गठिया या सन्धिवात या आमवात का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Arthritis, Rheumatism, Gout ]

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छोटे जोडों, छोटी संधियों या छोटी गांठों-ग्रंथियों के दर्द को प्रथि-वात” या गठिया (गॉउट) कहते हैं; बड़ी संधियों के दर्द को “संधि-वात” (रियुमैटिज्म) कहते हैं। यदि मांस-पेशियों (मसल्स) में दर्द हो, तो उसे “पेशि-वात” (मस्कुलर रियुमैटिज्म) कहते हैं। संधि-वात को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-(1) युवाओं का संधि-वात और, (2) बच्चों का संधि-वात। युवाओं के संधि-वात का विवरण निम्नलिखित है —

रस-टॉक्स 30 — यदि रोगी पीड़ित और बेचैन हो, हरकत करने से दर्द में कुछ राहत मिले। सर्दी, बरसात में कष्ट बढ़ता है। शरीर की पेशियों में दर्द अधिक होता है।

कैल्केरिया कार्ब 30 — स्नान करने से, पानी में काम करने से या हरकत करने से दर्द हो, पीड़ा बढ़ जाए; सिर गरम हो या सिर पर और हाथ-पैरों में पसीना आए, तो उपयोगी है।

सिमिसिफ्यूगा 3 — इस औषधि को “ऐक्टिया रेसिमोसा” भी कहते हैं। जब, जोड़ों में दर्द हो, वे सूज जाएं, गरम हो जाएं, मांस-पेशियों में पीड़ा हो और दर्द को आक्रमण पीठ पर हो, गरदन के पीछे हो, आंखों में भी दर्द हो जाए, तब उपयोगी है।

लर्क कैनाइनम 30 — दाएं गिट्टे से बाएं और फिर बाएं से दाएं दर्द का लौटनाः इसी प्रकार जोड़ों का दर्द एक तरफ से दूसरी तरफ जाता है और फिर पहली तरफ लौट जाता है। दर्द की इस प्रकार अदला-बदली होती रहती है। यह औषधि ऐसे दर्द में लाभ करती है।

कैलमिया 6 — बाएं बाजू में सुन्नपन और सुरसुराहट, कुहनी से अगले भाग के स्नायु में दर्द, तर्जनी उंगली में दर्द।

लीडम 30 — दर्द का कूल्हे से आरंभ होकर घुटने और फिर पैर में चले जाना। दर्द ऊपर से नीचे जाता है; चलता-फिरता दर्द, एकदम स्थान बदल लेता है, अधिक अदला-बदली करता है।

आर्सेनिक 30, 200 — इसका रोग प्रायः मध्यरात्रि में 2 बजे के आसपास उग्र रूप धारण कर लेता है। इसके रोगी में शारीरिक तथा मानसिक बेचैनी के लक्षण उजागर होते हैं, घबराहट और शक्तिहीनता भी पाई जाती है। वातरोग उसे खासा परेशान करता रहता है।

स्टेल्लेरिया मीडिया 3x — पीठ में गुर्दे के ऊपर की जगह नितंब-प्रदेश में, वहां से चलकर जांघों में, बांहों में वात-दर्द चला-फिरा करता है। प्रायः शरीर के सब अंगों में चलता-फिरता वात-दर्द अंगों को बेंध-सा देता है। जोड़ कड़े पड़े जाते हैं, तब इसे दें।

पल्सेटिला 30 — वात-दर्द घुटनों, गिट्टों, हाथ-पैर के छोटे जोड़ों में होता है, किंतु इसकी विशेषता यह है दर्द अपनी जगह बदलता रहता है, कभी तेज होता है और कभी हल्का। इसकी प्रकृति भी बदलती रहती है। यदि रोगी उष्णता प्रधान है, तो जितना दर्द बढ़ता जाता है, उतनी ही उसे ठंड ज्यादा लगती है और रोगी को पीड़ा भी बहुत होती है।

नक्सवोमिका 30 — पीठ में इतना दर्द होता है कि रोगी से करवट तक नहीं बदली जाती। प्रायः इसकी आक्रमण बड़े जोरों पर और उनकी पेशियों पर होता है, रोगी हिल-डुल नहीं सकता, यह स्थिति वात-रोग में आम पाई जाती है। रोगी को सर्दी सहन नहीं होती।

