मूच्र्छा वायु या हिस्टीरिया का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Hysteria ]

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यह मानसिक रोगों में प्रमुख रोग है। इसे “गुल्म-रोग” भी कहते हैं। अंग्रेजी में इस रोग को “हिस्टीरिया” कहते हैं। यह रोग स्त्रियों और लड़कियों को ही अधिक होता है। साधारणतः यह रोग 15 से 30 वर्ष के भीतर ही होता है। कभी-कभी इससे भी कम आयु में यह रोग हो जाता है। पारिवारिक शोक-संताप सहन करते रहना, प्रेम के मामले में हताश होना, बहुत अधिक क्रोध आना इस रोग के विशेष कारण हैं। इसमें मूच्र्छा (बेहोशी) आती है, किंतु पहले रोगिणी हंसती, गाती यां रोती है, नाना प्रकार की असंभव बातें कहती है, लंबी-लंबी श्वासें लेती है; श्वास-कष्ट होता है, कलेजा धड़कता है और कभी-कभी वमन भी हो जाता है। इसमें दौरा (फिट) पड़ता है; दौरे के समय रोगिणी हाथ-पैर पटकती है, हाथों की मुट्ठियां बांध लेती है, चिल्लाती है, जबड़ों को आपस में भींच लेती है। इस प्रकार की अवस्था कुछ समय तक बनी रहती है। इसके बाद धीरे-धीरे होश आता है और दौरा जाता रहता है।

हिस्टीरिया की रोगिणी की मानसिक अवस्था बहुत ही गड़बड़ रहती है, इसलिए उससे कड़वी बातें करना या ऐसा व्यवहार करना, जिससे उसके मन में कष्ट हो, एकदम मना है। चाय, कॉफी आदि उत्तेजक पदार्थ आदि का व्यवहार भी न करना चाहिए। अधिकांश स्त्रियों को यह रोग अतिरजः, स्वल्परजः आदि ऋतु-दोषों के कारण होता है; प्रणय में असफल रहना या धोखा खाना भी इसका कारण हो सकता है।

एमिल नाइट्रेट 6 — इसकी 5-6 बूंद रूमाल में डालकर रोगिणी की नाक के आगे रखने से दौरे का प्रकोप घट जाता है।

मॉस्कस 3x — दौरे के समय 10 से 15 मिनट के अंतर से और विराम-अवस्था में जिंक वैलेरियाना का प्रयोग करने से विशेष लाभ होता है।

टैरेण्टुला हिस्प 6, 30 — इसका प्रयोग करने से रोगिणी दो-चार दिनों में ही स्वस्थ हो जाती है।

ऐबसिंथयम — यह प्रायः सभी प्रकार के फिट (बेहोशी का दौरा) की सर्वोत्तम औषधि है।

फास्फोरस 30 — यदि रोगिणी कभी हंसे, कभी रोए और उसकी कामाग्नि बहुत प्रबल हो गई हो, तब इस औषधि से लाभ होता है।

सिपिया 30 — जिह्वा कड़ी हो जाना, बोल न सकना, सारा शरीर कड़ा हो जाना, मूच्र्छा के समय बहुत अधिक पसीना आना।

सल्फर 6, 30 — शरीर में आग की लपट लगने जैसी गर्मी मालूम होना। सिर में चोटी के पास बहुत गर्मी मालूम होना, तलवों को जलना, किंतु पैर ठंडे हों, तब दें।

क्रियोजोट 30 — हिस्टीरिया-रोगिणी को वमन हो, तब यह प्रयोग करें।

कोनियम 6 — यदि स्त्री कौमार्य-व्रत अवलंबन करने के कारण अर्थात एक बार भी रति-क्रिया न करने के कारण मानसिक रोगग्रस्त हो जाए, इस कारण उसे हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगें, तब यह औषधि उपयोगी है।

लिलियम टिगरी 30 — रोगिणी का बहुत कमजोर और नर्वस हो जाना, इसके साथ ही जरायु-संबंधी किसी रोग का रहना, कलेजे का अत्यधिक धड़कना।

इग्नेशिया 6, 30 — रोगिणी का मन अत्यंत परिवर्तनशील हो जाता है। वह कभी हंसती तो कभी रोती है, कभी खुशी में फूली नहीं समाती, तो कभी दुख से मुझ जाती है। बहुत दुख, शोक या डर जाना हो, तो इस औषधि से लाभ होता है।

