परागज ज्वर का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Seasonal Allergies, Hay Fever ]

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इस फीवर का संबंध नाक की श्लैष्मिक-झिल्ली से है। इसमें जुकाम होता है, आंख-नाक से पानी बहता है, हल्का ज्वर हो आता है। आरंभ में साधारण सर्दी लग जाने से ऐसा होता है। कभी-कभी आंधी, धूल, किन्हीं विशेष फूलों की महक, धुआं, सूर्य की चौंध आदि के कारण भी यह रोग हो जाया करता है। इस रोग का आक्रमण होने पर नाक में खुजली मचती है, बेहद छींकें आती हैं, नाक और आंख से पानी बहता है, नींद नहीं आती, ज्वर बना रहता है।

स्टिक्टा 3, 6 — नाक बिल्कुल ठस हो जाए, बंद हो जाए, लगातार छींकें आती रहें, सिर में दर्द हो, तब इसका उपयोग लाभप्रद है।

आर्सेनिक 3 — जब हे-फीवर को प्रकोप चल रहा हो; ज्वर, छींक और जुकाम साथ-साथ हों, तब इसकी 3 शक्ति देने से लाभ होता है।

लैकेसिस 30 — नया जुकाम तथा उसमें सिर-दर्द ऐसा होता है, जो नाक तक पहुंचता है, यह सिर-दर्द तब होता है, जब नासिका से बहने वाले स्राव को किसी तीव्र औषधि से रोक दिया जाता है। जुकाम के रुक जाने के कारण नींद से उठने पर रोगी सिर-दर्द अनुभव करता है, बार-बार उसे छींकें आती हैं। लैकेसिस की 30 शक्ति इस रोग का शमन करने को पर्याप्त है।

सोरिनम 30 — जो रोगी सर्दी तनिक-सी भी सहन न सकें; सर्दी लगी नहीं कि जुकाम, छींके और ज्वर तीनों आ घेरते हैं, तब सोरिनम देने की आवश्यकता पड़ जाती है।

सैबाडिला 3, 6, 30 — इस औषधि का नाक की श्लैष्मिक-झिल्ली तथा आंख की अश्रु-ग्रंथियां पर विशेष प्रभाव है, और क्योंकि “हे-फीवर” में नाक तथा आंख से लगातार स्राव बहता है, इसलिए इस रोग में यह उपयुक्त औषधि है।

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