BARYTA CARBONICA Homeopathic Benefits and Side Effects In Hindi

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बैराइटा कार्ब (Baryta Carb)

(कार्बोनेट ऑफ बैराइटा)

बचपन और बुढ़ापे में विशेष सांकेतिक । यह दलवा गण्डमालिक बच्चों की सहायता करती है, खासकर यदि वे शारीरिक और मानसिक क्षेत्र में पिछड़े हों, उनकी बढ़ोतरी और उन्नति रुकी हो । आँखों में कण्ठमालिक प्रदाह, उदर फूला हुआ । जुकाम जल्दी-जल्दी हो और सदा तालुमूल सूजे रहें । मसूढ़ों से खून बहे । वृद्ध लोगों के रोग, जब छिन्नता आने लगी हो-हृदय सम्बन्धी और मस्तिष्क सम्बन्धी–जिनकी मूल ग्रन्थियाँ फूल गयी हों या अण्ड कड़े पड़ गये हों, सर्दी असह्य हो, दूषित पैर का पसीना, बहुत कमजोरी और थकावट, बैठना, लेटना या किसी चीज के सहारे उठना पड़े । अजनबी लोगों से मिलने में घबराये । गले के भीतर गिरने वाला नजला, इसके साथ अक्सर नकसीर बहना । अक्सर उन युवकों के अनपच रोग में लाभदायक है जिन्होंने हस्त-मैथुन किया हो । यह शरीर के ग्रन्थि निर्माण को प्रभावित करता है और सर्वांग छिन्नता में लाभदायक है, खासकर धमनी के पदों पर, धमन्यार्बुद और बुढ़ापे की कमजोरी में । बैराइटा हृदय-पट के लिए विष है जो हृदय को पेशियों और धमनियों को प्रभावित करता है । धमनी-अर्बुद । रक्त नलियाँ मुलायम और छिन्न होती हैं और तन जाती हैं, माँस-अर्बुद हो जाते हैं, फट जाता है और मूर्च्छा रोग हो जाता है ।

मन — स्मरणशक्ति मिट जाती है । मानसिक दुर्बलता । अस्थिर, आत्मनिर्भरता हीन । बुढ़ापे के मानसिक विषाद । मानसिक गड़बड़ी, लज्जा, अनजाने लोगों से घबराये । बाल बुद्धि, तुच्छ बातों पर दुःखी ।

सिर — चक्कर, चिलकन, धूप में खड़े होने से सिर के भीतर तक बढ़े । मस्तिष्क ढीला मालूम हो । बाल झड़ें । कौतूहल । वसार्बुद ।

आँख — पुतली बारी-बारी से फैले और सिकुड़े । रोशनी असह्य । आँख के सामने जाला । मोतियाबिन्द (कैल्के., फास., सिली.) ।

कान — कम सुनना । कड़कड़ाहट की आवाज । कानों के चारों तरफ की ग्रन्थियाँ सूजी हुई और दर्दीली । नाक छिनकने पर आवाज गूंजना ।

नाक — सूखी, छींक आना, जुकाम, ऊपरी होंठ और नाक की सूजन के साथ । नाक में धुआँ जैसा मालूम पड़े । गाढ़ा पीला श्लेष्मा निकले । अक्सर खून बहे । नथुनों की दीवारों में पपड़ी जमे ।

चेहरा — पीला फूला हुआ, मकड़ी का जाला तना जैसा लगे (एलुमिना) ऊपरी होंठ सूजा हुआ ।

मुँह — जागने पर मुँह सूखा हो । मसूढ़ों से खून बहे, दाँत हटे हुए हों । मासिक धर्म के पहले दाँत दर्द । मुँह छालों से भरा हो, दूषित स्वाद । जुबान का लकवा । जुबान के सिरे पर कड़कन, जलन, दर्द, प्रातःकाल लार बहे । भोजन अन्दर आते ही अन्न की नाली के मुँह पर झटके आयें ।

