Udar Shakti Vikasak Kriya Method and Benefits In Hindi

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उदर शक्ति विकासक क्रिया (अजगरी)

प्रथम विधि

समावस्था में खड़े रहें। श्वास को बाहर निकालकर पेट को पिचकाते हुए पीठ की ओर ले जाएँ। श्वास को यथाशक्ति रोकें। श्वास को अन्दर खींचते हुए पेट फुलाएँ। श्वास को यथाशक्ति (आंतरिक कुम्भक) रोकें। यह क्रिया तीन बार करें।

द्वितीय विधि

समावस्था में खड़े रहें। सूक्ष्म व्यायाम की क्रिया क्रमांक-2 के समान बाईं हथेली को अँगूठा छोड़कर शेष अँगुलियों को गले पर स्थापित करें। दाहिने हाथ की तर्जनी बाएँ हाथ पर उल्टी टिकाएँ। गर्दन को इसी अवस्था में रखते हुए दोनों हाथों को बाजू से नीचे लाएँ (अर्थात् गर्दन को थोड़ा सा लगभग आधा अंगुल ऊपर उठाएँ) । श्वास बाहर निकालकर पेट पिचकाएँ। श्वास को अन्दर लेकर पेट को फुलाएँ। ध्यान को पेट पर केन्द्रित करें और बिना रुके हुए जल्दी-जल्दी यह क्रिया पच्चीस बार करें।

तृतीय विधि

समावस्था में खड़े रहें। सूक्ष्म व्यायाम की क्रिया क्रमांक-3 के समान गर्दन को धीरे-धीरे ऊपर ले जाएँ। भ्रूमध्य में देखें और श्वास छोड़ते हुए पेट पिचकाएँ। श्वास अंदर लेकर पेट फुलाएँ। बिना रुके यह क्रिया पच्चीस बार जल्दी-जल्दी करें।

चतुर्थ विधि

समावस्था में खड़े रहें। क्रिया क्रमांक-4 के समान पैर के अँगूठे से अनुमानतः साढ़े चार फ़िट की दूरी पर सामने देखें। श्वास छोड़कर पेट पिचकाएँ। श्वास खींचकर पेट को फुलाएँ। बिना रुके हुए इस क्रिया को पच्चीस बार करें।

पांचवीं विधि
(कुम्भक)

समावस्था में खड़े रहें। क्रिया क्रमांक-7 से 12 के समान गर्दन को धीरे-धीरे ऊपर ले जाएँ। काकचौच बनाकर आठ अंक मन में गिनें। मुँह से श्वास अन्दर लेते हुए मुँह को बन्द कर तुरन्त गालों को फुलाएँ और ठुड्डी कण्ठ कूप से लगाएँ। 32 अंक तक श्वास को अन्दर रोकें तत्पश्चात् गर्दन सीधी करते हुए 16 अंक पर नाक से श्वास बाहर निकालें। यह क्रिया एक बार करें।

छवीं विधि

समावस्था में खड़े रहें। अंगूठा पेट की ओर रखते हुए दोनों हाथों को कमर पर स्थापित करें, 60° के कोण पर झुकें। सामने देखें और श्वास छोड़कर पेट पिचकाएँ। श्वास खींचकर पेट फुलाएँ, यह क्रिया 25 बार करें।

सातवीं विधि

समावस्था में खड़े रहे। अँगूठा पेट की ओर रखकर दोनों हाथों को कमर पर स्थापित करें। 10° के कोण पर आगे झुकें। सामने देखें श्वास छोड़कर पेट को पिचकाएँ। श्वास को खींचकर पेट को फुलाएँ। यह क्रिया 25 बार करें।

आठवीं विधि

समावस्था में खड़े रहें। अंगूठा पेट की ओर रखते हुए दोनों हाथों को कमर पर स्थापित करें। 60° कोण पर आगे झुकें और सामने देखें। श्वास छोड़कर बाह्य कुम्भक कर आंतरिक शक्ति से अपने पेट को जल्दी-जल्दी हिलाएँ। इस क्रिया को यथाशक्ति करें।

नौवीं विधि

समावस्था में खड़े रहें। अँगूठा पेट की ओर रखकर दोनों हाथों को कमर पर स्थापित करें। 10° के कोण पर आगे झुकते हुए सामने देखें। श्वास को बाहर निकालें, बाह्य कुम्भक कर ख़ाली पेट को आंतरिक शक्ति से आगे-पीछे हिलाएँ। इस क्रिया को एक बार यथाशक्ति करें।

दसवीं विधि (नौली)

दोनों पैरों के बीच एक हाथ का अन्तर रखकर खड़े हो जाएँ। दोनों हाथों को सामने झुककर घुटने पर स्थापित करें।

  • मध्य नौली – नाक से श्वास को बाहर निकालकर पेट को खाली करें। आंतरिक शक्ति से खाली पेट को आगे-पीछे हिलाएँ। पेट को आन्तरिक बल से अन्दर पिचकाते हुए मध्य नौली निकालें। बाएँ हाथ से बाएँ घुटने पर दबाव डालकर बाईं नौली निकालें। इसी प्रकार दाएँ हाथ से दाएँ घटने पर दबाव डालते हुए दाई नौली निकालें। श्वास लेने की इच्छा होने पर पेट हिलाना बंद करें। इस विधि को तीन बार करें।
  • वाम नौली – पुनः श्वास को बाहर निकालें एवं पेट को ख़ाली करें। आंतरिक शक्ति से ख़ाली पेट को दाहिने घुटने को किंचित दबाते हुए बाएँ से दाएँ यथाशक्ति घुमाएँ। श्वास लेने की इच्छा होने पर क्रिया को बन्द करें। इसे वाम नौली कहते हैं।
  • दक्षिण नौली – श्वास बाहर निकालकर पेट को ख़ाली करें। बाएँ घुटने को किंचित दबाते हुए आंतरिक शक्ति से ख़ाली पेट को दाएँ से बाएँ घुमाएँ, श्वास लेने की इच्छा पर क्रिया समाप्त करें। इस विधि को दक्षिण नौली कहते हैं।

उपरोक्त क्रियाओं के लाभ

  • पेट के समस्त विकार दूर होते हैं।
  • पेट के समस्त अंग शक्तिशाली बनते हैं।
  • पेट में जमी चर्बी कम होती है।
  • अध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है।
  • साधक दीर्घ आयु वाला बनता है।
  • कुण्डली जागरण में सहायक है।
  • पाचन संस्थान अपना कार्य तीव्र गति से करने लगता है।
  • नाभि केन्द्र को ठीक रखने में सहायक है।
  • रक्त का संचार भली-भाँति होने लगता है।
  • शरीर की समस्त नाड़ियाँ शुद्ध बनती हैं।

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