मस्तिष्क ज्वर का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Meningitis ]

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यह ज्वर एक संक्रामक रोग है। युवावस्था में, शीतऋतु और स्वास्थ्य के नियमों का पालन न करने से इस रोग की उत्पत्ति एक प्रकार के जीवाणु (Diplococcus) द्वारा होती है। मेरुदंड आदि मस्तिष्कावरण झिल्ली का प्रदाह ही इसका प्रधान लक्षण है। इसमें अकस्मात जाड़ा लगकर ज्वर आता है और बहुत तेज चढ़ता है; कै या मिचली, चेहरे पर दाने निकलना, फेफड़े का प्रदाह, आंखें फैल जाती हैं। पेशियों का सिकुड़ना, गहरी सुस्ती, माथे में तेज दर्द, स्नायु का पक्षाघात, मस्तिष्क का विकृत हो जाना आदि इसके लक्षण हैं।

बेलाडोना 3x – ज्वर और प्रलाप के साथ मस्तिष्क के विकार की अवस्था में।

साइक्यूटा 3 – माथे और पीठ में बहुत तेज दर्द, पीछे की ओर या एक तरफ शरीर का टेढ़ा हो जाना।

ओपियम 3, 6 – तंद्रा या जड़ की तरह अवस्था, स्थिर-दृष्टि, अंग-प्रत्यंग टेढ़ें, चुप पड़े रहना, बहरापन, चुपचाप-सा रहना।

हेल्लिबोरस 3x – माथे के पीछे की ओर तथा गर्दन में बेहद दर्द, ज्वर की अधिकता, मन का गहरा आसन्न भाव।

विरेट्रम-विरिड Q – उच्च ताप, शरीर में तीव्र अकड़न, माथा पीछे की ओर टेढ़ा हो जाता है।

सिलिका 30 – कानों से कम सुनाई दे। आंखों से आग-सी निकलना, ज्वर की अधिकता।

जेल्सीमियम 1x – खूब शीत, शरीर की गर्मी, तेज सिरदर्द, तंद्रा, नाड़ी कोमल, आंख की पुतली फैली, पक्षाघात और बहरापन आदि।

सिमिसिफ्यूगा 3 – बहुत ऊंचा ताप, पेशियों का सिकुड़ना और अकड़न; जब किसी औषध से लाभ न हो, तो इसका व्यवहार करना चाहिए।

ऐमोन-कार्ब 200 – ज्वर के साथ कान के नीचे और पीछे की ओर तेज दर्द।

क्रोटेलस 3, 6 – टाइफॉयड ज्वर जैसे लक्षण रहने पर, रोगी का निस्तेज भाव, रक्त का विषैला हो जाना।

हेलिबोरस 30 – माथे में पानी इकट्ठा होने के समय, पहली अवस्था में-एकदम बेहोशी, रोगी तकिये में माथा घुसाया करता है, बेहोश-सा पड़ा रहकर एकाएक चिल्ला पड़ता है। कपाल का मांस सिकुड़ जाता है; आंखें बैठ जाती हैं और रोगी टकटकी लगाकर देखा करता है। आंख की पुतली ऊपर की ओर घूमा करती है। बेहोश की तरह पड़ा रहता है और मुंह को ऐसे हिलाया करता है मानो कुछ चबा रहा है। एक बार हाथ, एक बार पैर, इसी तरह हिलाया करता है, पेशाब घट जाता है या बंद हो जाता है। तेज खींचन होती है। पानी देने पर आग्रह के साथ पीता है। हृत्पिण्ड क्षीण, नाड़ी क्षीण, शरीर ठंडा पड़ जाता है।

जिंकम मेट 6 – माथे के तलदेश में बहुत गर्मी मालूम होती है। डर जाने की तरह रह-रहकर चिल्लाकर जाग उठता है। लगातार पैर हिलाया करता है। अंग-प्रत्यंग हमेशा कांपते हैं और हिल उठते हैं, खींचन हुआ करती है। किसी भी औषध से लाभ न होने पर यह देनी चाहिए।

आयोडाइड 6, 30 – सिर्फ इसका अकेले व्यवहार न कर लक्षण भेद के अनुसार – कल्केरिया आयोड या आर्सेनिक आयोड का व्यवहार करें।

आर्सेनिक आयोड 30 – बहुत बेचैनी, कमजोरी, स्नायविक उत्तेजना, विशेषकर दुबले-पतले, सूखे रोगी बच्चों के जिनकी गर्दन के चारों ओर बड़ी-बड़ी गांठ रहती हैं, यह उनके रोग में अधिक लाभदायक है।

कैल्केरिया आयोड 30 – कैल्केरिया की धातु और आयोडम की गांठों के लक्षण के साथ दूसरे लक्षण मिलने पर, इसका व्यवहार करना अच्छा है।

एगारिकस 6, 30, 200 – सिर में चक्कर आता है, औंघने का भाव, माथे में जलन, माथे, आंख और आंख की पुतलियों में दर्द, समूचे शरीर में, बाएं घुटने में और हाथ में, त्रिकास्थि में, कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द, पेशियों का कांपना, आंख की पुतली और मुंह की पेशियों का कांपना, सारे शरीर में एकाएक बिजली की तरह दर्द होता है। हाथ झूल पड़ता है, बेहोशी के साथ कै होती है, क्षीण दृष्टि, सविराम नाड़ी, हाथ-पैरों का पक्षाघात ।

नक्सवोमिका 3, 6 – माथे के पीछे भयानक दर्द, तेज खींचन, स्पर्श से अकड़न की वृद्धि।

इग्नेशिया 30 – बेहोशी के साथ श्वास में तकलीफ, रोगी लगातार लंबी श्वास छोड़ा करता है। दूसरे लक्षण प्राय: नक्सवोमिका की तरह रहते हैं। इसमें खींचन कम होती है।

फाइजस्टिग्मा 6 – आंख की पुतली सिकुड़ी हुई, कब्जियत, पेट फूलना, धनुषटंकार की तरह खींचन, हृत्पिण्ड की क्रिया में गड़बड़ी।

कैनाबिस इंडिका 30 – स्थिर दृष्टि, आंख की पुतली फैली रहती हैं, कमजोर नाड़ी, सिर में चक्कर आता है, माथे के पीछे वाले भाग में भयानक दर्द होता है, बेहोशी-सी, शरीर टेढ़ा हो जाता है, ठंडा और लसदार पसीना आता है, नाड़ी की गति असमान रहती है। तेज रोशनी और आवाज सहन नहीं होती।

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