आंत उतरने का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Hernia ]

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सर्जनों का मत है कि इस रोग के निवारण के लिए सर्जरी आवश्यक है, किंतु होम्योपैथिक चिकित्सा में बिना शल्य चिकित्सा के केवल औषधियों से अनेकों रोगियों को आरोग्य लाभ हुआ है। आंत उतरने के रोग को “हर्निया” कहते हैं। हर्निया साधारणतः दो प्रकार को देखने में आता है-1.इंगुइनैल, 2. अंबिलाइकैल।।

इंगुइनैल

जंघा-संधि या गिल्टी जगह का हर्निया। इसमें आंत पेट से निकलकर अंडकोष में आ जाती है और वह निकली हुई आंत यदि उसी समय पेट के अन्दर नहीं चली जाती, तो उसे इरिडिउसिब्ल (Iriducible); और जब अंत्रथली (Hermial Sac) इंगुइनैल रिंग के बाहर निकलकर अंडकोष के भीतर ही रुकी रहे और उसे अपने स्थान में लाया जा सके, तब उसे “स्टैंगलेट-हर्निया” कहते हैं और आंत बाहर निकलकर जब वह वापस नहीं आती या वापस आकर फिर बाहर निकल जाती है, तब उस अवस्था को “इंकारसिरेटेड” (Incarcirated) हर्निया कहते हैं।

अंबिलाइकैल

यह रोग अधिकतर युवकों को होते देखा जाता है। इस लक्ष:, इस प्रकार हैं-नाभि फूल उठती है और अंदर नाड़ी रहती है; दबाने से एक तरह की “कों-कों” आवाज होती है और नाड़ी भीतर चली जाती है, लेकिन फिर तुरंत बाहर निकल आती है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का हर्निया भी है, जिसे “फिमौरैलहर्निया” कहते हैं। किंतु यह प्रायः देखने में नहीं आता। यह स्त्रियों को होता है।

कारण — बहुत तेजी से अधिक दूर तक लगातार पैदल चलना या बहुत ऊंची जगहों पर चढ़ना, घुड़सवारी करना, फूकने का कोई वाद्य बहुत दिनों तक नित्य बजाना, बहुत भारी चीज उठाना, कब्ज के कारण अधिक कांखकर मल-मूत्र त्यागने की कोशिश करना, जोर-से वेग देकर पेशाब करना, पेट पर जोर का दबाव पड़ना, अस्थमा और हूपिंग खांसी, प्रसव के समय अत्यधिक वेग इत्यादि इस रोग की उत्पत्ति के कारक हैं। इस रोग में पहले दोनों तरफ की गिल्टियों में से किसी एक गिल्टी के पास को स्थान फूल उठता है। खड़े होने से सूजन (फूला हुआ) साफ दिखाई देती है, लेकिन सोने या सोकर जोर-से श्वास लेने से वह हट जाती है और तब सूजन नहीं रहती। यहां गिल्टी और बाघी के साथ इस रोग का भ्रम हो सकता है, इसलिए इसका प्रभेद इस प्रकार समझ लेना चाहिए-गिल्टी तथा बाथी होने से उक्त फूला हुआ स्थान पत्थर की तरह कड़ा हो जाता है और वहां प्रदाह रहता है तथा दबाने से सूजन नहीं रहती।

स्ट्रैगुलेटेड हर्निया की नक्सवोमिका और ओपियम अच्छी औषध हैं। 30 से 1000 शक्ति तक का प्रयोग करके परीक्षा करनी चाहिए।

एसिड सल्फ 6, 30 — यह स्ट्रैगुलेटेड की सर्वोत्तम औषधि है। पहले 6 शक्ति का प्रयोग करना चाहिए; रोगी को उल्टी और मिचली बहुत ज्यादा हो तथा कमजोरी हो, तो टैबेकम देनी चाहिए।

प्लम्बम — (औषध-शक्ति रोगी की अवस्था देखकर); कोष्ठबद्ध की धातु, नाभि के चारों तरफ दर्द हो, तब दें।

नक्सवोमिका 30, काक्युलस 30 — जैसे लाइकोपोडियम दाएं हर्निया में काम आती है, वैसे ही नक्सवोमिका बाएं अंडकोश में उतरने का उपक्रम करने वाली आंत को संभाल लेती है। जब प्रातःकाल उठने के बाद रोगी यह शिकायत करे कि पेट की परत में, जहां से छोटी आंत अंडकोश की थैली में उतर सकती है, वहां कमजोरी अनुभव हो रही है, विशेषतः बाईं ओर की जांघ के पास, तब यह उपयोगी है। जैसे अंडकोश के हर्निया में यह उपयोगी है, वैसे ही छोटे बच्चे की नाभि के हर्निया में भी उपयोगी है। यदि नक्सवोमिका से लाभ न हो, तो काक्युलस 3 या 30 शक्ति में दें।

लाइकोपोडियम 30 — दाहिनी ओर का रोग, हाथ-पैर ठंडे हो जाना, पेट में गड़गड़ शब्द होना, हर्निया में दर्द होना। यदि रोगी बहुत ज्यादा तंबाकू पीता हो, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

काक्युलस इंडिका 30, 200 — दाहिनी ओर का रोग, पेट में दर्द, पेट फूलना, उल्टी होना, कब्ज। यह औषध नक्सवोमिका से लाभ न होने पर दी जाती है।

विशेष — जिनको हार्निया का रोग है, उन्हें चाहिए कि हर समय बैल्ट्स बांधे रहें, केवल सोते समय खोल दें, नहीं तो खतरे की संभावना रहती है। हर्निया मेंनाड़ी बाहर निकलकर भीतर न जाने से बेलाडोना 6 की 1 बूंद की मात्रा में 7-8 मिनट के अंतर से 8-10 मात्रा दें व गिल्टी की जगह सदैव आइस-बैग प्रयोग करें।

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