अपस्मार या मिर्गी का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Treatment For Epilepsy ]

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इसे अंग्रेजी में “एपिलेप्सी” कहते हैं। यह स्नायु-मंडल यानी नर्वस सिस्टम का रोग है। एकाएक बेहोश हो जाना, बेहोशी की अवस्था में आक्षेप या वात-कंपन, मुंह से फेन या लार बहना, आक्षेप के बाद बहुत कमजोरी और नींद आना, ये लक्षण किसी रोगी में दिखाई दें, तो समझना चाहिए कि उसे मिर्गी का दौरा पड़ा है। इस रोग में वंश-परंपरा का विशेष प्रभाव पड़ता है। मद्य का सेवन करने वाले माता-पिता की संतान प्रायः इस रोग की शिकार हो जाती है। जो बच्चे ऐंठन के रोगी होते हैं, उन्हें आगे चलकर मिर्गी हो जाती है। रोगी बेहोशी की अवस्था में “गों-गों” की आवाज करता है; पहले आंखें चक्कर खाती हैं, फिर स्थिर हो जाती हैं, आंखों की पुतलियां ऊपर चढ़ जाती हैं, केवल सफेद अंश दिखाई देता है। दांती लग जाती है, कभी-कभी जिह्वा कट जाती है और लार के साथ रक्त निकलता है; आक्षेप होता है और वह शरीर के एक ओर ही अधिक होता है; आक्षेप के समय चेहरा टेढ़ा हो जाता है, अंगूठा हथेली के भीतर मुड़कर मुट्ठी बंध जाती है, पसीना निकलता है।

पांच से दस मिनट तक ऐसी अवस्था में रहने के बाद रोगी को होश आ जाता है। होश में आ जाने पर वह चारों तरफ आंखें फाड़-फोड़कर देखता है, कलेजा धड़कता है, होश आने पर बहुत कमजोर हो जाता है और सो जाने की कोशिश करता है। रोगी यदि मिर्गी का दौरा के समय पानी या आग में गिर जाए, तो उसकी इत्यु हो जाती है। इस रोग के आक्रमण का कोई बंधा समय नहीं है, इसका दौरा कभी दिन में दो-तीन बार, कभी एक-दो, तीन-चार सप्ताह अथवा और भी अधिक समय का अंतर देकर हुआ करता है। मिर्गी साधारणतः युवाओं और बालकों को ही अधिक होती है। 36 वर्ष से अधिक आयु हो जाने पर प्रायः यह रोग नहीं होता। यदि हो तो समझना चाहिए कि यह उपदंश से उत्पन्न हुआ है। यह रोग जिन कारणों से होता है, उनमें निम्नलिखित कारण ही प्रधान हैं।

मस्तिष्क में चोट, मस्तिष्क के भीतर प्रदाह (सूजन), मस्तिष्क के गठन में गड़बड़ी, मस्तिष्क की आवरण अस्थि का भीतर की तरफ बढ़ना, मस्तिष्क की रक्तहीनता। भय, शोक, क्रोध या किसी दूसरी तरह का मानसिक उद्वेग। स्त्रियों की ऋतु की गड़बड़ी और पुरुषों के अतिरिक्त स्त्री-सहवास या हस्तमैथुन। त्वचा के नीचे पिस्तौल की गोली आदि बाहर की कोई चीज अड़ी रहना और उसके कारण से उत्तेजना। किसी प्रकार का चर्मरोग, मादक द्रव्य के अधिक सेवन से इस रोग की वृद्धि हो जाती है। मिर्गी का दौरा पड़ने पर रोगी को बिस्तर पर सुला देना चाहिए। इस रोग में दांती लग जाती है, इससे जिह्वा कट जाने की संभावना अधिक रहती है, इसलिए दांतों के बीचे में कोई कार्क या कपड़े की गद्दी रख देनी चाहिए और एमिल नाइट्रेट 8 की। 5-7 बूंद रूमाल में डालकर रोगी को सुंघाना चाहिए, इससे रोगी जल्दी होश में आ जाता है। रोगी को तंबाकू, बीड़ी, चुरुट, सिगरेट, शराब आदि सब प्रकार के नशीले द्रव्यों का सेवन करना बंद कर देना चाहिए। मांस-मछली त्याग कर केवल रोटी, दाल, भात, साग, तरकारी, पके ताजा फल आदि आहार पर निर्भर रहना होगा। पेट भर खाना हानिकारक है। मिर्गी के रोग में यदि उपदंश (सिफिलिस) का इतिहास मिले तो औषध की व्यवस्था भी उसी के अनुसार करनी चाहिए। मिर्गी का दौरा प्रायः 2. 3 मिनट से 8-10 मिनट तक रहता है, ऐसा न होकर यदि बहुत देर तक बेहोशी रहे और उसी बेहोशी की हालत में आक्षेप होता रहे और आक्षेप के बाद फिर बेहोशी आ जाए, तो उस हालत में बहुत खतरे की बात है। इस अवस्था में रोगी के माथे पर आइस-बैग रखें और यदि मुंह से औषधि खिलाने में असुविधा हो, तो औषधि की 4 बूंद 1 ड्राम डिस्टिल्ड-वाटर के साथ मिलाकर हाइपोडार्मिक इंजेक्शन से दें।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30 — मिर्गी का दौरा आरंभ होने के 2-3 दिन पहले से ही आंखों की पुतलियों का फैल जाना, डरकर या मासिक ऋतुस्राव के समय फिट (दौरा) आरंभ होना, आक्षेप के पहले और बाद में बहुत बेचैनी रहना, इसके साथ ही अफारा, कलेजे में धड़कन आदि लक्षण रहने पर तथा शराबी और उपदंश, सूजाक आदि रोगों वाले व्यक्तियों के रोग में लाभकारी है।

