ब्रोंकाइटिस का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Remedies For Bronchitis ]

2,478

ब्रोंकाइटिस को वायु-नली का प्रदाह भी कहते हैं। गले की जिस नली के भीतर से वायु का आवागमन होता है, उसके मध्य भाग को ट्रेकिया (Trachea) कहते हैं। इस ट्रेकिया के नीचे वाले अंश से दो मोटी नली (Bronchial Tube – वायु नली) दोनों ओर विभक्त होकर क्रमशः अगले भाग की तरफ बहुत-सी पतली-पतली शाखा-प्रशाखाओं के साथ वक्ष के दोनों पार्श्व में फेफड़ों के भीतर प्रवेश करती हैं, इनको वायुनली-भुज और अंग्रेजी में ब्रांकाई (Bronchi) कहते हैं। इनके ही भीतर से फेफड़ों में वायु आती-जाती है। समूची वायु नली के भीतर ही श्लैष्मिक झिल्ली (सांप के कैचुल की तरह एक पदार्थ) है। इस श्लैष्मिक झिल्ली के प्रदाह को वायु-नली भुज-प्रदाह (ब्रोंकाइटिस) कहते हैं। ब्रोंकाइटिस दो तरह का होता है-नया (एक्युट) और पुराना (क्रॉनिक)। इन्फ्लुएन्जा, टाइफाइड, खसरा, हूपिंग-कफ (कुकुर खांसी) प्रभृति नए रोगों के उपसर्ग के रूप में ब्रोंकाइटिस होता है।

नई ब्रोंकाइटिस की भी और दो श्रेणियां हैं – (1) सहज प्रकार और (2) कड़े प्रकार की ।

(1) सहज प्रकार की ब्रोंकाइटिस – इसमें थोड़ी सूखी खांसी और श्वास-प्रश्वास में थोड़ी तकलीफ रहती है। खांसने से बहुत कफ निकलता है। सर्दी भी कम लगती है और सामान्यत: ज्वर 100-101 डिग्री तक रहता है।

स्टेथस्कोप से छाती की परीक्षा – बहुत ही क्षीण आवाज में सीटी बजने की तरह, चाभी मुंह में लगाकर व रह-रहकर फूंक-फूंक कर बजाने की तरह आवाज या कबूतर के बच्चे के बोलने की तरह आवाज आती है। खांसने के बाद थोड़ी देर के लिए वैसी आवाज सुनने को नहीं मिलती। सहज प्रकार के रोग में केवल वायु-नली पर आक्रमण होता है, इसलिए वैसी आवाजें साफ नहीं आतीं।

(2) कड़े (कठिन) प्रकार की ब्रोंकाइटिस – इसमें बड़ी, छोटी समस्त वायु-नलियों पर आक्रमण होता है और उनमें सर्दी जमी रहती है, इसलिए उनमें वायु के आने-जाने का मार्ग प्राय: बंद हो जाता है। यदि यह सर्दी किसी प्रकार से बाहर न निकले, तो श्वास बंद होकर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। बच्चों और बूढ़ों को यह रोग होने पर बहुत ही डर की बात है। रोगी को श्वास लेने में बहुत तकलीफ होती है और तेज सूखी खांसी उठती है। कफ बिल्कुल भी नहीं निकलता। गले में घड़घड़ और छाती में सांय-सांय आवाज होती है। पीड़ा की वजह से रोगी छाती दबाकर खांसता है या छाती को दबाए रखने की चेष्टा करता है। श्वास, खिंचाव, दमा आदि रोग के उपसर्ग संध्या तक बढ़ जाते हैं।

पहली अवस्था में कफ बहुत गाढ़ा और गोंद या जिलेटिन की तरह लसदार रहता है। रोगी खांसते-खांसते थक जाता है, तो भी सहज में कफ नहीं निकलता। थोड़ी मात्रा में जो भी निकलता है, वह होंठों में अटक जाता है। जब यह देखें कि कष्टदायक लसदार कफ ढीला होता आ रहा है और थोड़ा ही खांसने पर कफ निकल आता है, ज्वर घटना आरंभ हो गया है, 101-102 डिग्री तक उतरता है, छाती में दर्द, श्वास, खिंचाव, हांफना कम हो जाता है, उसी समय समझिए कि रोग की यह दूसरी अवस्था है। इसके पश्चात ही आरोग्यावस्था आरंभ होगी। यदि नई ब्रोंकाइटिस की चिकित्सा ठीक प्रकार नहीं होती या रोगी असावधान रहता है, क्रमश: पुराना रोग आकार धारण करता है, इसमें बहुत अधिक परिमाण में कफ निकलता है और खांसी, श्वास-कष्ट आदि बहुत समय तक बने रहते हैं। इसको ‘क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस’ कहते है। इसमें किसी को खांसी दिन भर रहती है, किसी को सुबह बहुत बढ़ जाती है और ज्यों-ज्यों दिन चढ़ता है, घट जाती है। किसी को खांसी रात में इतनी बढ़ जाती है कि वह सो नहीं सकता। श्वास-प्रश्वास दमे के रोगी की तरह रहता है। कफ पीब की तरह बहुत अधिक परिमाण में निकलता है, यद्यपि छाती में सर्दी भरी रहती है।

