रोशनी एवं धूप सहन न होना। अत्यधिक दर्द तथा सूजन होने पर दें।

मर्क कोर 6 — आंख के भीतर एवं चारों ओर तीव्र दर्द एवं कृष्ण-पटल के शोथ के साथ ही उपतारा में दर्द होने के लक्षणों में उपयोगी है।

जेलसिमियम 30 — यह इस रोग की मुख्य औषधि मानी जाती है।

नैट्रम म्यूर 30 — यदि दोनों आंखों में दर्द और पीड़ा हो, तो इसे दें।

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