कुकुर खांसी (हूपिंग कफ) का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Remedy For Whooping Cough ]

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इसका दूसरा नाम-पार्टुसिस (Pertussis) है। साधारणतः 2 वर्ष से नीचे के बच्चों को ही यह रोग हुआ करता है। यदि रोग बहुव्यापक (एपिडेमिक) हुआ, तो 8 वर्ष की आयु तक भी आक्रमण कर सकता है। हूपिंग-कफ का आक्रमण जीवन में केवल एक ही बार होता है और कहा जाता है कि टीका लगवाने से ही यह रोग दूर हो जाता है। हूपिंग-कफ की तीन स्टेज (अवस्थाएं) हैं – (1) कैटरैल, (2) कांवल्सिव, (3) क्रिटिकल ।

(1) कैटरैल स्टेज – प्रथमावस्था-इस अवस्था में साधारण सर्दी-खांसी होकर रोग की उत्पत्ति होती है। थोड़ा ज्वर रहता है, खांसी में कफ (श्लेष्मा) नहीं निकलता, क्रमश: धीरे-धीरे नई सर्दी के लक्षण और ज्वर का ह्रास होता है तथा कफ गाढ़ा और लसदार हो जाता है।

(2) कांवल्सिव स्टेज – द्वितीयावस्था-उपर्युक्त प्रथमावस्था के लक्षण 8-10 दिन तक रहने के बाद खांसी क्रमश: आक्षेपिक (आक्षेपयुक्त) खांसी में परिणत हो जाती है। यही अवस्था अत्यंत कष्टकर अवस्था है। बीच-बीच में खांसी का एकाएक ऐसा दौरा आता है कि उससे बच्चे का दम घुटने लगता है, आंखें और चेहरा लाल हो जाता है। वह कसकर मुट्ठी बांध लेता है, नाक और मुंह से कफ निकलता है, फिर भी खांसी बंद नहीं होती। बच्चा खांसते-खांसते मल-मूत्र या उल्टी कर देता है। सारी देह में पसीना आ जाता है। दांतों के बीच में जिह्वा घुस जाने की वजह से कभी-कभी जिह्वा के पीछे एक या दोनों तरफ घाव हो जाता है। इस खांसी में एक तरह का ‘हूप’ शब्द होता है और शायद इसीलिए इसका नाम ‘हूपिंग-कफ’ पड़ा है। खांसी का वेग दिन-रात में दो-चार बार से लेकर बहुत बार तक हो सकता है, किंतु दिन की अपेक्षा रात में ही अधिक बार और अधिक आक्षेपिक खांसी होती है। कभी-कभी आंखों में रक्त जम जाता है और नाक-मुंह से रक्त निकलता है।

(3) क्रिटिकल स्टेज – तृतीयावस्था-इस अवस्था के लक्षण बहुत कुछ प्रथमावस्था के समान है। खांसी का वेग कम होता है, सहज में ही पतला कफ निकलता है। खांसी संख्या में कम आने लगती है और बच्चा आरोग्य हो जाता है। प्रवीण चिकित्सकों का कथन है कि हूपिंग-कफ के प्रथम आक्रमण होने में 6 सप्ताह, रोग बने रहने में 6 सप्ताह और दूर होने में भी प्राय: 6 सप्ताह, कुल 18 सप्ताह का समय इसका भोग-काल है। यद्यपि यह रोग बहुत दिनों तक रोगी को तकलीफ देता है, लेकिन फिर भी होम्योपैथिक औषध से अपेक्षाकृत बहुत थोड़े समय में ही आरोग्य हो सकता है।

नोट – हूपिंग-कफ में ब्रोंकाइटिस के सभी साउण्ड मौजूद रहते हैं। इसके प्रधान उपसर्ग में – ब्रांको-न्यूमोनिया, न्यूमोनिया, एम्फायसेमा इत्यादि हैं। खसरा, चेचक, आरक्त ज्वर आदि रोगों के उपसर्ग-रूप में भी हूपिंग-कफ होता है। वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि ‘पर्टूसिन‘ इस रोग की विशेष लाभदायक औषध है।

कौक्युलुचीन 30 – यह हूपिंग-कफ का नीसोड है। डॉक्टर क्लार्क ने इसकी बहुत प्रशंसा की है। इस रोग में सर्वप्रथम इसकी दिन में 3-4 मात्राएं देनी चाहिए। यदि एक सप्ताह तक औषध देने के बाद भी आराम न हो, तो मेफाइटिस 3x देनी चाहिए।