एक प्रकार की पुरानी खांसी, जिससे रोगी को हर साल जाड़े के दिनों में तकलीफ भोगनी पड़ती है, वह भी पुरानी अर्थात क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जातीय है। बहुत से वृद्धों को सर्दी-खांसी प्रति वर्ष ऋतु-परिवर्तन में, बरसात में, सर्दी के दिनों में बढ़ जाया करती है और गर्मी में घट जाती है, यह भी क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस है, जिनको हुत्पिण्ड का रोग है, उनमें अधिकांश को क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस रहती है।

कैपिलरी ब्रोंकाइटिस (Capillary Bronchitis)

प्राय: बच्चों को ही यह रोग अधिक होता है। बहुत से पुराने लोग इसे बच्चों की सर्दी कहते हैं। इसमें पहले बच्चे को सामान्य सर्दी होकर ज्वर आता है और कभी ठंडक मालूम होकर और कंपन देकर भी ज्वर हो आता है। ज्वर 102-104 डिग्री तक होता है। बच्चा बेचैन हो जाता है। वह खांसता है, खांसी सूखी और बहुत तकलीफ देने वाली होती है, जल्दी-जल्दी श्वास-प्रश्वास चलता है। रोगी हांफा करता है, गला घड़घड़ाता है, छाती पर हाथ रखकर देखने से भी साफ घड़घड़ व खिंचाव की आवाज मालूम पड़ती है। ज्वर, खांसी, बेचैनी रात में बढ़ते है। बच्चा जब खांसता है, उस समय उसकी आखें लाल हो जाती हैं, खांसते-खांसते कभी कै करता है और इसके साथ ही बहुत-सा कफ भी निकल आता है, इससे बच्चा कुछ राहत महसूस करता है।

बहुत बार बच्चे के खांसने पर जो कफ निकलता है, उसे वह निगल जाता है। इस रोग में तेज श्वास, कब्जियत, दुर्बलता, चिड़चिड़ापन आदि और भी कितने ही लक्षण दिखाई पड़ते हैं। छोटी माता, हूपिंग-कफ प्रभृति रोग उपसर्ग रूप में इस रोग में उत्पन्न होते देखे जाते हैं। इसमें केश की तरह सूक्ष्म श्वासन-संस्थान पर भी आक्रमण होता है। ब्रोंकाइटिस की औषधियां निम्नलिखित हैं:-

एकोनाइट 6 – यह रोग की प्रथम और प्रादाहिक अवस्था में लाभदायक है। खांसने के बाद बच्चा गले पर हाथ फिराता है।

बेलाडोना 6, 30 – सूखी आक्षेपिक खांसी, गले में दर्द, श्वास में कष्ट, फेफड़े में दबाव मालूम होना, खांसने के समय सूई गड़ने की तरह दर्द होता है। चेहरा और आँखें लाल रंग की, ज्वर, गले में घड़घड़ आवाज वाली ढीली खांसी, श्वास-प्रश्वास दबा हुआ, तेज और असमान, खांसी के साथ छींके आना।

ब्रायोनिया 6, 30 – सूखी खांसी, खांसी की चमक से रोगी उठ बैठता है। खाने-पीने से खांसी बढ़ती है और खांसते-खांसते उल्टी हो जाती है। छाती में सूई गड़ने की तरह दर्द, यह दर्द गरम प्रयोग से घटता है। कफ पीला या रक्त मिला रहता है, हमेशा ही लम्बी श्वास लेने की क्रिया रोगी करता है। जल्दी-जल्दी तकलीफ देने वाला श्वास-प्रश्वास, खांसने के समय रोगी छाती दबाता है। यदि रोगी को इस औषध से लाभ होता दिखाई न तो एसक्लिपियस 2x देना चाहिए।

