Maha Bandh Method and Benefits In Hindi

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महा बंध

वामपादस्य गुल्फेन पायुमूलं निरोधयेत्।
दक्षपादेन तद्गुल्फें संपीय यत्नतः सुधीः॥
शनकैयालयेत्पाणि योनिमाकुञ्चयेच्छनैः।
जालन्धरे धरेत्प्राणं महाबन्धो निगद्यते॥
महाबन्धः परो बन्धो जरामरण नाशनः।
प्रसादादस्य बन्धस्य साधयेत्सर्ववाञ्छितम्॥
(घे.सं. 3/14-16)

विधि

ध्यान के किसी भी आसन में बैठे, परंतु मुख्यतः सिद्धयोगी आसन में ही बैठे। इसमें तीनों बंध एक साथ लगाने होते हैं। अब श्वास लें। पहले जालंधर बंध लगाएँ फिर उड्डियान बंध और मूल बंध लगाएँ। समस्त चक्रों पर क्रमशः मूलाधार से सहस्त्रार तक ध्यान लगाएँ। अनुकूलतानुसार उसी स्थिति में रहिए। अब क्रमशः मूलबंध, उड्डियान बंध फिर जालंधर बंध खोलिए। धीरे-धीरे श्वास लें तथा मूल अवस्था में आने के बाद यही क्रम दोहराएँ। उपरोक्त तीनों बंधों का अभ्यास अच्छी तरह हो जाने के बाद ही यह बंध लगाएँ।

लाभ

  • उपरोक्त तीन बंधों के सभी लाभ इस महाबंध से मिलते हैं।
  • कुण्डली जागरण के लिए अद्भुत।
  • बिंदु (वीर्य) बल की रक्षा हेतु।
  • चित्त शिव-स्थिति में पहुँच जाता है। फलस्वरूप अनेक सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
  • गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम की ही तरह तीनों नाड़ियों का संगम होता है।

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