Bandh: Types And Benefits In Hindi

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बंध: प्रकार एवं लाभ

एक विवेचना: बंध का शाब्दिक अर्थ बंधन अर्थात् एक को दूसरे से मिलाना, बाँधना, कसना, नियंत्रण इत्यादि।
इस शब्द का प्रयोग इसलिए किया गया है कि इसमें शरीर के कुछ विशेष अवयवों या आंतरिक अंगों को प्राणवायु द्वारा कसकर बाँध लिया जाता है। ये बंध शक्ति को अंतरोन्मुख करते हैं तथा प्राणायाम में सहायक होते हैं। साधक के शरीर में जब प्राणायाम द्वारा ऊर्जा प्रवाहित होती है तब साधक इन बंधों का उपयोग कर शक्ति को बहिर्मुख होने से बचा लेता है। प्राणायाम द्वारा उत्पन्न शक्ति को ये बंध आंतरिक अंगों में वितरण करने में सहायता करते हैं। इनका अभ्यास कुण्डली जगाने में भी किया जाता है। बंध का कार्य आंतरिक अंगों की गंदगी को दूर करके अधिक स्वच्छ एवं प्रासुक बनाना है। बंध को लगाने से शरीर के अवयव पुष्ट होते हैं। एक प्रकार की मालिश हो जाती है। बंध शरीर की नाड़ी-विशेष को प्रोत्साहित एवं उन्हें सुचारु कर रक्तादि के मल को शुद्ध करते हैं। इनको करने से वे सभी ग्रंथियाँ खुल जाती हैं जो हमारे शरीर में स्थित चक्रों में प्राण के प्रवाह को रोकती हैं। इस दौरान सुषुम्ना नाड़ी द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को दिशा मिलती है, उच्च अभ्यासी समाधि की दशा में यह अनुभव प्राप्त करते हैं। बंध एवं मुद्रा के प्रयोग से प्राणायाम में विशेष लाभ मिलता है। चूंकि कुंभक (अंतकुंभक या बहिकुंभक) एवं बंध प्राणायाम के लिए आवश्यक हैं। अतः कुंभक लगाने की क्षमता बढ़ाना चाहिए।
यहाँ हम मुख्य रूप से पाँच प्रकार के बंध का उल्लेख करेंगे।

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