गला — कान की निचली ग्रन्थियों और तालुमूल की सूजन । सर्दी जल्द हो, चिलकन और चुभन दर्द के साथ । तालुमूल प्रदाह । जुकाम होते ही तालुमूल पके । तालुमूल सूजे हुए । शिरायें सूजी हुई निगलते समय कड़कन का दर्द, खाली निगले से अधिक हो । गलकोष में गुल्ली जैसा संवेदन, केवल तरल पदार्थ ही निगल सके । गले में भोजन उतरते ही झटका आये जिससे गला दबे और साँस रुके । (मर्क., कारो., ग्रेफाइट) । आवाज के अधिक प्रयोग से आया रोग । तालुमूल, गलकोष या स्वरनली में गढ़न का दर्द ।

आमाशय — लार आये, हिचकी, डकार, जो पत्थर जैसे दाब को कम करें । भूख मगर खाने से इनकार । भोजन करने के बाद ही दर्द और भारीपन आये, कौड़ी में कोमलपन के साथ (कैली कार्ब) । गरम भोजन करने से रोग बढ़े । वृद्ध में आमाशयिक दौर्बल्य, साथ में और भी कोई कठिन दोष ।

उदर — कड़ा, तना और फूला हुआ । शूल हो । मध्यान्त्र ग्रन्थियों का बढ़ना । भोजन निगलते ही दर्द हो । भूख के साथ पुराना शूल परन्तु भोजन से अरुचि हो ।

मलांत्र — कब्ज, कड़े, गठीले मल के साथ । पेशाब करते समय बवासीर निकले । मलान्त्र में रेंगन । गुदा टपके ।

मूत्र — जब कभी रोगी पेशाब करता है, बवासीर बाहर निकल आती है । पेशाब लगना, पेशाब करते समय मूत्रमार्ग में जलन ।

पुरुष — इच्छा घटे और समय से पहले नामर्दी आये । मूत्रग्रन्थि का बढ़ना । अण्डकोष बढ़े ।

स्त्री — मासिक धर्म से पहले पेट और पिठासे में दर्द । मासिक स्राव ।

श्वास-यन्त्र — सूखी, दम घोंटने वाली खाँसी, खासकर वृद्ध में । बलगम भरा हो, मगर बाहर निकलने की शक्ति न हो, मौसम बदलने पर बढ़े (सेनेगा) जैसे स्वरनली में धुआँ भरा हो, ऐसा मालूम पड़े । जीर्ण स्वर लोप । सीने में चिलकन, जो साँस भीतर खींचने में बढ़े । फुफ्फुस धुएँ से भरे लगें ।

दिल — धड़कन और दिल में कष्ट, धमन्यार्बुद (लाइको.) । दिल की गति को पहले बढ़ाती है, रक्तचाप अधिक हो जाता है, रक्त-नलियाँ सिकुड़ती हैं । बायें करवट लेटने से धड़कन बढ़े, खासकर सोचने से । नाड़ी भरी और कड़ी । पैर का पसीना दबने से दिल के लक्षण उभरें ।

पीठ — सिर के पिछले भाग की जड़ में ग्रन्थियों में सूजन । गरदन पर चर्बीले फोड़े । कन्धों के डैनों के बीच में चोटीला दर्द । त्रिकास्थि में तनाव । रीढ़ कमजोर ।

अंग — काँख की ग्रन्थियों में दर्द । ठंडे, लसीले पैर (कैल्के.) । दुर्गन्धित पैरों का पसीना । अंगों का सुन्न होना । घुटने से अण्डकोष तक ठिठुरने लगे, बैइने पर लुप्त हो । पैर की अँगुलियाँ और तलवे दर्दीले, टहलने से तलवे में दर्द । जोड़ों में दर्द, निचले अंगों में जलन, पीड़ा ।

नींद — सोते समय में बात-चीत करना, बार-बार जागे, बहुत गरम मालूम हो । सोते में फड़कन ।

घटना-बढ़ना — बढ़ना : लक्षणों को सोचने से, धोने से, दर्दीली करवट लेटने से ।

घटना — खुली हवा में टहलने पर ।

सम्बन्ध — तुलना : डिजि., रेडियम, एरेगै । ऑक्टीट्राप, ऐस्ट्रैग. ।

पूरक : डल्का, साइलीशिया, सोरिन. ।

बेमेल — कैल्के ।

विषैली मात्रा का शामक — एप्सम सॉल्ट

मात्रा — 3 से 30 शक्ति, आखिरी शक्ति तालुमूल प्रदाह की संभावना हटाने के लिए । बैराइटा मन्द गति से काम करती है, दोहराना ठीक है ।

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