इन्फ्लूएंजा का होम्योपैथिक उपचार [ Homeopathic Medicine for Influenza ]

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यह एक लरछूत और बहुत ही व्यापक रोग है। एक प्रकार का कीटाणु (Bacillus) इस रोग में मौजूद रहता है। सर्दी लगना, ज्वर, सिर में दर्द, आंख और नाक से पानी गिरना, छींक, खांसी, देह टूटना, देह (शरीर) में दर्द – इस रोग के प्रधान लक्षण हैं। साधारण सर्दी, ज्वर के साथ इसकी बहुत कुछ समानता दिखाई देती है। इसमें जो बलगम निकलता है, वह गाढ़ा और गोंद की तरह लसदार होता है। रोगी लगातार खांसता रहता है और खांसता-खांसता क्लांत हो जाता है, पर बलगम जल्दी नहीं निकलता ।

साधारणतः इन्फ्लूएंजा का ज्वर4-5.दिनों से अधिक प्रायः नहीं रहता, कभी-कभी यह रोग शीघ्र आरोग्य नहीं होता। जो लोग बहुत कमजोर और वृद्ध हो गए हैं, उनको यदि यह रोग हो जाता है, तो डर की बात हो जाती है। रोगी अत्यधिक दुर्बलता के कारण बलगम नहीं निकाल सकता और इसी कारण से कितनी बार श्वास रुककर उसकी मृत्यु हो जाती है। इन्फ्लूएंजा में आराम हो जाने के बाद मुंह में घाव, कान की जड़ फूलना, कान में पीव प्रभृति रोग गौण उपसर्ग के रूप में प्रकट हो सकते हैं।

एक प्रकार का इन्फ्लूएंजा और भी होता है, जिसमें सिर में बहुत तेज-दर्द होता है, रोगी विकारग्रस्त हो जाता है। इसमें सिरदर्द के साथ कान में भी दर्द होता है, इसको सेरिब्रो-स्पाइनल इन्फ्लूएंजा यानी मस्तिष्क मेरुमज्जा का इन्फ्लूएंजा कहते हैं। रोगी को सर्दी से बचने के लिए हमेशा गर्म कपड़ों से शरीर ढके रखना चाहिए। ज्वर रहने पर गर्म पानी, गर्म दूध आदि को पीना चाहिए। फलों में बहुत थोड़ी मात्रा में अनार का रस लेना चाहिए।

रोगी का बिस्तर से उठना मना है। इन्फ्लूएंजा बड़ा ही संक्रामक रोग है। किसी स्थान पर यदि यह किसी एक व्यक्ति को हो जाता है, तो उसके संपर्क में आने वाले सबको ही यह रोग हो जाता है। कभी-कभी यह रोग बहुत व्यापक रूप में दूर-दूर तक भी फैल जाता है, अत: रोगी का थूक, बलगम (कफ) आदि सावधानी से दूर फेंक आना चाहिए। रोगी के वस्त्र गर्म पानी में खौलाकर तेज धूप में सुखाने चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि रोगी का कमरा हमेशा गर्म रहे। रोग के चले जाने पर भी इस विषय में बहुत दिनों तक सतर्क रहना चाहिए कि रोगी को सर्दी न लग जाए।

नक्स वोमिका 200 – डॉ० हैनीमैन के अनुसर इन्फ्लूएंजा की यह प्रमुख औषधि है। जब इन्फ्लूएंजा का संक्रामक प्रकोप हो, तब ज्वर के प्रारंभ होने के समय कैम्फर उपयोगी है, इसके मूल अर्क की कुछ बूंदें देने से लाभ होता है। इसकी उपयोगिता रोग के वेग को कम कर देने के रूप में ही है, रोग को एकदम काट देने में नहीं है। इसे पानी में डालकर बार-बार देने से रोग घातक सिद्ध नहीं होता और रोगी निश्चित समय में रोग से छूट जाता है। डॉ० यूनान का मत है-इन्फ्लूएंजा के लिए यदि कोई प्रतिरोधक औषधि है, तो वह नक्स वोमिका ही है। इस दृष्टि से इस रोग में इस औषधि ने बड़ी ख्याति अर्जित की है। यदि फ्लू में ठंड का अनुभव हो, कितनी ही गर्मी पहुंचाई जाए, पर ठंड न जाती हो, पैर हिलाते ही शरीर में ठंड की कंपकंपी दौड़ जाती हो, कपड़ा ओढ़ने पर गर्मी लगती हो, रोगी उसे हटा देना चाहता हो और कपड़ा हटाते ही शरीर थरथरा जाता हो, ऐसी दशा में खांसी, जुकाम, शरीर में दर्द आदि फ्लु के लक्षण होने पर इसे देने से लाभ होता है।