फास्फोरस 6, 30, 200 – स्वर-यंत्र (लेरिंस) में भयानक दर्द, इसलिए बात करने में तकलीफ होती है। फेफड़े में रक्त की अधिकता, छाती मानों कसकर बंधी हुई है, भारी और गरम मालूम पड़ती है। श्वास में तकलीफ, छाती में तेज गड़ने की तरह दर्द होता है।

एण्टिम टार्ट 2x, 30 – बच्चों और वृद्धों के रोग में यह अधिक लाभदायक है। ब्रोंकाइटिस और कैपिलरी ब्रोंकाइटिस के रोग में-रोगी का गला घड़घड़ करता है, स्टेथोस्कोप से सुनने पर छाती से जोर की बिल्ली के गुर्राने जैसी आवाज आती है, खांसने के समय ऐसा जान पड़ता है मानो गले में एक बलगम का ढेला अड़ा हुआ है, खांसने पर अभी ही निकल पड़ेगा, लेकिन निकलता नहीं है। रोगी के कपाल पर पसीना होता है, खांसता-खांसता कै करता है, बेहोश की तरह पड़ा रहता है, बेचैनी या प्यास बिल्कुल ही नहीं रहती है, इन लक्षणों में इस औषध का प्रयोग होता है (इसके बाद एण्टिम आर्स, हिपर व सल्फर आदि औषधियों की जरूरत होती है)।

जिन सब रोगों में पहले ब्रोंकाइटिस होकर अंत में निमोनिया हो जाता है, ऊपर से फुसफुस के निचले भाग पर रोग का आक्रमण होता है, दाहिनी ओर के फुसफुस पर रोग का आक्रमण अधिक होता है (बाएं फेफड़े पर रोग का आक्रमण होने पर सल्फर) छाती में सूई भेदने की तरह दर्द रहता है, वहां एण्टिम टार्ट विशेष लाभदायक है।

बच्चों की कैपिलरी ब्रोंकाइटिस अर्थात ब्रांको-न्युमोनिया में एण्टिम टार्ट की निम्न शक्ति का खूब जल्दी-जल्दी प्रयोग करना पड़ता है। इससे खांसी बढ़ जाती है, इस कारण से कफ छाती से अलग होकर (इस रोग में खांसी का न रहना या कम होना खराब लक्षण है) निकलने लगता है और शीघ्र ही फेफड़ा साफ़ हो जाता है।

फेरम फॉस 12, 30 – एकोनाइट की तरह सब तरह के प्रदाह की प्रथम अवस्था में यह लाभ करती है और कमजोर व रक्तहीन व्यक्तियों के रोग में अधिक लाभदायक है। इसके ज्वर में एकोनाइट, जेल्सीमियम और फुसफुस के रोग में बहुत कुछ फास्फोरस और फेरम की मध्यवर्ती औषधियां दी जाती हैं, फेफड़े में रक्त की अधिकता, विशेषकर रोग दाहिने फेफड़े से पहले आरंभ होकर एकाएक बाएं फेफड़े पर जा पहुंचता है। ऐसी अवस्था में इससे विशेष लाभ होगा। फेरम में सूखी खांसी रहती है और छाती में भी बहुत दर्द रहता है।

सैंगुनेरिया 30, 200 – फेफड़ों के सब प्रकार के रोगों में यह औषध बहुत अधिक लाभ करती है। यदि सूखी खांसी रहती है, छाती में जलन और भारीपन का अहसास होता है, खांस-खांस कर लसदार गोंद की तरह या लोहे के जंग की तरह बलगम निकलता है, खांसी से रोगी उठ बैठता है, मानो दाहिनी ओर के स्तन के नीचे जख्म हो गया है, ऐसा दर्द होता है। रोगी सोया रहने पर अच्छा रहता है।

पाइलोकार्पस 6, 30 – इसका दूसरा नाम जैबोरेण्डी है। इसमें श्वास-नली की श्लैष्मिक-झिल्ली में प्रदाह होता है, इसी वजह से रोगी लगातार खांसता है, श्वास-प्रश्वास में तकलीफ होती है, बलगम निकलने पर उसके साथ फेन भी रहता है।

