खसरा का होम्योपैथिक उपचार [ Homeopathic Medicine For Measles Fever ]

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इस रोग का विस्तृत विवरण लिखने की अधिक आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गृहस्थ-जन इसके लक्षण जानते हैं और माता शीतला देवी की पूजा करते हैं। यों बचपन के अनेक रोगों में यह एक प्रमुख रोग है। यह छूत का रोग माना जाता है। रोगी के कपड़ों से, हवा से यह फैल जाता है। एक से पांच वर्ष की आयु में प्राय: बच्चों को यह रोग होता है, जीवन में केवल एक बार। रोग का बीज पड़ जाने और उसके लक्षण प्रकट होने में पन्द्रह दिन तक लग सकते हैं। शुरू-शुरू में ऐसा लगता है कि रोगी को जुकाम हुआ है, छींके आती हैं, नाक और आंखों से पानी गिरता है, सिरदर्द होता है, ठंड लगती है, ज्वर हो जाता है, खुश्क खांसी भी होती है। इसके चार-पांच दिन बाद चेहरे तथा गले पर दाने निकलते हैं, फिर ये दाने सारे शरीर पर फैल जाते हैं। जिस क्रम से ये दाने निकले थे, चौथे या पांचवे दिन उसी क्रम से लुप्त हो जाते हैं, ज्वर भी एकदम चला जाता है, किंतु खांसी कुछ दिनों तक बनी रहती है। इसके विषय में तीन दृष्टियों से विचार किया जा सकता है-

  1. खसरा या छोटी माता (Measles)
  2. चेचक या शीतला (मसूरिका) (Small Pox)
  3. जल चेचक (Chicken Pox)

खसरा या छोटी माता – बच्चों को होने वाला यह एक लरछूत रोग है। सर्दी या बसंत ऋतु में यह रोग होता है। इसमें दर्द, खांसी और ज्वर जैसे उपद्रव हो जाते हैं। रोगी बच्चा अंट-संट बकने लगता है। उसके सारे शरीर में दाने निकल आते हैं। बच्चे में श्वासनली का प्रदाह, फेफड़े का प्रदाह और श्वास में कष्ट आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

आरंभिक ज्वर में – एकोनाइट 3x व्यवहार करें और गरम पानी से बदन पोंछ दें।

खसरा निकल आने पर – पल्सेटिला, जेल्सीमियम, यूफ्रेशिया (नाक और आंखों से बहुत स्राव), एलियम-सिपा।

गोटियां बाहर न निकलने पर – बेलाडोना (नींद में चौंक उठना), पल्सेटिला (पाकाशय की गड़बड़ी), ऐमोन-कार्ब (पुनः रोग की आशंका होने पर), गरम पानी से शरीर पोंछ देना चाहिए।

कष्टदायक खाँसी में – कैलि बाई, स्पंजिय, बेलाडोना, इपिकाक, ब्रायोनिया, एण्टिम टार्ट।

खसरा के बैठ जाने पर – ब्रायोनिया, जेल्सीमियम, ऐमोन-कार्ब, सल्फर।

रोग के बढ़ जाने पर – कैम्फर, आर्सेनिक, एसिड म्यूर, फास्को, बेलाडोना, रस-टॉक्स।

विशेष – सामान्य खसरा के ज्वर में औषधि की आवश्यकता नहीं पड़ती।

मौरबिलीनम 30 – यह औषधि नोसोड खसरे से तैयार किया गया है। जब किसी घर में खसरा हो, तब इस औषधि की 12 या 30 शक्ति की एक मात्रा उन बच्चों को देनी चाहिए, जो रोग से आक्रांत नहीं हैं। इस रोग के लक्षण हैं – जुकाम, खांसी, कान या आंख को कष्ट, त्वचा पर तो दाने होते ही हैं। यह औषधि इस रोग को रोक देती है और जिसे खसरा हो जाए, उसके रोग के बाद शेष रह जाने वाले लक्षणों को भी दूर कर देती है। इसे देने के लिए 30 शक्ति की आठ-दस गोलियों को 6 औंस पानी में डालकर घोल लेना चाहिए और एक बड़ा चम्मच दिन में दो-तीन बार देनी चाहिए।

एकोनाइट 1, 3 – तेज ज्वर, पूर्ण, कड़ी और तेज नाड़ी, बार-बार छींक, जलन भरी आंखें, कपाल में दर्द, सूखी खांसी, गले में सुरसुराहट, कब्ज, छाती में दर्द, बेचैनी और तेज प्यास।

पल्सेटिला 3, 6 – संध्या के समय और रात्रि में खांसी का बढ़ना, गला घरघराना, नाक से गाढ़ा श्लेष्मा या रक्त गिरना, पतले दस्त, पाकाशय की गड़बड़ी, प्यास न रहना या थोड़ी प्यास। यह औषध खसरा ज्वर की सभी अवस्थाओं, सर्दी, अतिसार आदि सब तरह के उपसर्गों में लाभ करती है।

