Agya Chakra Method and Benefits In Hindi

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आज्ञा चक्र

यह चक्र दोनों भौहों के बीच स्थित होता है जो कि द्विदल पद्म कहलाता है। इसको तीसरा नेत्र की भी संज्ञा दी गई है। इन पद्म दलों का रंग श्वेत प्रकाशमय है। इन दो दलों में हं और क्षं वर्ण चमकते हैं। ध्यान की गहराइयों में साधक आज्ञाचक्र द्वारा पारलौकिक अनुभव प्राप्त करता है। इस बीज-कोष के अंदर लिंग-रूप में श्वेतवर्ण शिव योनि के अंदर ज्योति के अनुरूप प्रकाशमान हो रहे हैं। वहीं बीजमंत्र ॐ प्रकाशित हो रहा है। उस प्रकाश से ब्रह्म नाड़ी दृष्टिगोचर होने लगती है। त्रिभुज जो कि कुल शक्ति रूप में अवस्थित है। इस चक्र के प्रमुख देवता रूपी भगवान शिव हैं एवं देवी हाकिनी है। जिसका वर्ण सफ़ेद है। छह मुख रक्त वर्ण के हैं। प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र हैं। इनकी छः भुजाएँ हैं जो कि श्वेत वर्ण के पद्म पर विराजित हैं।
साधकों में इस चक्र का बहुत महत्व है क्योंकि ध्यान की अनेक अवस्थाओं में इस चक्र की उपयोगिता अधिक है। इस चक्र के जागरण से साधक दिव्य ज्ञानी, दिव्य दार्शनिक दूसरों के मनोभावों को समझने की शक्ति, भविष्य ज्ञान, भूतकाल एवं विचारों के संप्रेषण करने की दक्षता प्राप्त हो जाती है। यही आज्ञा चक्र रूपी बिंदु आत्मा के उत्थान का द्वार माना जाता है।
इस चक्र को संगम भी कहा जाता है। क्योंकि मूलाधार से गंगा (इड़ा) जमुना (पिंगला) और सरस्वती (सुषुम्ना) अलग-अलग प्रवाहित होकर इसी स्थान में मिलती हैं और यहीं पर तीनों मुख्य नाड़ियों का विलय भी होता है। इस चक्र के क्षतिग्रस्त होने से मानसिक बीमारियों का भय हमेशा बना रहता है। अतः सावधानीपूर्वक गुरु निर्देश में सैद्धांतिक रूप से इस चक्र का ध्यान कर साधक को अपना जीवन धन्य करना चाहिए।

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