सल्फर 30 — रोग रात्रि में बढ़ जाता है, गर्मी से रोग की वृद्धि होती है।

एकोनाइट 30 — जोड़ों में सूजन, दर्द, अंगों में विचित्र-सा अनुभव होता है; सुन्नपन, असहनीय दर्द, ज्वर, सूजन की जगह चमकदार लाली; रात में कष्ट बढ़ जाता है, भय, बेचैनी तथा परेशानी रहती है। इसकी 30 शक्ति की मात्रा हरेक 3 घंटे के अंतर से दें।

मर्क सोल 30 — वात-रोग में बहुत तेज दर्द होता है, जोड़ों में सूजन होती है। और रोगी को बहुत पसीना आता है; रोग रात्रि में बढ़ जाता है। बिस्तर में लेटने से रोग की वृद्धि होती है। जिस अंग में वात-पीड़ा होती है, उसमें ठंड रेंगती-सी प्रतीत होती है, प्यास भी रहती है।

ब्रायोनिया 30 — रोगी को जोड़ों के दर्द के साथ जरा-सी भी हरकत बर्दाश्त नहीं होती, शरीर के हिलते ही वह कराह उठता है, इसलिए शांत पड़ा रहना चाहता है। पसीना भी बहुत आता है। यदि एकोनाइट से अधिक लाभ न हो, तो इसका प्रयोग करना चाहिए।

यहां हमने तरुण संधि-वात की औषधियों को बतलाया है, अब यहां जीर्ण (पुराना) वात-रोग की औषधियों के बारे में बता रहे हैं। वात-रोग की जीर्णावस्था वह है, जब आक्रांत-स्थान पर सूजन आदि नहीं रहती, किंतु जोड़ों का दर्द बना रहता है और वह टिकाऊ-सा हो जाता है। जीर्ण संधि-वात में लाली, सूजन, दर्द और दुखन रहती है।

लाइकोपोडियम 6, 30 — यदि वात-रोग में दर्द दाएं से बाएं को जाए, तब दें।

कोलचिकम 3 — बाएं हाथ के नीचे की तरफ दर्द, दाएं अस्थि-फलक के नीचे के कोण में दर्द, गर्मियों में अंगों में काटने का-सा दर्द, सर्दियों में सुई चुभने जैसा दर्द होता है। सर्द मौसम में रात को रोग बढ़ जाता है।

कैल्केरिया फॉस 3x या चिनिनम सल्फ 3x — जब वात-रोग के बाद रोगी अत्यंत निर्बल हो जाए, तब इस निर्बलता को दूर करने के लिए इन दोनों औषधियों में से कोई भी एक औषधि दें।

मैडोराइनम 30, 200 — जोड़ों में या पेशियों में दर्द हो। दर्द दिन में बढ़ता और रात को घट जाता है; सूजन, दर्द और दुखन में यह औषधि बहुत उपयोगी है। रोगी के रोग-लक्षण और अवस्था को देखकर 30 या 200 शक्ति की औषधि देनी चाहिए।

कॉलोफाइलम 3 — कलाई में दर्द, हाथ बंद करते हुए पोरों में दर्द; हाथ-पैर की उंगलियों के छोटे जोड़ों के दर्द में उपयोगी है।

थूजा (मूल-अर्क) 30 — अत्यधिक पसीना आता है। एड़ियों और घुटने के जोड़ में दर्द होता है।

बारबरिस 6 — टांगों, पैरों, कंधों, बांहों और हाथों में जीर्ण संधि-वात (पुराना बाय का रोग)। उंगलियों के नाखूनों के नीचे भी दर्द, जिसमें उंगलियों के जोड़ सूज जाते हैं।

आयोडम 3 — जोड़ों के आसपास के तंतु मोटे तथा कड़े पड़े जाएं, रात को जोड़ों तथा हड्डियों में दर्द हो; जोड़ इतने कड़े पड़ जाएं कि हिल भी न सकें, तब इस औषधि का प्रयोग करें।

कैलि बाईक्रोम 30 — जीर्ण वात-रोग में दर्द एक जगह से दूसरी जगह तेजी से उड़ता-फिरता है।

कैलि आयोडाइड 30 — रात्रि के समय हड्डियों में भयंकर दर्द, घुटने के नीचे की हड्डी में दर्द, कुल्हे में भी दर्द होने के कारण रोगी लंगड़ा कर चले, शियाटिका में भी उपयोगी है।