मेफाइटिस 3x – यह हूपिंग-कफ की अत्यंत प्रसिद्ध औषधि है। इस रोग में इस औषधि से सफलता प्राप्त करने के लिए निम्न शक्ति का प्रयोग करना ही उचित है। हूप-कफ (कुकुर खांसी) का आक्रमण इतना तेज होता है कि अभिभावक घबरा उठते हैं कि बच्चे को अगला श्वास आएगा भी या नहीं। बच्चे का मुंह नीला पड़ जाता है। श्वास नहीं आता, उसे उठाना पड़ता है। बच्चे की हालत दिन में उतनी खराब नहीं होती, जितनी रात में होती है। मुंह नीला पड़ जाने में मैगफॉस 30 की डॉक्टर ड्यूई ने बहुत प्रशंसा की है।

ड्रोसेरा 30 – महात्मा हैनीमैन का यह कथन था कि कुकुर खांसी की यह मुख्य औषध है। रोगी ‘भों-भों’ करके खांसता है, तारदार श्लेष्मा निकलता है। महात्मा हैनीमैन के कथनानुसार इस खांसी में 30 शक्ति की एक मात्रा देने से सात-आठ दिन में रोग चला जाता है। उनका यह भी कथन था कि इस औषधि की दूसरी मात्रा नहीं देनी चाहिए, क्योंकि दूसरी मात्रा पहली मात्रा के प्रभाव को नष्ट कर देती है और यह रोगी को हानि भी पहुंचा सकती है। इस औषधि का विशेष प्रभाव श्वास-नलिका के ऊपरी भाग पर पड़ता है। सरसराहट वहीं होती है, ज्यों ही रोगी सोने के लिए बिस्तर पर सिर रखता है, खांसी का दौर शुरू हो जाता है। डॉक्टर टायलर ने भी इस औषधि को बहुत लाभदायक माना है। दूसरों को यह रोग न हो, इसके लिए प्रतिरोधक के तौर पर इसका 1x देना चाहिए।

कैलि कार्ब 30 – सवेरे 3 बजे रोग का हर आधे घण्टे के बाद आक्रमण, भौंह तथा आंख की ऊपरी पलक में सूजन, चेहरे पर भी सूजन का आना, सूखी, सख्त खों-खों की खाँसी में दें।

ब्रायोनिया 30 – रोगी बच्चा खाना खाते ही तुरंत उल्टी कर देता है, फिर खाने के लिए आ बैठता है, खाना समाप्त कर लेता है, किंतु फिर खांसी आती है और उसे फिर से उल्टी हो जाती है। खांसी इतनी जबरदस्त आती है कि सारा शरीर हिलने लगता है, खांसी के आक्रमण से बच्चा बिस्तर में उछलकर बैठ जाता है। डॉ० लिलियेंथन के अनुसार यह इस रोग की उत्तम औषध है।

क्यूप्रम 6, 30 – यदि कुकुर खांसी में आक्षेप पड़ने लगे और देर तक रहे, बार-बार पड़े, रोगी अकड़ जाए, तो इसके लिए यह सर्वोत्तम औषधि है। खांसी बड़ी जबरदस्त आती है, गला घुट जाने तक का खतरा हो जाता है। प्रायः ड्रोसेरा के बाद इस औषध को देने की आवश्यकता पड़ जाती है। इस औषधि का विचित्र लक्षण यह है कि रोगी को ठंडा पानी पीने से आराम मिलता है।

मैग फॉस 30 – डॉक्टर विलियम बोरिक और डॉक्टर ड्रयूई का कथन है कि कुकुर खांसी में 30 शक्ति में यह औषधि बहुत अच्छा काम करती है।

नक्स वोमिका 30 – दिन को तर किंतु सायंकाल या रात को खुश्क खांसी उठती है, ठंडी हवा या हरकत से, खाना खाने या पानी पीने से खांसी का कष्ट बढ़ जाता है, छाती में भारीपन महसूस होता है।

बाइबर्नम (मूल-अर्क) 3, 6 – सवेरे-शाम खांसी बढ़ जाती है, लेटने से भी खांसी बढ़ती है। खांसते हुए हर खांसी के साथ मूत्र भी छलक पड़ता है।

कॉस्टिकम 30 – गला बैठने की-सी खांसी या ऐसी खांसी मानो किसी गहरे खोल से उठ रही हो में दें।

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