Uttanasana Method and Benefits In Hindi

852

उत्तानासन

प्रथम विधि

शाब्दिक अर्थ: उत् एक संस्कृत उपसर्ग है, जो शब्दों में लगकर अर्थ देता है। तान का अर्थ फैलना, फैलाया हुआ, तानना या बढ़ाना। इस आसन में मेरुदण्ड को बलपूर्वक ताना जाता है।
प्रसन्न मुद्रा में अपने आसन में सीधे खड़े हो जाएँ। श्वास छोड़े एवं आगे की ओर झुकते हुए हथेलियों को एड़ियों के पास ज़मीन पर रखें। घुटनों को मुड़ने न दें, अंतिम स्थिति में सिर घुटनों से न लगाकर ऊपर की तरफ़ तानें। मेरुदण्ड भी तना हुआ रहेगा। इस क्रिया में श्वास गहरी लें। अब पुनः श्वास छोड़े और सिर घुटनों से सटा दें (चित्र देखें) । स्वाभाविक श्वास लेते हुए लगभग 1 मिनट या यथाशक्ति रुकें। अब पहले सिर उठाएँ, श्वास लें। हाथ उठाते हुए वापस मूल अवस्था में आ जाएँ।
श्वासक्रम/समय: उपरोक्त विधि में सम्मिलित है।

लाभ

स्त्रियों के मासिक ऋतुस्राव के समय होने वाली पेट की पीड़ा को कम करता है। जल्दी उत्तेजित होने वाले व्यक्ति, चिड़चिड़े स्वभाव एवं तुरंत आवेश या क्रोध करने वाले व्यक्तियों के लिए यह आसन बहुत उपयोगी है, क्योंकि यह मस्तिष्क की कोशिकाओं को शांत करता है एवं मानसिक उदासीनता को नष्ट करता है। उदर-पीड़ा को शांत करता है। यकृत, प्लीहा एवं गुर्दो (किडनी) को लाभ प्रदान करता है। हृदय को पुष्ट करता है। मेरुदण्ड को लचीला बनाता है। एवं मेरुदण्ड संबंधी बहुत से लाभ प्रदान करता है।
विशेष: पादांगुष्ठासन और पाद हस्तासन ये दो आसन इस उपरोक्त आसन से काफ़ी समानता रखते हैं। कई योगाचार्यों के अनुसार ये आसन विभिन्न भी होते हैं एवं एक और प्रकार के उत्तानासन का उल्लेख यहाँ पर किया गया है।
अतः साधक अपने विवेकानुसार उपयोग करें।
सावधानियाँ: उच्च रक्तचाप एवं कड़क मेरुदण्ड वाले इस आसन को सावधानी पूर्वक करें।

द्वितीय विधि

दोनों पैरों के बीच लगभग दो से ढाई फ़िट की दूरी बनाकर सीधे खड़े हो जाएँ। पैरों के पंजों को बाहर की तरफ़ मोड़कर खड़े हों। अब दोनों हाथों को पेट के सामने की तरफ़ लंबवत् रूप में एक दूसरे से फँसाकर लटका लें। या छाती के सामने हाथ जोड़ लें।
श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बैठे। घुटने बाहर की तरफ़ पंजे के ऊपर स्थित होने चाहिए। श्वास लेते हुए वापस उसी स्थिति में खड़े हो जाएँ। इस अभ्यास में क्रमशः जितना अधिक संभव हो उतना नीचे बैठने की कोशिश करें। अभ्यास के दौरान मेरुदण्ड सीधा एवं दृष्टि सामने रखें। 5 से 10 बार यह क्रिया करें।

विशेष

  • बैठते समय घुटने बाहर की ही तरफ़ मुड़े रहें।
  • यदि पहली बार में ही बैठते न बने तो पहले 1 फ़िट तक नितंबों को नीचे करें फिर डेढ़ फ़िट करें। अभ्यास हो जाने पर पूरा बैठने की कोशिश करें।

लाभ

  • प्रजनन प्रदेश के विकारों का शमन करता है।
  • पैरों की माँसपेशियों को मज़बूती प्रदान करता है।
  • जाँघ, घुटने व पिंडली को मज़बूती प्रदान करता है।
  • प्राण के प्रवाह को नियमित करता है। मूत्राशय एवं गर्भाशय को लाभ मिलता है।
  • पीठ के सामान्य विकार दूर करता है।
  • टखने, घुटने एवं कमर की संधियों को उचित लाभ प्रदान करता है

सावधानियाँ

  • पहली बार में ही पूर्णतः बैठने की कोशिश न करें।
  • सिर एवं मेरुदण्ड सीधा रखें। आगे की तरफ़ न झुकें।।
  • गर्भावस्था की स्थिति में पूर्णरूप से न बैठे एवं तीन महीने की गर्भावस्था के बाद न करें।

Comments are closed.