कारसिनोसीन 200 — पुराने बाय के रोग में हर दसवें दिन औषधि की केवल एक मात्रा दें।

ट्युबर्म्युलीनम 30, 200 — जीर्ण बात में यह औषधि बहुत उपयोगी है।

गोनोरिया और सिफिलिस-रोग के कारण हुए वात-रोग में —

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 3 — गोनोरिया रोग के कारण वात-रोग हो जाने पर यदि जोड़ों में सूजन और दर्द हो, पेट में वायु भरी रहे, पेट की अन्य शिकायत भी हो, तब यह उपयोगी औषधि है।

सल्फर 30 — यदि वात-रोग के साथ ही रोगी को त्वचा का रोग भी हो, तब इसे दें।

पल्सेटिला 30 — यदि किसी औषधि से गोनोरिया दबा दिया गया हो, जिसके कारण रोगी को जोड़ों में चलता-फिरता दर्द हो, तो यह औषधि इन लक्षणों में बहुत लाभ करती है।

मैडोराइनम 30, 200 — तेज औषधियों से गोनोरिया-रोग दबा दिया गया हो और इस कारण वात-रोग की उत्पत्ति हो गई हो, तो इस औषधि को देना लाभदायक है।

एकोनाइट 30 — यदि बाय के दर्द के साथ परेशानी, बेचैनी और ज्चर हो, तब यह दें।

मर्क सोल 30 — यदि एकोनाइट देने के बाद जोड़ों में दर्द रहे, पसीना अधिक आए और गोनोरिया का स्राव हो, तब इस औषधि का प्रयोग करना चाहिए।

कैलि आयोडाइड 30 — सिफिलिस की वजह से हड्डियों की ऊपरी परत में दर्द हो, तब इसे दें।

कैलि बाईक्राम 3x, 30 — यदि हड्डियों पर सूजन आ जाए, तब उपयोगी है।

फाइटोलैक्का 3 — सिफिलिस के कारण हड्डियों पर सूजन आ जाने पर यह उपयोगी है।

स्टिल्लिंजिया 1 — यदि वात-रोग के कारण अस्थि-परिवेष्टन में दर्द हो या रोगी को सिफिलिस रहा हो। इस रोग में अन्य निर्दिष्ट औषधियों के साथ मध्यवर्ती-व्यवहार के लिए यह सर्वोत्तम औषधि है।

सिफिलीनम 200 — यदि बाय का दर्द सुबह से संध्याकाल तक होता रहे। दिन में 1 मात्रा तीन-चार दिन तक देकर देखें। इस औषधि का प्रकृतिगत-लक्षण रात में रोग का बढ़ना है।

ऑरम मेट 30 — यदि रोगी में सिफिलिस का दोष हो, तब बाय के दर्द में यह उपयोगी है। बच्चों के संधि-वात में निम्नलिखित औषधियों का लक्षणानुसार प्रयोग करना चाहिए —

नेजा 6, 30 — बालक की वात-रोग की प्रकृति हो, मांस-पेशियां कांपती हों, सब शिकायतें जाकर हृदय में केंद्रित हों, ऐसे बच्चों के वात-रोग के दर्दी में यह अत्यंत उपयोगी औषधि है।

कैलमिया (मूल-अर्क) 6 — कंधों से बांहों में, बांहों से उंगलियों में, जांघों से टांगों में; चलता-फिरता दर्द, हरकत से दर्द बढ़े, ऊपर से नीचे की तरफ जाए; स्नायु-मार्ग पर दर्द चले, तीर की तरह बेंधता हुआ, छुरे की तरह काटता हुआ, दर्द एकदम स्थान बदल देता है।

स्पाइजेलिया 30 — वात-रोग में.यह औषधि भी उपयोगी है।

ऑरम मेट 30 — दर्द एक जोड़ से दूसरे जोड़ पर उछलता-फिरता है। रोगी के लिए लेटना प्रायः असंभव हो जाता है, उसे उठकर बैठ जाना पड़ता है। वात-रोग में यह बहुत उपयोगी औषधि है।

