उदर कला शोथ का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Peritonitis ]

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उदर तथा पेट में एक भेद है। पेट वह है, जिसमें जो कुछ हम खाते हैं, वह जाता है, फिर वह छोटी और बड़ी आंतों से गुजरता है; पेट से लेकर आंतों तक के समस्त अंग-समूह को उदर कहा जाता है। पेट को (Stomach) और उदर को (Abdomen) कहते हैं। इस सबको ढकने वाली एक श्लैष्मिक परत है, जिसे उदर-कला (Peritioneurm) कहते हैं और उदर को ढकने वाली इस झिल्ली के शोथ को उदर-कला शोथ (Peritonitis) कहते हैं। पेट पर चोटादि लगने से भी यह रोग हो जाता है, किंतु अधिकतर यह रोग सर्दी के कारण उत्पन्न होता है। इसमें पेटदर्द होता है। एक दर्द तो वह होता है, जिसे “उदर-शूल” (Colic) कहते हैं। उदर-शूल में दबाने से राहत महसूस होती है, किंतु उदर-कला शोथ चूंकि सूजन से होती है, इसमें हल्का-सा दबाव पड़ने पर दर्द होने लगता है, यदि दर्द हो रहा हो, तो वह और भी ज्यादा बढ़ जाता है। शोथ का यह दर्द उदर-शूल से उल्टा होता है। कब्ज, ज्वर, ठंड लगना; ऐपैडिसाइटिस के ऑपरेशन के बाद भी उदर-कला शोथ हो सकता है। जलोदर भी इस शोथ का कारण बन सकता है।

नए उदर-कला शोथ में निम्न औषधियों से लाभ होता है

ब्रायोनिया 6, 30 — यदि उदर-कला शोथ में सारे शरीर में ज्वर का ताप भर जाए, सारा शरीर तपने लगे, बेहद प्यास हो, पेट को स्पर्श करते ही दर्द हो, छुआ न जा सके, तब इस औषधि को दें।

कैथरिस 30 — यदि उदर-कला शोथ के बाद उसमें से स्राव आने लगे, ज्वर ज्यादा न हो, किंतु दर्द बहुत हो, गुदा से गले तक जलन ही जलन होने लगे, तब यह देनी चाहिए।

लाइकोपोडियम 30, 200 — पेट वायु से ढोल की तरह फूलकर तन जाए, पेट में वायु भरी हो, वायु से गड़गड़ाहट हो, कब्ज हो, पेट सख्त हो जाए, उसमें तीव्र दर्द हो, तब इसे दें।

एकोनाइट 30 अथवा फेरम फॉस 6 — सर्दी लगने से जब यह रोग हो जाए, तब शुरू-शुरू ज्वर में आता है, घबराहट होती है, पेट को छूने से दुखन होगी, श्वास लेने में कष्ट होता है। ऐसी हालत में सर्दी के कारण उदर-कला शोथ में आरंभ में इस औषधि से चिकित्सा प्रारंभ करनी चाहिए। यदि सर्दी लगने के कारण रोग उत्पन्न हुआ है, तो फेरम फॉस का व्यवहार किया जा सकता है। जब तक रोग के लक्षण कम न होने लगें, तब तक इसे 2-2 घंटे के अंतर से देते रहें।

सल्फर 30 — यदि रोग में एकोनाइट से लाभ न हो, तो इस औषधि का प्रयोग करें।

पुराने उदर-कला शोथ में निम्न औषधियों का प्रयोग करें-

लैकेसिस 30 — जब तनिक-सा भी स्पर्श सहन न हो, तो इसे दें।

एपिस 3, 6 — यदि रोग के शांत होने के बाद भी शरीर में कहीं स्राव भरा रहे, तो इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

मर्क इलसिस 3x — यदि सूजन के बाद स्राव निकलने पर स्राव गाढ़ा हो जाए, तब 5 ग्रेन प्रति घंटे के हिसाब से इसे देना चाहिए।

मर्क सोल 30 — जब सूजन के बाद सूजन पकने लगे और पेट स्राव से तन जाए, रोगी को ठंड की फुरहरियां-सी उठने लगें, पसीना आए, दस्त आने लगें, ज्वर हो, तब यह औषधि देनी चाहिए।

प्रसव के बाद उदर-कला शोथ होने पर-

एकोनाइट 30 — यदि प्रसव के बाद उदर-कला शोथ हो जाए, उसके साथ दर्द, ज्वर, घबराहट, बेचैनी हो, तब इस औषधि को दें। ये ही इस औषधि के लक्षण हैं।

ब्रायोनिया 6, 30 — इस रोग में यदि ब्रायोनिया के लक्षण हों; तेज काटता हुआ दर्द जो तनिक-सी हरकत से बढ़ जाए; जिस तरफ दर्द हो, उधर लेटने से रोगी को आराम पड़े और प्यास अधिक हो, तब उसे दें।

क्षयरोग में उदर-कला शोथ होने पर

कैल्केरिया कार्ब 6, 30 — छोटी आंतों तथा उदर-कला का जहां जोड़ है, वहां की ग्रंथियां सूज जाएं, कड़ी हो जाएं, तो इस औषधि से लाभ हो जाता है।

सल्फर 30 — जब उपर्युक्त औषधियों से कोई लाभ होता न दिख रहा हो, तब यह औषधि दी जानी चाहिए।

बैसीलीनम 30, 200 — क्षय-प्रकृति के रोगी के उदर-कला शोथ में यह औषधि सप्ताह में दो-एक बार अवश्य दी जानी चाहिए।

आर्सेनिक 30 — क्षय-प्रकृति के रोगी को उदर-कला शोथ हो जाए, खांसने या हंसने पर पेट में ऐसा दर्द हो मानों वहां कोई फोड़ा हो; बेचैनी, प्यास, घबराहट, जलन जिसमें सेंक से आराम पड़े इस लक्षणों में यह औषधि लाभ करती है।

एब्रोटेनम 3, 6, 30 — पेट में कठोर-कठोर गांठे हों, पेट खूब फूल जाए, ऐसा प्रतीत हो कि आंतें बैठी जा रही हैं, तब इस औषधि का प्रयोग करें।

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