एमोनियेकम गम 3, 6 – पुराने प्रकार की ब्रोंकाइटिस, छाती में बहुत अधिक पीब की तरह बलगम रहता है, लेकिन खांसने पर बहुत थोड़ा निकलता है। सर्दी के दिनों में रोगी की दशा बहुत खराब रहती है। कलेजा खूब जोर-जोर से धड़कता है, उससे रोगी को बहुत तकलीफ होती है, छाती में खूब जोर की घड़घड़ की आवाज स्टेथोस्कोप में सुनाई पड़ती है।

आर्सेनिक 30, 200 – श्वास लेने में कष्ट होता है, गला सांय-सांय करता है, खांसने पर कुछ भी नहीं निकलता या बहुत देर तक खांसने पर थोड़ा-सा कफ निकलता है। छाती में बहुत पीड़ा देने वाला दर्द, इसके साथ ही छटपटाहट, घबराहट, प्यास, मृत्यु-भय इत्यादि लक्षण वर्तमान रहते हैं। न्युमोनिया में जिस समय फेफड़े में जख्म हो जाता है और कफ के साथ पीब मिली रहती है, उस समय यदि इसका चरित्रगत लक्षण-बेचैनी इत्यादि रहे, तो रोगी निश्चय ही आर्सेनिक से आरोग्य हो जाएगा। ऐसा रोग वृद्धों को हो, तो यह और भी अधिक लाभ करती है।

सेनेगा 30 – सीना देखने में कुछ पतला मालूम होता है। खांसी के साथ छींक आती है। (वायु-नलियों की सर्दी जिसमें वक्ष-प्राचीर में यंत्रणा रहती है), सेनेगा में ठीक ऐन्टिम टार्ट की तरह बहुत ज्यादा कफ जमा रहता है, गला सांय-सांय घड़घड़ करता है, बहुत खांसी आती है, श्वास छोड़ने और लेने में कष्ट होता है, छाती बहुत भारी मालूम होती है, तब इस औषध से लाभ हो जाता है।

सल्फर 30, 200 – रोग थोड़ा पुराना हो जाने पर लाभदायक है, इसमें बाएं फेफड़े पर रोग का आक्रमण अधिक होता है। सल्फर में ठीक एण्टिम टार्ट की तरह गला घड़घड़ाया करता है, समूची छाती के भीतर मानो गर्मी मालूम होती है। कफ हरे रंग का पीब की तरह रहता है, इसका स्वाद मीठा रहता है, छाती भारी मालूम होती है, सूई गड़ने की तरह दर्द भी रहता है। आधी रात में रोगी हांफता हुआ-सा उठ बैठता है। सल्फर न्युमोनिया की एक प्रधान औषध है।

ऐमोन म्यूर 6, 30 – स्वर-यंत्र में जलन और स्वर-भंग रहता है, सूखी दम घुटने की तरह खांसी रहती है। चित्त होकर और दाहिनी करवट सोने पर तकलीफ बढ़ जाती है। छाती में सूई गड़ने की तरह दर्द होता है। तीसरे पहर खांसी में कुछ कमी रहती है, गला घड़घड़ करता है और बहुत मात्रा में कफ निकलता है। छाती में छोटी-सी जगह में जलन होती है, छाती भारी मालूम होती है, एक गोले की तरह पदार्थ ऊपर की ओर चढ़ता है।

ऐमोन कॉस्टिकम 30, 200 – श्वास लेने और छोड़ने में भीषण कष्ट होता है। श्वास-नली के मुंह में आक्षेप (spasm) की वजह से श्वास मानो बंद हो जाती है, रोगी श्वास छोड़ने के लिए घबराने लगता है, गलनली में दर्द रहता है। उपजिह्वा में सफेद कफ चिपका रहता है, बहुत अधिक मात्रा में कफ निकलता है।

आर्सेनिक आयोड 3, 6, 6x, 30 – ऐपिडेमिक (बहुव्यापक) इन्फ्लुएन्जा के बाद ब्रांको-न्युमोनिया में दम अटकने वाली सूखी खांसी, नाक चिपक जाना, स्वर-भंग, बेचैनी। कफ पहले पतला, इसके बाद गाढ़ा निकलता है, अंत में हफनी की तरह खिंचाव रहता है।

एण्टिम आर्स 3x, 6x, 30 – श्वास में बहुत खिंचाव, खांसी, रोगी हांफा करता है, श्वास में तकलीफ होती है, बहुत कमजोरी रहती है। एण्टिम के सर्दी के लक्षण और आर्सेनिक की छटपटी, अंतर्दाह प्रभृति इकट्ठे मिले रहने पर इससे विशेष लाभ होता है।

