मस्तिष्क मेरुमज्जा-प्रदाह का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Treatment For Cerebral-Spinal Meningitis ]

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इसको “सेरिब्रो-स्पाइनल मेनिनजाइटिस” कहते हैं। यह एक प्रकार का सांघातिक रोग है, इस में भी रोगी के जीवन की आशा धूमिल रहती है। सेरिब्रो-स्पाइनल मेनिनजाइटिस बहुव्यापक भाव में (एपिडेमिक) बहुदेश-व्यापी होता है। इस रोग का आक्रमण एकाएक ही होता है। आक्रमण के पहले कंपन और शीत होता है। रोगी अज्ञान हो पड़ा रहता है। सिर में बहुत तेज दर्द होता है, पित्त का वमन होता है, रोगी छटपटाया करता है, इसके बाद ज्चर चढ़ आता है, आंख की पुतली सिकुड़ी रहती है। दो-तीन दिन में ही सिरदर्द, सिर से गरदन के पिछले भाग तक, गरदन से पीठ और पीठ से पीठ की मज्जा में चला जाता है, अर्थात् सिर से पीठ तक दर्द होता है, दर्द के कारण रोगी सिर को पीछे की ओर लटकाए रखता है या पेशियों के आक्षेप के कारण से सिर खुद ही पीछे की तरफ झूल पड़ता है।

तीन-चार दिनों के बीच में ही श्वास-पेशी की अकड़न होती है। त्वचा को छूने पर अर्थात् शरीर पर हाथ लगाने से भी बहुत तेज दर्द होने के कारण रोगी कातर हो पड़ता है। भयानक सिरदर्द, हिलने से ही दर्द बढ़ता है। रोगी प्रलाप बकने लगता है, इसके बाद एकदम बेहोशी या अर्द्धचेतन अवस्था आ जाती है। कभी-कभी अद्धग का पक्षाघात या निम्नांग का पक्षाघात हो जाता है। रोगी को आंखों से दिखाई नहीं देता, कान से भी सुना नहीं जाता। भूख-प्यास कुछ भी नहीं रहती, प्रायः कब्ज ही रहता है। पेशाब बहुत थोड़ा होता है, उसमें अंडलाल (एल्बुमैन) रहता है। प्लीहा बढ़ जाता है, कभी-कभी वमन भी होता है।

रोग के उपसर्ग में दाहिनी आंख का प्रदाह, आंख सड़कर नष्ट हो जाती है। ग्रथियों का प्रदाह, ब्रांकाइटिस (वायुनलियों का प्रदाह), फुसफुस प्रदाह, फुसफुसावरक झिल्ली-प्रदाह, हृद्वेष्ट-प्रदाह, कर्णमूल का प्रदाह, मस्तिष्क में जल-संचय आदि लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। इस रोग में बच्चों की मृत्यु अधिक होती है। अथवा रोगी बच्चा अंधा या बहरा हो सकता है, पक्षाघात होता है या जीवन भर के लिए गुंगा हो जाता है। यदि पांच से सात दिनों के भीतर सिरदर्द, वमन, ज्वर, दर्द और गरदन व पीठ का कड़ापन धीरे-धीरे घटता जाए, तो रोगी प्रायः आरोग्य हो जाता है, यह हल्के ढंग का रोग है। कड़े रोग में जहां रोगी की विकार-ग्रस्त अवस्था आ जाती है, कब्ज होता है या पतले दस्त आते हैं; बेचैनी, तेज नाड़ी, संकोचक पेशी का पक्षाघात होता है, हर समय तीव्र ज्वर, बदहवासी, यकायक शीत आ जाना या ताप अधिक बढ़ जाना आदि उपसर्ग रहते हैं, वहां प्रायः रोगी की मृत्यु निश्चित हो जाती है।

एगरिकस 6, 30 — सिर में चक्कर आता है, औंघन का भाव रहता है, माथे में जलन होती है, आंख में और आंखों की पुतलियों और माथे में दर्द होता है; सारे शरीर में बाएं घुटने में और हाथ में, त्रिकास्थि में, कूल्हे की हड्डी में तेज दर्द ओर पेशियों का कांपना, आंख की पुतली और मुंह की पेशियों का कांपना, समूचे शरीर में एकाएक बिजली की तरह दर्द होता है। हाथ झूल पड़ता है, बेहोशी के साथ वमन होता है; क्षीण दृष्टि, कान में मच ऽर के भिनभिनाने की तरह आवाज, सविराम नाड़ी, हाथ-पैरों का पक्षाघात आदि।

साइक्यूटा 30 — समूचा शरीर ठंडा, आंख की पुतली फैली और सुन्न, मुंह और आंख की पेशियों की अकड़न, दांती लगना, माथे के पीछे वाले भाग में तेज दर्द; हिचकी, माथी गरदन के पीछे की ओर टेढ़ा हो जाना, मुंह से आवाज निकलना, कान से सुनाई न पड़ना, कलेजे की पेशियों की अकड़न के कारण श्वास-कष्ट, मुंह से फेन निकलना, अंगों का कांपना; रोगी की गुर्दे जैसी अवस्था हो जाती है।

नक्सवोमिका 6 — माथे के पीछे भयानक दर्द, तेज खींचन, स्पर्श से अकड़न की वृद्धि।

सिमिसिफ्यूगा 3x — दिन-रात कभी कम और कभी ज्यादा खींचन होती है, माथे के दर्द के साथ उल्टी होती है; गरदन के पिछले भाग में और पीठ में दर्द और खींचन होती है, छूने पर कष्ट बढ़ जाता है, खींचन होने से भी बहुत कष्ट होता है।

इग्नेशिया 6 — बेहोशी के साथ श्वास में कष्ट, रोगी लगातार लंबी श्वास छोड़ता है। दूसरे लक्षण प्राय नक्स की तरह रहते हैं। इनमें खींचन कम होती है।

फाइजस्टिग्मा 30 — आंख की पुतली सिकुड़ी हुई; कब्जियत, पेट फूलना, धनुषटंकार की तरह खींचन, हृदय की क्रिया में गड़बड़ी।

कैनाबिस इंडिका 6, 30 — स्थिर दृष्टि, आंख की पुतली फैली रहती हैं, कमजोर नाड़ी, सिर में चक्कर आता है, माथे के पीछे वाले भाग में भयानक दर्द होता है, बेहोश, सामने की ओर धनुष की तरह टेढ़ा हो जाता है, शरीर में ठंडा और लसदार पसीना आता है, नाड़ी की गति असमान रहती है, हिस्टीरिया की तरह लक्षण, रोशनी और आवाज सहन नहीं होती।

क्रोटेलस 3, 30 — बहुत कमजोरी, समूचे शरीर में रक्त की तरह दाग हो जाते हैं। खींचन, तृष्णा, वमन, बेहोश की तरह हो जाना आदि लक्षणों में और रोगी का रक्त विषैला होने पर इसकी आवश्यकता पड़ती है।

जेलसिमियम 6, 30 — इसके दूसरे चरित्रगत लक्षणों के साथ यदि रोगी बहुत कमजोर रहे और पक्षाघात के सब लक्षण दिखाई दें, तो इसकी आवश्यकता होती है। रोगी कान से नहीं सुन सकता, सल्फर और साइलीशिया से लाभ होता है।

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