Svadhishthana Chakra Method and Benefits In Hindi

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स्वाधिष्ठान चक्र

यह द्वितीय चक्र मूलाधार से लगभग दो अंगुल ऊपर एवं नाभि के कुछ नीचे स्थित है। इसमें पद्म छः दल युक्त सिंदूरी रंग का है। दलों पर मंत्र – वं, भं, मं, यं, रं और लं लिखे हुए हैं। उसके बीच में अर्द्ध चंद्र है। यह क्षेत्र श्वेत (उज्जवल) है। इसके अंदर वरुण बीज वं है जो कि मगर के वाहन पर विराजमान है। इसका तत्व हल्का नीला जल है। उस बीज मंत्र के बिंदु पर गरुड़ पक्षी पर भगवान विष्णु बैठे हुए हैं। एवं उनके हाथों में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और पद्म हैं। उनके पीले वस्त्र हैं। देवी शाकिनी हैं, जो श्याम वर्ण हैं। जिनके एक नासिका छिद्र से रक्तधारा बहती रहती है। इस चक्र का सम्बंध प्रजनन करने वाले अंग, भावना, दोनों पैर एवं कुटुंब बढ़ाने की इच्छा से है। यदि चक्र विकार-ग्रस्त है, तो उपरोक्त अंगों पर प्रभाव पड़ता है।
गोरख पद्धति में लिखा है कि इस स्वाधिष्ठान चक्र की सगुण या निर्गुण ज्योति-स्वरूप आत्मा को नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि करके ध्यान करने से साधक आनंद की अवस्था को प्राप्त करता है।
इस चक्र के ध्यान से और भी कई अन्य लाभ मिलते हैं। जैसे शरीर निरोगी हो जाता है। संसार का भय नहीं रहता। मन शांत होता है। ईर्ष्या और राग-द्वेष का क्षय होता है। शरीर कांतिवान बनता है। प्रखर वाणी होती है। प्रजनन सम्बंधी अंग विकसित और सुचारु होते हैं।
अतः स्वाधिष्ठान चक्र का ध्यान अवश्य करना चाहिए। सौंदर्यलहरी में लिखा है कि कुण्डलिनी की आराधना करने वाला व्यक्ति अपने सफल सार्थक जीवन की आभा सब ओर फैलाता है। व्यक्तित्व हिमालय जैसा धवल-निर्मल बनता है। उदारता और सम्पन्नता बढ़ती है। अपनी प्रखर प्रतिभा के कारण वह दुष्टता के सर्यों को गरुड़ की तरह परास्त करने में सफल होता है।

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