पैतृक रक्तस्राव या हीमोफिलिया का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Hemophilia ]

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यह रोग वंशगत रूप से हुआ करता है। जिनकी गठन लंबी, गोरा रंग, पतली त्वचा और त्वचा के नीचे की शिराएं पूर्ण और मोटी होती हैं, ऐसे व्यक्तियों को ही यह रोग अधिक होता है। साधारण चोट लगने या जरा-से में कोई कील-कांटा चुभने या गड़ जाने से इस रोग की उत्पत्ति अधिक होती है। इसके अतिरिक्त साधारण ऑपरेशन से (टीका लगवाने या दाढ़-दांत उखड़वाने से) मारात्मक रक्त-स्राव होता है। नवजात शिशु की नाभि से बहुत अधिक रक्त-स्राव होना, नाक पर मुक्का लग जाने से अधिक रक्तस्राव होना आदि। इसका रक्त सहज में बंद नहीं होता, रोगी क्रमशः रक्त-शून्य हो जाता है और ऐसे में उसकी मृत्यु तक हो सकती है।

एकोनाइट 6 — नाक या मुंह से रक्त-स्राव हो, श्वास-कष्ट, बेचैनी, उद्वेग इत्यादि लक्षणों में यह औषधि देने से शीघ्र लाभ हो जाता है। दिन में 3 से 4 बार तक दें।

आर्निका 30 — चोट लगना या बहुत अधिक परिश्रम करना यदि रोग का कारण हो और उसके साथ ही शरीर में बहुत दर्द हो, तो निश्चय ही इस औषधि से लाभ हो जाता है।

आर्सेनिक 30 — चेहरा बदरंग, कानों में आवाज, बेहोशी का भाव, शरीर ठंडा पड़ जाना, ठंडा पसीना आना, हमेशा मिचली या औंकाई आना, डकार आना, बहुत प्यास, पाकस्थली में जलन और साथ ही काले रंग का मल होना, श्वास में कष्ट होना, नाड़ी सूत-सी पतली किंतु शीघ्रगामी, एक मिनट में नाड़ी की गति 125-130, बहुत कमजोरी और बेचैनी में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

कार्बोवेज 6, 30 — जल्दी-जल्दी बेहोशी आना, चेहरा मुर्दे जैसा हो जाना, शरीर ठंडा पड़ जाना, ठंडा पसीना आना, रोगी का लगातार पंखे से हवा करने को कहना, सविराम क्षीण नाड़ी; कभी-कभी नाड़ी का पता न चलना, तब यह औषधि लाभ करती है।

चायनी 30 — बहुत अधिक रक्तस्राव के कारण कमजोरी, समूचा शरीर ठंडा पड़ जाना, पेट के ऊपरी भाग में स्पर्श सहन न होने वाला दर्द, इसमें यह औषधि अत्यंत उपयोगी है।

इरिजिरन 200 — बहुत अधिक मिचली और वमन कां वेग, पेट में जलन।।

हैमामेलिस 30, 200 — पेट में दर्द, ज्वर मालूम होना, रक्त की उल्टी और दस्त होना, शरीर में कमजोरी लगने वाला पसीना आना, बेचैनी, नाड़ी की गति तीव्र, पेट भरा हुआ मालूम होना, पेट में गड़गड़ की-सी आवाज होना।

इपिकाक 200 — काले रंग का रक्त जाना, मुंह का स्वाद खट्टा, बदन ठंडा, पेट में दबाव मालूम होना, बहुत अधिक प्यास, श्वास में दबाव-सा महसूस होना, रक्त भरे दस्त आना।

फास्फोरस 30 — रक्त का रंग लाल चमकीला, हर समय निद्रा आती रहना, होंठ, मुंह, जिह्वा, मसूढ़े सब रक्त-शून्य और मलिन दिखाई देना, ठंडे पानी की प्यास रहती है, भोजन से घृणा, पाकस्थली भारी और फूली मालूम होना, तलपेट नरम, काले रंग का मूत्र, शरीर गरम, किसी-किसी जगह पसीना आना, तीव्र नाड़ी।

सिकेलि 6 — रोगी का स्थिर होकर लेटे रहना, बहुत कमजोरी रहने पर भी किसी तरह की तकलीफ मालूम न होना; मुंह, होंठ, जिल्ला, हाथ आदि मुर्दे की तरह दिखाई देना, ठंडा पसीना आना, सूत-सी पतली नाड़ी, शरीर पर कपड़ा न रख सकना।

जिरेनियम मैकुलेटम 8 — बहुत अधिक रक्तस्राव, किसी भी प्रकार से लाभ न होना। इसके मदर टिंक्चर की 10 से 30 बूंद तक की मात्रा पानी के साथ 1-1 घंटे बाद 2-3 बार देने से प्रायः रक्त बंद हो जाता है। बहुत लाभकारी औषधि है।

आर्निका 6, 30 — चोट लगकर या कोई भारी चीज उठाने के कारण अथवा किसी कड़े परिश्रम आदि के कारण रक्त निकलना।

बेलाडोना 30 — सिर और छाती में रक्ताधिक्य, छाती में सुई या पिन चुमने जैसा दर्द, हिलने-डुलने से दर्द का अत्यधिक बढ़ जाना, ऋतुस्राव बंद होकर मुंह से रक्त निकलना में उपयोगी है।

फेरम मेटालिक 3, 30 — कमजोरी रहने पर भी रोगी लेटा रहना नहीं चाहता, वह धीरे-धीरे घूमने से अपने को स्वस्थ अनुभव करता है, थोड़ी तेजी से चलने-फिरने या बोलने से खांसी का उठना, दोनों कंधों के बीच में एक तरह का दर्द होता है; मुंह और चेहरा पीला दिखाई देता है, रात में अच्छी तरह निद्रा नहीं आती, हमेशा कलेजा धड़कता हो; इन लक्षणों में मुंह से रक्त आता हो, तब इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

एसिड नाइट्रिक 30 — इस औषधि के प्रयोग से भी रक्त का जाना बंद हो जाता है।

फिकस रिलिजिओसा 2x — रक्त का रंग लाल और चमकीला हो और परिमाण में अधिक निकलता हो, तो इस औषधि से लाभ होता है। रक्त का रंग लाल न हुआ, तो लाभ न होगा।

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