जेल्सीमियम 2x – आंख, मुंह, छलछलाई और फूली-फूली गोटियां अच्छी तरह से नहीं निकलतीं, रोगी (बच्चा) चुपचाप आच्छन्न भाव से पड़ा रहता है; प्यास नहीं रहती। नाक से बहुत अधिक परिमाण में कच्ची सर्दी निकला करती है। इस औषध की प्रायः एकोनाइट के बाद ही आवश्यकता पड़ती है।

ब्रायोनिया 6, 30 – उदभेद अच्छी तरह नहीं निकलते, बैठ जाते हैं अथवा बहुत धीरे-धीरे निकलते हैं। ज्वर के साथ खांसी, सूखी सर्दी, छाती में दर्द, सिरदर्द, बदन में दर्द-दबाने पर आराम मालूम पड़ता है। चुपचाप पड़े रहना, कब्ज।

आर्सेनिक 6, 30, 200 – बहुत कमजोरी, उद्वेग, बेचैनी, कलेजा धड़कना, उदभेद खूब जल्दी-जल्दी मिट जाते हैं, चेहरा बदरंग, मुख में, गाल में घाव, लगातार प्यास; दस्त, कै इत्यादि उपसर्ग आधी रात के बाद बढ़ते हैं, नाक से गरम नई सर्दी का पानी टपकता है, छींक आती हैं, आदि।

कैलि बाई 2 विचूर्ण – सर्दी, खांसी और वायुनली-प्रदाह में इस औषधि से लाभ होता है।

विरेट्रम विरिड Q, 2x – खसरा अच्छी तरह न निकलने की वजह से शरीर में अकड़न पैदा हो जाए, खांसी और छाती में कफ घड़घड़ाए अथवा फेफड़ों में रक्त जमा हो जाए आदि लक्षणों में यह औषध दी जाती है।

कैम्फर 1x – (2 बूंद प्रति आधे घंटे) यदि दाने न निकलें या निकलते-निकलते दब जाएं और मस्तिष्क के लक्षण प्रकट होने लगे, तो यह औषध देनी चाहिए।

एण्टिम टार्ट 6 – वायुनली या फेफड़े पर आक्रमण होने पर।

बेलाडोना 30 – जब खसरे के दाने निकल आएं, चमकीले, लाल, त्वचा गरम हो-ऐसी गरम और लाल मानो स्कारलेट फीवर (ज्वर) हो गया है। गले में दुखन हो, चेहरा सूज-सा जाए, सिरदर्द हो, खुश्क खांसी हो, तब यह औषध दें। एकोनाइट को दाने निकलने से पहले और बेलाडोना दाने निकलने के बाद देनी चाहिए।

क्यूप्रम मेट 6, 30 – खांसी, प्रलाप, रोगी बच्चा नींद की अवस्था में बकता है, क्रोध का भाव प्रकट करता है, चिल्लाता है, और जाग उठने पर अच्छी तरह शांत रहता है। छोटी माता की गोटियां बैठकर अकड़न आदि उपसर्ग प्रकाशित होते हैं।

कैम्फोरा 6 – (कठिन प्रकार के खसरा-रोग में) शरीर नीला दिखने लगता है, शीत आ जाता है, रोगी एकदम निस्तेज हो जाता है, अकड़न के कारण शरीर कड़ा हो जाता है। पेशाब में तकलीफ होती है या पेशाब बंद रहता है।

कैमोमिला 6, 12, 30 – ठंड या सीलन से रोग की उत्पत्ति, अतिसार, दस्त में बहुत ही दुर्गन्ध, पेट में दर्द, रोगी बच्चा बहुत क्रोधी और चिड़चिड़ा हो जाता है।

काफिया 3, 6 – स्नायविक बेचैनी, उत्तेजना, रोगी सो नहीं सकता, सूखी आक्षेपिक खांसी आया करती है।

इयुफ्रेशिया 6, 30 – नाक और आंख से पानी गिरना, आंखों से रोशनी सहन नहीं होती। आंखों का प्रदाह, छींक, खांसी दिन में रहती है।

स्टिक्टा 6, 30 – खसरा के बाद टेढ़ी खांसी, लगातार छींक और नाक छिनकने की इच्छा, किंतु निकलता कुछ भी नहीं, नाक सूखी रहती है।

सल्फर 30, 200 – खसरा की पहली अवस्था में जब गोटियां अच्छी तरह नहीं निकलती, उस समय इसका प्रयोग होता है। इसके अतिरित छोटी माता के बाद जब पुरानी खांसी और आंशिक न्युमोनिया का दोष रहता है; पुराना अतिसार, कान से कम सुनाई पड़ना या कान में पीब होना आदि में भी इससे लाभ होता है।

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