एकोनाइट नैप 30, 200 — मृत्यु का भय, भीड़ में जाने से डरना, अपनी मृत्यु का समय निश्चित करके बताना आदि लक्षणों में यह औषधि लाभप्रद है।

ऑरम मेटालिकम 6, 30 — मृत्यु की इच्छा करना, मन खराब रहना, रोग के शमन के लिए निराश हो जाना, अकारण रोना और कभी-कभी हंस पड़ना।

कैल्केरिया कार्ब 30 — रोगिणी के मस्तक पर पसीना आता हो, पैरों के तलवे भींगे से और ठंडे मालूम हों, शरीर के भीतर हर समय ठंड-सी मालूम हो, हवा में रहने से डर लगता हो, जरा-से में सर्दी लग जाती हो, कलेजा धड़कता हो, तब इस औषधि से लाभ होता है।

कैमोमिला 30 — रोगी स्त्री बहुत चिड़चिड़ी और क्रोधी हो, जरा-जरा-सी बात पर क्रोधित हो जाए, गालियां निकालने लगे, तब इस औषधि का प्रयोग करें।

नाइट्रिक एसिड 6, 30 — रोगिणी का खड़िया, चूना और मिट्टी आदि खाने को मन करना, शरीर में जगह-जगह अपने आप स्पंदन होना, कंपकंपी आना आदि में दें।

नेक्स मॉस्केटा 30 — रोगी स्त्री केवल हंसना चाहती हो या हंसती हो। हर समय औंघाई आती हो और मुंह सूखा रहता हो, किंतु प्यास न लगती हो। नियमित ऋतुस्राव नहीं होना, किंतु उसके बाद श्वेत प्रदर होना-इन लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है।

क्रौकस सैटाइवा (मूल-अर्क) 30 — रोगिणी का हंसते ही जाना-इस क्षण प्रसन्न तथा प्रेमपूर्ण और फिर तत्काल क्रोध करना। हर्षोद्रक से एकदम अति विषाद में परिवर्तन।।

ऐसाफेटिक 3, 6 — रोगिणी के पेट में गोला-सा उठता है, पेट में वायु भर जाती है, जिससे ऊपर को दबाव के कारण श्वास भारी हो जाती है। जब किसी स्राव के रुक जाने से हिस्टीरिया के लक्षण प्रकट होने लगें, तब यह औषधि उपयोगी है।।

प्लैटिनम 6x, 30 — रोगी स्त्री विषादमग्न रहती है। उसे लगता है कि मृत्यु-द्वार पर बैठी है। बिना अवसर रोने लगती है और रोने के अवसर पर हंस पड़ती है। यौन-दृष्टि से इतनी उत्तेजित रहती है कि हर किसी को आलिंगन करने की इच्छा रखती है।

सिमिसिफ्यूगा 3 — स्त्री के अंगों पर इस औषधि का विशेष प्रभाव है और उसमें हिस्टीरिया के लक्षण प्रकट होते हैं। मूच्र्छा; रोगिणी निरंतर बोले जाती है, उसके अंगों में स्फुरण होता है। जननांगों में दर्द-सा होता है। इस हिस्टीरिया में ऋतु की गड़बड़ी होती है। अति रक्तस्राव की यह सर्वोत्तम औषधि है।

सिलिका 30 — रजःस्राव बंद होने के समय ऋतुकाल के दर्द के कारण हिस्टीरिया होने पर दें।

वैलैरियाना 3 — मूछ के समय प्रलाप और मूच्र्छा न रहने के समय बहुत तरह के रोग मालूम हों, तो यह उपयोगी है।

विशेष — हिस्टीरिया का दौरा पड़ने पर रोगिणी का कपड़ा ढीला कर मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारने चाहिए। यों मूच्र्छा की अवस्था में रोगिणी का मुंह और नाक का छिद्र थोड़ी देर तक अच्छी तरह बंद रखने, कुछ ऊंची जगह से मुंह पर पानी की धार इस प्रकार डालने से कि उसका श्वास कुछ देर के लिए बंद हो जाए, इससे वह जोर से लंबी श्वास लेने के लिए बाध्य होगी और तुरंत ही उसकी मूच्र्छा दूर हो जाएगी।

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