पैरोटिडीनम 30 — जोड़ों के दर्द में यह औषधि उपयोगी है।

ऐक्टिया रेसिमोसा 3 — पेशी-वात, विशेषकर गरदन के वात-रोग में उपयोगी है। गरदन मुड़ नहीं सकती; वात-रोग के लक्षण दूर हो जाएं, तो मानसिक लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

पल्सेटिला 30 — जोड़ों में ऐसा दर्द होता है मानो मोच आ गई हो, जोड़ सूज जाते हैं, लाल हो जाते हैं। आराम से पड़े रहने पर दर्द बढ़ता है, चलने-फिरने से राहत मिलती है। वात-रोग का दर्द एक अंग से दूसरे अंग में चलता-फिरता है। बरसात में और गीले पैरों से कष्ट बढ़ जाता है।

नैट्रम फॉस 6x — वात-रोग की यह प्रसिद्ध औषधि है। बच्चों के वात-रोग में बहुत उपयोगी है। अस्थि-परिवेष्टन तथा शारीरिक-तंतुओं पर किसी भी प्रकार के वात-रोग के आक्रमण पर यह औषधि अवश्य लाभ करती है। कुछ ही दिनों में इससे वात-रोग शांत हो जाता है।

मैंगेनम 3, 30 — घुटनों में दर्द, अस्थि-परिवेष्टन तथा अस्थियों में असह्य-दर्द। रात में रोग की वृद्धि हो जाती है। दरअसल ठंडे तथा नम मौसम में वात-रोग की वृद्धि होती है।

ब्रायोनिया 30 — जोड़ सूज जाएं, लाल और कड़े पड़ जाएं, सुई बँधने का-सा दर्द हो, तब दें। ब्रायोनिया का प्रभाव शरीर के हर भाग में जहां-जहां रक्त-रस वाली श्लैष्मिक-झिल्लियां हैं, वहां-वहां पड़ता है, इसलिए जोड़ों में जहां रक्त-रस जमा होकर सूजन हो जाती है, वहां यदि तनिक-सी भी हरकत से कष्ट बढ़े, रोगी को प्यास सताए, तब यह औषधि लाभ करती है।

रस-टॉक्स 30 — सब प्रकार के वात-रोग के दर्द, लंगड़ानी और हरकत से कष्ट कम होना, आराम से बैठे रहने पर कष्ट का बढ़ना; जब रोगी बैठी हालत से उठता है, तब दर्द होता है। ठंड से, ठंडी हवा से, बरसाती मौसम से, पसीना दबने से रोग बढ़ता है, तब यह उपयोगी है।

कैमोमिला 6, 30 — रात में दर्द आरंभ होता है और इतना तेज दर्द होता है कि रोगी शांत नहीं रह सकता, बच्चा है, तो उसे गोद में लेना पड़ता है; बड़ा है, तो उठकर टहलने लगता है। दर्द के साथ सुन्नपन होता है, अंगों पर झटके से लगते हैं। रोगी दर्द सहन नहीं कर सकता।

मर्क सोल 6, 30 — वात-रोग के साथ गंधयुक्त गाढ़ा पसीना; सर्दी-गर्मी दोनों को सहन न कर सकना, रात में दर्द का बढ़ जाना आदि में यह औषधि बहुत लाभ करती है।

लीडम 3, 30 — रोगी का वात-रोग का दर्द ठंड से शांत होता है। रात में बिस्तर की गर्मी से दर्द बढ़ जाता है, अधिक पसीना आता है, लेकिन उससे आराम नहीं मिलता है, तब इसे दें।

एकोनाइट 30 — ठंड लगने या ठंडी हवा से वात-रोग का तीव्र आक्रमण होता है। ज्वर के साथ त्वचा खुश्क हो जाती है, प्यास लगती है, गाल लाल हो जाते हैं, पेशियों में तीर लगने का-सा दर्द होता है, अंग सुन्न पड़ जाते हैं। वात-रोग का हृदय पर आक्रमण होने में भी यह अत्यंत उपयोगी है। बेचैनी, परेशानी, रात को रोग का बढ़ना इस औषधि के प्रधान लक्षण हैं।

बेलाडोना 6, 30, 200 — जोड़ों में सूजन के साथ वे लाल, गरम हो जाते हैं, स्पर्श करने से ही दर्द की वृद्धि हो जाती है। हरकत करने से भी दर्द बढ़ जाता है, तब यह उपयोगी है।

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