चेलिडोनियम 6, 30 – यह बच्चों के रोग में अधिक लाभदायक है। इसकी खांसी खूब ढीली होती है, गला घड़घड़ किया करता है, लेकिन इतनी ढीली खांसी रहने पर भी सहज में ही कफ नहीं निकलता है। इस रोग के साथ यदि रोगी में यकृत का भी दोष हो और दाहिने कंधे में दर्द रहे, तो रोग बहुत दिनों का पुराना होने पर भी इस औषध से लाभ होगा।

हिपर सल्फर 30, 200 – रोगी को हवा बिल्कुल भी सहन नहीं होती है, शरीर में थोड़ी हवा लगते ही बीमार पड़ जाता है। छाती में सांय-सांय आवाज होती है, खांसी बिल्कुल ढीली रहती है, यद्यपि कुछ देर तक खांसते रहने पर थोड़ा-सा कफ निकलता है। खांसी की धमक से पसीना निकला करता है, हल्का ज्वर रहता है।

इपिकाक 3, 30, 200 – छाती सर्दी से भरी रहती है, गला सांय-सांय करता है, घड़घड़ाने की आवाज निकलती है। जल्दी-जल्दी आक्षेपिक खांसी आती है, तो भी सहज में कफ नहीं निकलता है, उल्टी हो जाती है। बच्चा खांसता-खांसता थक जाता है। चेहरा नीला हो जाता है। उल्टी के साथ थक्के का थक्का कफ निकलता है।

लाइकोपोडियम 30, 200 – दाहिने फेफड़े पर रोग का आक्रमण अधिक होता है। छाती की परीक्षा में खूब जोर की घड़घड़ाने की आवाज आती है, बहुत अधिक परिमाण में पीले रंग का गाढ़ा कफ निकलता है। ज्वर रहता है, तो वह शाम 4 बजे बढ़ जाता है। कब्जियत, पेट फूलना इत्यादि उपसर्ग भी रहते हैं।

एसिड फॉस 30, 200 – शाम के बाद से ही खांसी बढ़ने लगती है, कफ पीब मिला पीले रंग का और स्टैनम की तरह नमकीन स्वाद का रहता है। सर्दी सहन नहीं होती है। हल्की ठंडक से ही सर्दी लग जाती है। रोगी हमेशा ही गरम वस्त्र व्यपहना करता है।

स्क्युला 3 – खांसी ढीली, गला खूब घड़घड़ करता है और बहुत ज्यादा कफ निकलता है। इसका एक विशेषत्व यह है कि सवेरे के समय खांसी खूब ढीली रहती है, रोगी इतने में ही थक जाता है, शाम के समय सूखी खांसी आती है, उससे कष्ट नहीं होता, खांसते-खांसते मूत्र निकल जाता है। यह ब्रोंकाइटिस की अच्छी औषधि है।

ब्रांकोरिया (अधिक कफ निकलने वाली खांसी) की औषधियां निम्नलिखित हैं :-

इयुकैलिप्टस 6, 2x व निम्न शक्ति – वृद्ध व्यक्तियों की ब्रोंकाइटिस या जिन्हें दमा का रोग है, उनके रोग में यह औषधि अधिक प्रभावशाली व लाभदायक है।

बेलसमम पेरु 1, 6x – ब्रोंकाइटिस और थाइसिस दोनों तरह के रोगों में यदि पीब की तरह गाढ़ा कफ निकलता हो, तो यह औषधि लाभ करती है।

एण्टिम टार्ट और केलि सल्फ की तरह इसमें छाती में जोर की घड़घड़ाहट की आवाज रहती है, कफ खूब ढीला रहता है। उपदाह पैदा करने वाली हल्की खांसी और थोड़ा कफ निकलता है, सेवन करने पर यह कफ निकाल देती है और पुराने ब्रोंकाइटिस में भी लाभ करती है।

स्टैनम 30, 200 – शाम से आधी रात तक तेज सूखी खांसी, हंसने या रोने पर भी खांसी बढ़ती है। दिन के समय अधिक मात्रा में कफ निकलता है। छाती में बहुत दर्द रहता है। कमजोरी मालूम होना, यहां तक कि बोलते समय तकलीफ होती है। श्वास छोड़ने पर बाईं ओर की छाती में सूई गड़ने की तरह दर्द होता है।

Comments are closed.