एकोनाइट 6, 30 – खूब जोर का बुखार (ज्वर), सर्दी का लगना, अत्यधिक बैचेनी, प्यास और सूखी खांसी इत्यादि में लाभ करती है।

जेल्सीमियम1x, 6, 30 – शीत, कंपकंपी, ज्वर, ज्वर के साथ कोई विशेष उपसर्ग नहीं रहते। माथा गरम, नाक से पानी की तरह पतली सर्दी निकलती है। छींके आती हैं, हल्का सिरदर्द होता है। जलन, सारे शरीर में मरोड़ की तरह दर्द, चुपचाप नींद जैसी अवस्था में पड़े रहना आदि लक्षणों में इस औषध का प्रयोग किया जाता है। मदर-टिंक्चर या 2x शक्ति की 4-5 बूंद दो औंस पानी में मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में 2-3 घंटों का अंतर देकर प्रयोग करने पर शीघ्र लाभ होता है।

इयुपेटोरियम पर्फो 3, 6, 30 – शरीर में हड्डियाँ टूटने की तरह का दर्द, पित्त का वमन, जी मिचलाना, कमर में दर्द, अत्यधिक दुर्बलता और प्यास आदि अधिक लगने पर इस औषध का व्यवहार किया जाता है।

आर्सेनिक आयोड 3x, 6, 30 – इन्फ्लूएंजा और सर्दी-ज्वर की यह एक प्रधान औषध है। पर्याय-क्रम से सर्दी और गर्मी मालूम होना या केवल शीत और उत्ताप का लक्षण रहे, तो इससे अधिक लाभ होता है। यदि जेल्सीमियम के साथ इसका पर्यायक्रम से प्रयोग किया जाता है, तो ज्वर तथा अन्य उपसर्ग बहुत जल्द घट जाते हैं।

जेल्सीमियम 2x, आर्सेनिक आयोड 3x – मुंह, नाक और आंख से अधिक पानी निकलता है। यह स्राव जहां लगता है, वहीं की त्वचा उधड़ जाती है, घाव हो जाता है, जलन होती है। सदा सर्दी का लगना, पसीना बिल्कुल न आना, छटपटाहट, अत्यधिक प्यास, रोगी गरम रहने की इच्छा करता है, दोनों औषध 2-2 घंटे के अंतराल पर बारी-बारी से देनी चाहिए।

एलियम सिपा 3x, 6 – आंख और नाक से बहुत ज्यादा पतली सर्दी का स्राव होता है। गले में दर्द, आंखों के ऊपर कपाल में और सिर के पीछे वाले हिस्से में तीव्र दर्द होता है, सूखी और तकलीफ के साथ खांसी आती है।

कैलि बाईक्रोम 6, 30, 200 – यदि सर्दी पतली रहती है, तो जहां लगती है, वहां की खाल उतर जाती है, आँखों से गरम ताप निकलता है, फैरिंग्स में प्रदाह हो जाता है, लाल हो जाता है और फूला-फूला दिखाई देता है। सीने के बीच की हड्डी वक्षोस्थि (Sternum) से लेकर पीठ तक दर्द रहता है। ख़ांसने पर गोंद की तरह बलगम निकलता है। इसके सभी स्राव लसदार लेई की तरह रहते हैं और तार की तरह लंबे होकर झूलते रहते हैं।

मर्क्युरियस सोल 6, 30 – नाक और आंख से चुहती हुई सर्दी निकलती है। एक बार पतली और एक बार गाढ़ी सर्दी का भी स्राव होता है। शीत और उत्ताप पर्याय-क्रम से होते हैं। कान से पतली पीव निकलती है और तेज दर्द होता है, रोगी छटपटाता है, बहुत अधिक परिमाण में पसीना आता है, किंतु उससे उपसर्ग कुछ भी नहीं घटते हैं।

नैट्रम सल्फ 30 – सर्दी लगकर रोग उत्पन्न हुआ हो, ज्वर के साथ हाव, पैर, आंख और मुंह में जलन होती हो, तो यह औषध प्रयोग करनी चाहिए।

बैप्टीशिया 2x – यह ऐपिडेमिक इन्फ्लूएंजा की बहुत बढ़िया दवा (औषध) है और प्रतिषेधक भी है। नए इन्फ्लूएंजा के रोग में जाड़ा, सारे शरीर में वात की तरह दर्द, उत्ताप या उत्ताप के साथ सर्दी का लगना, दिन में 11 बजे जाड़ा लगकर बुखार चढ़ जाता है, ऊंचा बुखार और मल-मूत्र प्रभृति में बदबू रहने पर इस औषधि से अधिक लाभ होता है।