व्यूफो राना 6, 30 — हस्तमैथुन आदि द्वारा अधिक शुक्रक्षय कर देने के कारण रोग की उत्पत्ति। फिट का अधिकतर रात में पड़ना, रोगी का कई घंटों तक अज्ञान या अचैतन्यभाव से पड़ा रहना, कभी थोड़ी देर तक और कभी बहुत देर तक अकड़न होना, मुंह से रक्त मिली लार निकलना, अनजाने में पेशाब होना, ऊपर की अपेक्षा निम्नांग में आक्षेप अधिक होना, चेहरे पर बहुत अधिक पसीना आना; जननेंद्रिय या अग्रखंड के स्थान से सुरसुरी आरंभ होना, रोगी का सहज में ही क्रोधित हो जाना।

कूप्रम मेटालिकम 30 — दौरा पड़ने से पहले मिचली, औंकाई और मुंह से श्लेष्मा निकलना, पेड़ फूल उठना, हाथों का अपने आप टेढ़ा होकर शरीर की तरफ आना, सुरसुरी होना, दाहिने हाथ में टूट जाने जैसा दर्द होना, कलेजा धड़कना; एकाएक चिल्लाकर रोगी का जमीन पर गिर जाना और बेहोश हो जाना। दौरे के समय उंगलियां मुर्दे जैसी दिखाई देना, अनजाने में पेशाब निकल जाना, छाती और पेट का नीला पड़ जाना। बेहोशी के बाद सिरदर्द होना और दाएं हाथ का रह-रहकर कांपना।

ग्लोनोयिन 30 — माथा और हृदय में रक्त-संचय होना, आक्षेप के समय हाथ पैरों की उंगलियों को अलग-अलग होकर छितरा पड़ना।

आर्टिमिसिया वल्गैरिस 6, 30 — एक के बाद एक, इस तरह कितनी ही बार दौरा पड़ना।।

कैल्केरिया आर्स 30 — फिट आरंभ होने के पहले हृदय में एक तरह का दर्द और कंपन अनुभव होना।

कैल्केरिया कार्ब 30, 200 — फिट पड़ने से पहले इस तरहं मुंह हिलना, जैसे कुछ चबाया जा रहा हो, बहुत बेचैन होना, हाथ-पैर पसार देना, कलेजा धड़कना, ऐसा मालूम होना जैसे हाथ के भीतर या पाकस्थली के ऊपर से पेड़ के भीतर होकर पैर की तरफ कुछ चला जा रहा हो। इसमें फिट पड़ने के उपरांत विराम के समय रोगी चिड़चिड़ा या मूर्ख की तरह हो जाता है। सिर में चक्कर, मध्याह भोजन के पहले सिरदर्द, सिर में पसीना आना, कानों से कम सुनाई पड़ना, स्त्री हो तो जल्दी-जल्दी और थोड़ा ऋतुस्राव होना, गरदन की गांठ फूल जाना इत्यादि कितने ही लक्षण रहते हैं। यह रोग पूर्णिमा के दिन तथा ठंडे पानी में पैर डुबोकर बैठे रहने से बढ़ता है सल्फर के बाद इसका सेवन करने से विशेष लाभ होता है।

कॉलोफाइलम 30 — ऋतुस्राव होने के निकटवर्ती समय में या ऋतुस्राव के समय फिट आए, तो यह औषधि लाभ करती है।

कास्टिकम 30, 200 — रोग का आक्रमण होने के पहले मन खराब होना या पागल की तरह हो जाना, सिर का गर्म होना, शरीर में अधिक पसीना आना, पाकस्थली के ऊपर दबा रखने जैसा एक प्रकार का कष्ट होना, इस कष्ट का छाती की ओर चढ़ते जाना और उससे श्वास में रुकावट होना। रोग के आक्रमण के समय कभी-कभी नाक से रक्त गिरता है, चेहरा लाल हो जाता है, दांत से जिह्य कटती है, सिर एक तरफ खिंचा रहता है, अनजाने में पेशाब निकल जाता है। फिट (दौरा) पड़ने के बाद निद्रा जैसी अवस्था, जिल्ला के दोनों किनारों पर सफेद लेप-सी जम जाता है, सड़ी बदबूदार डकार आती है, कमर में दर्द होता है, बहुत बेचैनी रहती है, रोगी स्थिर नहीं रहता, इधर-उधर दौड़ता है।

