Mula Bandha Method and Benefits In Hindi

857

मूल बंध

पाणिंना वामपादस्य योनिमाकुञ्चयेत्ततः।
नाभिग्रन्थि मेरुदण्डे सुधीः संपीड्य यत्नतः॥
मेढू दक्षिणगुल्फेन दृढबन्धं समाचरेत्।
जराविनाशिनी मुद्रा मूलबन्धो निगद्यते॥
संसारसागरं तर्तुमभिलषति यः पुमान्।
सुगुप्तो विरलो भूत्वा मुद्रामेतां समभ्यसेत् ॥
अभ्यासाद्वन्धनस्यास्य मरुत्सिद्धिर्भवेदूधुवम्।
साधयेद्यतस्तहिं मौनी तु विजितालसः॥
(घे. सं. 376-9)
अर्थ: मूल का अर्थ जड़, आरंभ, आधार, बुनियाद या धरातल होता है। योग विषय में मूलबंध का सम्बंध मूलाधार चक्र से है, जो कि गुदा और जननेन्द्रिय के बीच स्थित होता है।

विधि

पद्मासन या सिद्धासन में बैठ जाइए। हथेलियों को घुटनों पर रखिए तथा ध्यान की अवस्था में बैठ जाइए। मेरुदण्ड सीधा, नेत्र बंद, शरीर की अवस्था शिथिल और एकाग्रता मूलाधार चक्र पर।
श्वास अंदर लीजिए, अंतकुंभक लगाइए। इसी के साथ जालंधर बंध लगाइए। अब गुदा भाग और जननेन्द्रिय भाग को ऊपर की ओर आकुंचन क्रिया करते हुए उन्हें ऊपर की तरफ़ खींचिए (आपने गाय आदि जानवर को मल त्यागने के पश्चात् देखा होगा कि वह किस प्रकार गुदा को अंदर की तरफ़ खींचते हैं) वैसे ही हमको भी अपने मूलाधार चक्र प्रदेश को खींचना है। यही मूलबंध की अंतिम अवस्था है। क्षमतानुसार रुकिए। अधोभाग ढीला कीजिए व सिर ऊपर उठाइए एवं श्वास छोड़िए। यह अभ्यास बहिकुंभक की अवस्थिति में भी कर सकते हैं। 5 से 10 बार अनुकूलतानुसार कीजिए।
नोट: आसन लगाते समय ध्यान रहे कि एड़ी का दबाव गुदा भाग में पड़े।
विशेष: ग़लत अभ्यास के कारण शारीरिक दौर्बल्य और पौरुष का अभाव होने की आशंका रहेगी। अश्विनी मुद्रा के अभ्यास से साधक को मूलबंध पर अधिकार जल्दी होता है।

लाभ

  • कुण्डली जागरण की क्रिया में सहायक।
  • ऊर्जा शक्ति को ऊर्ध्वमुखी बनाता है। फलस्वरूप चेहरे के कांति, तेज, बल तथा वीर्य की वृद्धि होकर वृद्ध भी युवा के समान दिखाई देता है एवं उसी के समान कार्य करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
  • जननेन्द्रिय के विकार दूर होते हैं।
  • मूलबंध के निरंतर अभ्यास से प्राण, अपान एवं नाद और बिंदु एक होकर योग सिद्धि एवं परमात्मा की प्राप्ति होती है।
  • जालंधर बंध के सभी लाभ भी प्राप्त होते हैं।
  • ब्रह्मचर्य साधने में सहायक।
  • गुदा संबंधी विकार दूर होते हैं जैसे अर्श, गुदा का बाहर निकलना आदि।

Comments are closed.