Vishuddha Chakra Method and Benefits In Hindi

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विशुद्धि चक्र

इस चक्र का स्थान कण्ठ प्रदेश है। यह सोलह दल से युक्त पद्म है। जिसका रंग बैगनी मिश्रित धुम्र वर्ण युक्त है और जिसकी पंखुड़ियों पर षोडशमात्रा के सोलह स्वर हैं। अं, आं, इं, ईं, उं, ऊँ, ऋ, ऋ, लू, लू, ए, ऐ, ओं, औं, अं, अः जो कि लाल रंग में चमकते हैं।
इस कमल के अंदर श्वेत वृत्त है। उस वृत्त के मध्य त्रिकोण है। जिसके अंदर चंद्र मंडल है। उस चंद्र मंडल के बीच श्वेत वर्ण का श्वेत आभूषण से युक्त एक हाथी है। जिस पर नभ बीज हं है। उस । बीज मंत्र के अंक में भगवान शिव अर्द्धनारीश्वर रूप में विराजमान हैं। जिनके पाँच मुख और दस भुजाएँ हैं। इसके चक्र की देवी साकिनी हैं जिनकी स्थिति हड्डियों पर है जो कि श्वेत वर्ण, चार भुजा, पाँच मुख, त्रिनेत्री और पीला वस्त्र पहने हुए है।
गोरख संहिता के अनुसार इस कंठ-स्थान में दीप-ज्योति समान कांतिमान विशुद्धि चक्र में नासिका के अग्रभाग में दृष्टि स्थिर करके सगुण, निर्गुण या ज्योति-स्वरूप आत्मा के ध्यान करने से योगी अमर होता है।
विशुद्धि चक्र के ध्यान करने से साधक भूख-प्यास के बिना कई दिनों तक रह सकता है। आत्म-चिंतक, विचारक एवं दार्शनिक हो जाता है। वाणी प्रखर हो जाती है। कंठ-प्रदेश में टपकने वाले अमृत रस का पान किया जा सकता है, जिसके कारण साधक कांतिवान, तेजस्वी, होकर कई आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकता है।
परंतु इस चक्र के विकार ग्रस्त होने से कंठ विकार हो सकता है। स्मरण-शक्ति का क्षय एवं कई प्रकार के मानसिक विकार हो सकते हैं।

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