गलकोष प्रदाह का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Pharyngitis ]

735

मुख में तालु का हिस्सा “गलकोश” या अंग्रजी में “फेरिंग्स” कहलाता है। फैरिंग्स में जब प्रदाह हो जाता है, तो उसे “फैरिंजाइटिस” कहते हैं। बहुत जोर-जोर से बात करना, चिल्लाकर भाषण देना, बहुत ज्यादा धूम्रपान करना, शराब पीना, गर्म चीजें खाने या पीने के बाद ठंडा खा-पी लेना इस रोग के उत्पत्ति कारक हैं।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30 — साधारण बातचीत करने पर ही खांसी शुरू हो जाती है, लसदार कफ निकलता है, मानों किसी ने गला पकड़ लिया है, इसलिए गला खखारना पड़ता है। रोग की जीर्णावस्था में लाभकारी है।

बेलाडोना 6, 30 — गलकोश-प्रदाह हो, यकायक खांसी उठने लगे, गले में जलन-सी होती है, जिह्वा कुछ सूज जाती है। इसमें यह औषधि लाभ करती है।

एपिस 6, 30 — गले के भीतर सूजन, देखने पर लाल-लाल दिखाई देता है। ततैये के डंक मारने जैसा दर्द होता है, कोई भी चीज निगलने अथवा श्वास छोड़ने में भी कष्ट होता है। हल्का ज्वर रहता है, ठंडा पानी पीने से राहत मिलती है, नए प्रदाह में लाभकारी है।

सेंग्विनेरिया 3, 6 — गले में, भीतर दाएं भाग में गलकोश का प्रदाह, गले में खुश्की और जलन, अल्सर आदि की आशंका होने पर दें।

ऐमोन म्यूर 30 — गलकोश में दर्द होता है, खांसने पर कष्ट के साथ रस्सी की तरह कफ निकलता है, गला जकड़ा-सा रहता है, स्वर-यंत्र में मिर्चियां-सी लगती हैं, नए प्रदाह में अत्यंत लाभकारी है।

जिंकम मेट 3, 6 — गले में जमे कफ को खांस-खांसकर निकालने की कोशिश करता है, गला और स्वर-यंत्र दोनों ही खुश्क रहते हैं, गले में दर्द की पीड़ा चेहरे पर दिखाई देती है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30 — ऐसा लगना मानो गले में किसी ने कुछ ठूस दिया है, जरा-सा बोलते ही गला सूख जाता है, गले में जख्म और जलन होती है, पुराने प्रदाह में लाभकारी है।

सिस्टस 6, 30 — रोगी गले की खुश्की दूर करने के लिए थोड़ा-थोड़ा पानी पीता रहता है, गलकोश की सूजन के कारण दोनों हाथों से गले को पकड़े सिर झुकाए बैठा रहता है तथा शीत का अनुभव करता है।

आर्सेनिक आयोड 30 — गले में जख्म, अत्यधिक पीड़ा, अकड़न की तरह दर्द होने पर इस औषधि का प्रयोग करें।

कैल्केरिया फॉस 30 — गले में सूखापन, पीने और निगलने में जलन होती है, खूब गाढ़ा, रक्त मिला श्लेष्मा निकलता है, उपजिह्वा का गले के साथ सट जाने के कारण श्वास लेने में भी कष्ट की अनुभूति होती है।

कैलि म्यूर 3x, 6x — गलकोश के प्रदाह में यदि गले से सफेद गाढ़ा कफ निकलता हो, गले में दर्द और खींचन हो, तब दें।

ऑरम ट्राइफाइलम 30 — स्वरभंग, गले के भीतर सूजन, गला और मुंह के भीतर तेज दर्द और जलन की पीड़ा, खाने या पीने की चीज निगलने में भयानक कष्ट, मुंह के भीतर जख्म, अधिक मात्रा में कफ का निकलना।।

एलूमेन 6, 30 — कष्ट के कारण थूका न जाता हो, गलकोश का खुश्क होना, कफ आदि न निकलता हो, रोगी गले के कारण बेचैन रहे, प्यास लगे।

कैंथरिस 30 — गले में दर्द की अधिकता, तेज जलन, दूध और पानी पीने में भी भयानक कष्ट।

लाइकोपोड़ियम 30, 200 — गलकोश में खुश्की के कारण परेशानी, थूक भी न निगला जाता हो, सैलाइवा बिल्कुल भी न रहे।

कैप्सिकम 6 — वात और अम्ल के रोगियों का गलकोश-प्रदाह, उपजिह्वा बढ़ी हुई, गले में मिर्ची खाने की तरह जलन, नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों के लिए लाभदायक है।

वायेथिया 3.6 — कवियों और भाषण देने वालों का गला बैठ जाना, रोगी खखारकर गला साफ करने की कोशिश करता है। गलकोश पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है।

फेरम फॉस 3x — ज्वर, गले के भीतर लाल रंग का सूखा गलकोश, नया प्रदाह और दर्द में इसकी 3x औषधि को ग्लिसरिन में मिलाकर रुई की फुरेरी से बाहर की ओर लगाएं।

गुयेकम 6 — गले में कांटा बिंधने की तरह दर्द, मुंह सूखा हुआ, लार का अधिक बहना, नये स्वरयंत्र-प्रदाह में लाभदायक है।

सीपिया 30 — गले का बैठा होना, खांसने में थूक के साथ रक्त का जाना, निगलने में गलकोश में दर्द, बोलने में भी पीड़ा का होना।

हिपर सल्फर 30, 200 — कुछ भी निगलने के समय ऐसा दर्द जो कान तक फैल जाए, साथ ही गले में ऐसा दर्द मानो गले में कांटा चुभोया जा रहा है।

इग्नेशिया 30, 200 — गले में दर्द हो और वह रुंधता-सा प्रतीत हो, कफ आदि की कोई समस्या न हो।

सल्फर 6 — गले में पहले दाहिनी ओर ओर फिर बाईं ओर प्रदाह होता है, इसके साथ ही गला भीतर से बहुत सूखा और जलन भरा रहता है।

हाइड्रस्टिस 30 — रोगी को ठंडक सहन नहीं होती, पीले या सफेद रंग का कफ निकलता रहता है, गले में दर्द, ठोस पदार्थ निगलने में कष्ट होता है।

प्लम्बम 6 — गलकोश पर छोटे-छोटे जख्म रहते हैं। दाहिनी ओर से सूजन बाईं ओर फैल जाती है। रोगी बेचैन हो उठता है।

कैलि बाईक्रोम 30 — गलकोश चमकीले और तांबे के रंग के दिखाई देते। हैं। गले में दर्द रहता है; तालु पर भी रोग का आक्रमण होता है, खांसने पर लसदार गोंद की तरह कफ निकलता है।

मैग्नेशिया फॉस 30 — गलकोश फूला रहता है, कोई भी चीज निगलने में ऐसा प्रतीत होता है मानों दम अटक जाएगा, खांसी उठती है।

मर्क्युरियस बिन आयोड 6, 30 — दूध या पानी के घूट लेने पर गले के भीतर दर्द होता है। टांसिल, उपजिह्वा और गरदन की गांठ फूल जाती है। स्वरभंग, मुंह से बदबू आती है और लार निकलती है। पुराने गलकोश-प्रदाह में लाभदायक है।

फाइटोलैक्का 30 — गला भीतर से सूखी और दर्द भरा रहता है, टांसिल और तालु फूला रहता है। रोटी आदि निगलने के समय दर्द कान तक चढ़ जाता है, नये प्रदाह में लाभकारी है।

Comments are closed.