वात ज्वर का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Rheumatic Fever ]
इसकी पहली अवस्था में कभी-कभी ज्वर के साथ अंग-प्रत्यंग में खूब दर्द रहता है, टाइफॉयड में भी इस तरह का दर्द रहता है, वात में-संधि-स्थानों का दर्द घट जाने पर फिर अविराम ढंग का उच्च ज्वर आने लगता है, इसके साथ ही ब्रांकाइटिस रहता है। टाइफॉयड में भी ठीक इसी प्रकार ज्वर के साथ ब्रांकाइटिस रहती है, लेकिन इन दोनों में अंतर यह है कि वात में – टाइफॉयड के उदर और आंतों से संबंध रखने वाले उपसर्ग और कितने ही दूसरे-दूसरे लक्षण बिल्कुल नहीं रहते, यही देखकर इनका प्रभेद करना पड़ता है।
ज्वर पहले 100 से 104-105 डिग्री तक प्राय: एक सप्ताह तक प्रबल रहने के बाद 99-100 से प्राय: 102 डिग्री तक रहता है। सवेरे उत्ताप कुछ कम रहता है, और फिर धीरे-धीरे बढ़ता है, ज्वर प्रबल होने से अन्यान्य लक्षण भी प्रबल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त नाड़ी मोटी और तेज प्यास, जिह्वा पर सफेद मैल, बहुत अधिक और बदबूदार पसीना (पसीना आने पर भी ज्वर नहीं घटता), थोड़ा और लाल रंग का पेशाब, पेशाब में एल्बुमिन आदि कितने ही लक्षण रहते हैं। यह ज्वर रोगी को अधिक दिनों तक कष्ट देता है।
प्रधान औषध – एकोनाइट, ब्रायोनिया, बेलाडोना, फेरम फॉस, रस टॉक्स, जेलसिमियम, इपिकाक, पल्सेटिला, मर्क्युरियस, आइरिस वार्स, कैमोमिला आदि।
एण्टिम-क्रूड 6 – बहुत अधिक गरिष्ठ पदार्थों के सेवन के कारण उत्पन्न वात-ज्वर में, जिसमें जीभ का रंग बहुत सफेद हो, यह औषध लाभ करती है।
डल्कामारा 30 – ज्वर के साथ तीव्र-वमन तथा मिचली के लक्षण हो । अन्य किसी औषध के लक्षण स्पष्ट न हों, तो इसकी 30 शक्ति की एकेक मात्रा हर एक घंटे के अंतर से दें।
एलियम सिपा 30 – तीव्र वात-ज्वर, आवाज में भारीपन, अधिक मात्रा में पेशाब होना, हाथ-पांव में बेहद दर्द।
बैराइटा कार्ब 6 – अधिक ताप की अवस्था, जाड़ा और कंपकंपी, रक्त संचय के कारण ज्वर।
युपिटोरियम-पर्फ 3, 6 – तेज वात-ज्वर, पीठ में ठंड का अनुभव, प्यास की अधिकता।
पोडोफाइलम 6, 30 – ज्वर बढ़ने से पहले पीठ में तीव्र-वेदना, जिह्वा पर सफेदी का लेप, तीव्र प्यास, शरीर में दर्द।
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