Influenzinum 30, 200 – यह भी बैप्टीशिया की तरह एक प्रतिषेधक औषध है। अन्य औषध व्यवहार करने के समय बीच-बीच में इसकी एक मात्रा प्रयोग करने पर विशेष लाभ होता है। बहुत से चिकित्सकों का मत है कि यदि रोग हल्का रहता है, तो केवल इसी औषध से आरोग्य हो जाता है।

आर्सेनिक 30, 200 – आँख और नाक से गरम पानी की तरह सर्दी निकलती है, छींक आती हैं, भीतर गर्मी पर कपड़ा उतारते ही सर्दी मालूम होने लगती है। त्वचा सूखी व रूखी रहती है। कष्टकर खुसखुसी खांसी, श्वास में तकलीफ, छटपटाहट और प्यास आदि लक्षण इसके अंतर्गत होते हैं।

एमोनिया कार्ब 200 – इन्फ्लूएंजा के बाद रोगी की खांसी बनी रहे, जाने का नाम न ले, तब इस औषधि की 200 शक्ति की एक मात्रा से यह खांसी ठहरने का नाम नहीं लेती। डॉ० यूनान का यह निजी अनुभव है।

आर्सेनिक एल्बम 3, 30, 200 – यह औषधि नक्स वोमिका की तरह इन्फ्लूएंजा के शुरू में उपयोगी है। जब रोग का आक्रमण धीमा पड़ जाए, तरुण-लक्षण (Acute symptoms) चले जाएं, किंतु भिन्न-भिन्न प्रकार के उपद्रव बने रहें – विविध प्रकार के दर्द, ज्वर कभी चढ़ जाए, कभी उतर जाए या न उतरे, ऐसी अवस्था में इस औषधि की 200 शक्ति की एक-दो मात्रा से ये बचे-खुचे लक्षण वैसे ही चले जाते हैं, जैसे एमोनिया कार्ब 200 की एक मात्रा से इन्फ्लूएंजा के बाद की बची-खुची खांसी चली जाती है। ‘फ्लू’ के अन्य लक्षणों के साथ यदि थोड़ी-थोड़ी प्यास में हिलने-डुलने से आराम पहुंचे, तो रस-टॉक्स, यदि प्यास के साथ रोगी को मानसिक बेचैनी हो जिसके कारण वह कहीं टिक न सके, तो आर्सेनिक उपयोगी है। ‘फ्लू’ में प्यास के साथ आर्स की बेचैनी शारीरिक न होकर मानसिक होती है।

रस-टॉक्स 6, 30 – यदि ‘फ्लू’ होने से पहले रोगी पानी से भीगा हो, तब यह औषध उपयोगी है। आंखों के डेलों को इधर-उधर हिलाने से जेल्स, ब्रायो और रस टाक्स – इन तीनों में दर्द होता है, किंतु यदि शरीर की हरकत से रोगी को आराम पहुंचे, तो रस ही देना चाहिए। रस में रोगी आर्स की तरह थोड़ा-थोड़ा पानी पीता है। रस और आर्स बहुत कुछ समान हैं, किंतु इनमें भेद यह है कि रस-टॉक्स की बेचैनी शारीरिक होती है और आर्सेनिक की बेचैनी मानसिक होती है। रस इसलिए हिलता-डुलता है, क्योंकि ऐसा करने से उसके शरीर को आराम मिलता है, आर्स कही टिकता नहीं, कभी यहां बैठता है, कभी वहां बैठता है, इसका कारण उसकी मानसिक बेचैनी होती है।

सिरकोलैक्टिक एसिड 6, 30 – इन्फ्लूएंजा ‘फ्लू’ जिस समय खूब तेजी से फैलता रहता है, तब बहुत कमजोरी, तीव्र पतले दस्त और वमन, मिचली, समूचे शरीर में दर्द और पीड़ा एवं सुस्ती के लक्षण में आर्सेनिक से लाभ न होने पर इसका व्यवहार करना चाहिए।

विशेष – होम्योपैथी में, इन्फ्लूएंजा में जिन औषधों का प्रयोग होता है, वही औषधी डेंगू, खसरा का ज्वर, टाइफाइड (मियादी बुखार), सविराम ज्वर (कंटिन्यूड) प्रभृति सभी ज्वरों में व्यवहृत होती हैं। औषध के लक्षणों के साथ रोग का लक्षण मिल जाता है, तो उसी से रोगी आरोग्य हो जाएगा। रोग के नाम के अनुसार कभी भी औषध का चुनाव नहीं होता।

 

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