आंखों की सूजन या यूवाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Iritis, Uveitis, Chorioretinitis ]

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आंख की पुतली के चारों ओर के मंडल को उपतारा-मंडल कहते हैं। दरअसल आंख में जो सफेदी दिखती है, वह कार्निया कहलाती है। कार्निया से आंख के अंदर की ओर एक गोलाकार रंगीन मेम्ब्रेन है, यही “उपतारा” कहलाता है। समय-समय पर उपतारा की पेशियां फैलती और सिकुड़ती रहती हैं। उपतारा में एक गोल-सा छिद्र है, जिसे तारा या पुतली कहते हैं। जब हमें ज्यादा रोशनी की जरूरत होती है, तब उपतारा की पेशियां फैल जाती हैं, ताकि आंख के भीतर ज्यादा रोशनी जा सके; जब बाहर रोशनी की अधिकता होती है, तब उपतारा की पेशियां सिकुड़ जाती हैं, ताकि आंख के भीतर उतनी ही रोशनी जा सके, जितनी की आवश्यकता है। इसी उपतारा मंडल में प्रदाह हो जाने पर यदि उसका ठीक-ठीक उपचार नहीं होता, तो आंखों में जाला इत्यादि पड़कर या मोतियाबिन्द होकर दिखना बंद हो जाता है। यह प्रदाह बहुत से कारणों से पैदा हो सकता है, जैसे चोट लगना, वात या सुजाक के कारण। आंख से कम दिखाई देना या बिल्कुल भी न दिखना। बल्ब या सूर्य की रोशनी में कष्ट, आंखें बंद करने पर दर्द, दोनों कनपटियों में सुई गड़ने की तरह दर्द आदि इसके विशेष लक्षण हैं।

ऐसाफिटिडा 3, 6 — उपतारा के प्रदाह में यदि रोगी के उपदंश का पारे से निर्मित औषधियों का चुनाव किया गया हो, तो यह इसमें उपयुक्त औषधि है। इसका लक्षण है, आंख के गोलक को दबाने से रोगी को बड़ा आराम मालूम होता है। उपदंश से होने वाले प्रदाह में आंख में टपकन के साथ दर्द होता है तथा आंख की चारों ओर की अस्थियों में भी दर्द होता है।

ऑरम मेट 30 — रोगी अस्थियों के दर्द में स्पर्श को या दबाव को सहन नहीं कर सकता।यह इस रोग की निर्दिष्ट औषधि है। इसका प्रयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए।

रस-टॉक्स 30 — उपतारा के प्रदाह में यह उपयोगी है। वात-व्याधि के रोगी के इस रोग में रस-टॉक्स अवश्य देनी चाहिए। मोतियाबिन्द के ऑपरेशन के बाद यदि उपतारा-प्रदाह हो जाए, पलकें सूज जाएं, आंख खोलते ही तेजी से पानी बहने लगे, तब भी इससे लाभ होता है।

एकोनाइट 30 — रोग के आरंभ में इस औषधि से रोग पकड़ में आ जाता है।

मर्क कोर 6, 30 — उपतारा-प्रदाह की यह भी मुख्य औषधि है। उपतारा के प्रदाह का कारण उपदंश हो या न हो, इस रोग की यह सर्वोत्तम औषधि है। आंख के गोलक के पीछे ऐसा दर्द होता है मानों इस गोलक को कोई चीज बाहर धकेल रही है। रोगी रोशनी को सहन नहीं कर सकता, आंख से चिरमिराने वाला पानी निकलता है। रात में आंख में बहुत पीड़ा होती है। उपतारा का रंग मटमैला हो जाता है, आंख न सिकुड़ सकती है और न ही फैल सकती है। इन लक्षणों में पार्क कोर उपयोगी सिद्ध होती है।

कैलि हायड्रायोडॉइड 3, 6 — उपदंश के कारण उपतारा-प्रदाह हो और रोगी की पहले चिकित्सा की गई हो, तो इस औषधि को देना चाहिए, इससे लाभ होता है।

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