त्वचा की टी.बी होने का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Lupus ]

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इस रोग में नाक के पास लाल और भूरे रंग के छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ते हैं। जब ये फूट जाते हैं, तो घाव हो जाता है। यदि न फूटें, तो त्वचा में जज्ब हो जाते हैं। यह रोग स्त्रियों को प्रायः बीस से तीस वर्ष की आयु में होता है। इस रोग में निम्न औषधियां लाभ करती हैं। इन्हें लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए।

कैल्केरिया कार्ब 30 — यदि रोगी स्त्री खूब मोटी-ताजी और थुलथुल शरीर की हो; पीला चेहरा, सिर पर अधिक पसीना, हाथ-पैर चिपचिपाते हों, पसीने से एक प्रकार की गंध आती हो, तो इन लक्षणों में इस औषधि को प्रयोग करने से बहुत लाभ होता है।

आर्सेनिक 30 — त्वचा के इस रोग में बेहद बेचैनी, कमजोरी, स्वभाव में घबराहट हो, गर्मी से रोग की वृद्धि हो तथा ठंड से रोग घट जाए, तब यह उपयोगी है।

बैसीलीनम 200 — यह औषधि सप्ताह में 1 बार देने से त्वचा की टी० बी० ठीक हो जाती है।

ऑरम म्यूर 3x — यदि रोग का कारण उपदंश हो और रोगिणी बेहद निराश हो, तो इसे 3x शक्ति में प्रति 4 घंटे दें, साथ ही इसके मदर-टिंक्चर की 1 चम्मच थोड़ी ग्लिसरीन में मिलाकर चेहरे के दानों पर लगाएं।

हाइड्रोकोटाइल (मूल-अर्क) — इसके प्रयोग से त्वचा की टी० बी० सही हो जाती है। इसे अधिक समय तक प्रयोग करना चाहिए।

हाइड्रेस्टिस (मूल-अर्क) 30 — जिह्वा पीली, कब्ज, पेट में खालीपन-सा प्रतीत होना, पसीना अधिक आए, तब इस औषधि का प्रयोग करें तथा इसे ग्लिसरीन में मिलाकर घावों पर भी लगा दें, अच्छी तरह चुपड़ दें, इससे त्वचा साफ हो जाती है।

थूजा 6 — उन रोगियों की त्वचा की टी० बी० में यर लाभप्रद है, जिन्होंने अनेक बार चेचक को टीका लगवाया है। बैसलीनम के कुस-बीच में यह औषधि लेते रहने से शीघ्र लाभ होता है।

सल्फर 30 — यदि रोगी को साधारणतः त्वचा का रोग हो जाता हो, दोपहर को पेट खाली प्रतीत हो, पेट अंदर को धंस जाए और भूख सताने लगे, एसिडिटी हो, पां. ठंडे हो, चित्त म्लान तथा खिन्न रहे, तब यह औषधि उपयोगी सिद्ध होगी।

हिपर सल्फर 30 — रोगी शीत-प्रधान हो, वह शरीर को कपड़ों से ढांप रखे, तब यह दें।

रेडियम ब्रोम 30 — जब किसी औषधि से कोई अधिक लाभ होता दिखाई न दे, तब इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए। इससे लाभ अवश्य होता है, किंतु यह हमेशा बाद में देनी चाहिए।

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