डिजिटेलिस 30 — हस्तमैथुन या बहुत अधिक स्वप्नदोष के कारण शुक्रक्षय होकर रोग की उत्पत्ति हुई हो और उसके साथ ही जननेंद्रिय में बहुत कमजोरी रहे, तो इस औषधि से लाभ होता है।

हायोसियामस 3, 30 —-रोग के आक्रमण के पहले सिर में चक्कर आना, आंखों के सामने चिंगारियां-सी दिखाई देना, कान में “सांय-सांय” आवाज होना, पाकस्थली में चबाने जैसा दर्द और साथ ही भूख का एहसास होना। फिट के समय चेहरे का रंग बदल जाता है, आंखें बाहर निकल आती हैं, रोगी चिल्लाता है, दांत किटकिटाता है; मुंह से फेन निकलता है।

इनैन्थि क्रोकेटा 3, 6 — बहुत से विज्ञ चिकित्सक इस रोग में इस औषधि की प्रशंसा करते हैं।

सोलेनम कैरोलिया 6 — 20 से 40 बूंद की मात्रा में इस औषधि के व्यवहार से ग्रैण्ड-मैल और इडियोपैथिक टाइप के लिए तथा पूरी आयु वालों के हिस्टेरो-एपिलेप्सी और हूपिंग-कफ में लाभदायक है।

सल्फर 30 — फिट के पहले मानो कोई छोटा जीव या कीड़ा कमर की तरफ उतरता-सा या दाहिने पांव के तलवे से जांघ की राहे से पेड़ में चढ़ता-सा मालूम होना। फिट के बाद भी कुछ न कुछ आक्षेप रहना, आंख से पानी गिरना, बहुत क्लांत हो जाना और तंद्राच्छन्न भाव से पड़े रहना-इन लक्षणों में इस औषधि का प्रयोग होता है।

टैरैण्टुला हिस्पैनिया 30 — एपिलेप्टि-फार्म का हिस्टीरिया, जहां फिट जल्दी-जल्दी पड़ता है या ज्यादा देर तक रहता है, वहां और हिस्टीरिया में भी यह लाभकारी है।

एब्सिन्थियम 6 — फिट (दौरा) और आक्षेप (स्पैज्म) घटाने की यह सर्वोत्तम औषधि है।

इग्नेशिया 200 — यदि किसी अन्य औषधि के स्पष्ट लक्षण न हों, तो इस रोग का उपचार इस औषधि से संभव है। इग्नेशिया विरोधों की औषधि है। कानों के “घड़घड़” शब्द में चलने-फिरने से, बवासीर की पीड़ा में, ठोस वस्तु निगलने से गले के सूजे टांसिल में राहत मिलती है, रोगी दुख में अट्टाहास करता है, जितना खांसता है, खांसी बढ़ती है। ज्वर में जाड़ा लगने पर प्यास रहती है, आराम से पड़े रहने पर चेहरे का रंग बदलता रहता है, काम-वासना बढ़ने के साथ नपुंसकता होती है। इस प्रकार के विरोधी लक्षण होने के कारण रोगी को मिर्गी का दौरा पड़ जाया करता है। प्रायः भय, आतंक तथा वेदना के कारण मिर्गी का दौरा पड़ने पर इस औषधि का व्यवहार किया जाता है।

क्यूप्रम 6, 30 — ऐंठन तथा मिर्गी की यह अत्युत्तम औषधि है। इसकी मिर्गी में वायु की लहर घुटनों से उठती है और पेट के नीचे के हिस्से तक चढ़ जाती है। उसके बाद रोगी बेहोश होकर गिर पड़ता है, मुंह से झाग आने लगते हैं, मांसपेशियां थिरकती हैं, पिंडलियों में और तलुओं में ऐंठन होती है; अंगूठा उंगलियों में भिंच जाता है। शुक्लपक्ष में मिर्गी का दौरा पड़ना भी इसका लक्षण है। डॉ. हेलबर्ट का कथन है कि यह औषधि मिर्गी के आक्रमणों की संख्या को सफलतापूर्वक कम कर देती है। पुराने तथा कठिन रोग के लिए यह अत्युत्तम औषधि है।

बेलाडोना 30 — यह नए मिर्गी-रोग में लाभकारी है। मुख्यतः यह औषधि ऐंठन (आक्षेप) में काम आती है और मिर्गी के कष्ट को भी कम कर देती है।

साइक्यूटा वाइरोसा 6, 30, 200 — एकाएक शरीर का अकड़ जाना, फिर अंगों का फुदकने लगना, अंगों का तीव्र मोड़-तोड़ और अंत में अत्यंत शक्तिहीनताये इस औषधि के मिर्गी के लक्षण हैं। जबड़े के अकड़ जाने में भी यह अत्यधिक उपयोगी है।

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