अस्थमा का होम्योपैथी इलाज [ Homeopathic Medicine For Asthma ]

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जब श्वास-नली और फेफड़े में श्लेष्मा जमा हो जाता है, जो निकाले नहीं निकलता अथवा खांस-खांस कर निकालना पड़ता है, श्वास लेने में बहुत कष्ट होता है, तब यह रोग ‘दमा’ कहलाता है। फेफड़े की वायु को वहन करने वाली नलियां छोटी-छोटी पेशियों से घिरी रहती हैं, इन पेशियों में आक्षेप या अकड़न होने के कारण से ही श्वास में कष्ट हो जाता है और गला सांय-सांय करने लगता है, इसी को ‘दमा’ कहते हैं। इस रोग का कुछ अधिक विस्तृत विवरण लिखने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि बहुत से लोग इसे रोज ही देखा करते हैं।

इस रोग का मुख्य लक्षण है – श्वास लेने में खिंचाव, श्वास में कष्ट, गले में सांय-सांय की आवाज, रोगी बिछावन पर लेट नहीं सकता। दोनों हाथों पर भार देकर या तकिये का सहारा लेकर झुककर बैठा रहता है, खाँसी और हांफा करता है, लगातार हवा चाहता है, हवा के लिए दरवाजे और खिड़कियां खोल रखने के लिए कहता है। दमा के रोगी सभी समय अस्वस्थ नहीं रहते। दौरा पड़ने पर बहुत भयानक कष्ट होता है, पर दमा का जोर पूरा हो जाने पर स्वस्थ हो जाता है।

अधिकतर अमावस्या और पूर्णिमा के दिन रोग बढ़ता है। नया दौरा तीन-चार दिन रहकर प्रायः घट जाता है। दमा का रोगी श्वास सहज भाव से लेता है, लेकिन श्वास छोड़ने में बहुत कष्ट मालूम होता है और समय भी अधिक लगता है। आक्रमण के समय की अकड़न और आक्षेप को दौरा कहते हैं।

दमा का रोग दो प्रकार का होता है – (1) आक्षेपिक (स्पैज्मोडिक), (2) वायु उपनली संबंधीय (ब्रांकियल)। इन दोनों प्रकार के रोग में ही वायुनलियों (ब्रांकियल ट्यूब) का मार्ग संकरा पड़ जाता है। इससे फेफड़े में वायु आ-जा नहीं सकती। श्वास-प्रश्वास में खिंचाव और कष्ट होता है। किसी-किसी रोगी को दमा का दौरा जल्दी-जल्दी, यहां तक कि हर महीने एक-दो बार होता है और किसी को आठ-दस महीने बाद होता है। जिन्हें जल्दी-जल्दी इसका दौरा होता है, उनको अंत में हृत्पिण्ड का रोग, शोथ इत्यादि रोग हो जाते हैं।

दमा का पथ्य – दमा के रोगियों को हल्की और जल्द पचने वाली चीजें खाने को देनी चाहिए। हमेशा पेट कुछ खाली रखकर भोजन करना चाहिए। रात्रि के समय जहाँ तक संभव हो हल्का भोजन करने की आवश्यकता है और सूर्यास्त के बाद कोई भी चीज चबाकर खाना मना है।

दमे के साथ यदि ब्रांकाइटिस रहे, अर्थात ब्रांकियल अस्थमा वाले रोगी को इससे बहुत सतर्क रहना चाहिए कि सर्दी न लग जाए। स्नान जितना सहन हो – नदी, तालाब आदि में किया जा सकता है। किंतु जिन्हें ब्रांकियल दमा है, उन्हें कभी नित्य ठंडे पानी से नहीं नहाना चाहिए। बीच-बीच सीना और पीठ छोड़कर बाकी शरीर गरम पानी में तौलिया भिगोकर पोछ लेना चाहिए।

हाइड्रोपैथी के हिप-बाथ से दमा के बहुत से रोगी आरोग्य हो जाते हैं। आक्षेपिक दमा (स्पैज्मोडिक-अस्थमा) में नहाना अच्छी तरह सहन होता है। इन्हें इच्छानुसार नित्य स्नान करना चाहिए, इससे रोग के उपसर्ग नहीं बढ़ेंगे।

दमा के रोगी की छाती में सीटियां-सी बजती हैं, वह हवा के लिए तरसता है। उस समय उसका चेहरा पीला पड़ जाता है, आंखों से बेचैनी टपकती है, माथा ठंडे पसीने से तर हो जाता है। दमे के उपचार के लिए-रोग किस समय उभरता है, कितने बजे, यह जानना बहुत जरूरी है। श्लेष्मा (कफ) निकल जाने से रोगी को बड़ी राहत मिलती है। यह बात सर्वविदित है कि दमे के रोग से कोई मरता नहीं, प्राय: दमे के रोगी दीर्घजीवी होते हैं, क्योंकि रोगी होने के कारण वे खाने-पीने, रहन-सहन में अनियमितता करने का साहस नहीं कर सकते। दमे का आक्रमण कुछ मिनटों या कुछ घंटों का रह सकता है। यह रोग युवावस्था में इतना नहीं होता, जितना वृद्धावस्था में पाया जाता है।

दमा की औषधियां निम्नलिखित हैं: –

ब्रांकियल अस्थमा – आर्स, ग्रिण्डेलिया, इपिकाक, सल्फर।

स्पैज्मोडिक अस्थमा – क्यूप्रम मेट, ग्रैफाइटिस, ग्रिण्डेलिया, इपिकाक, मस्कस, नैप्थेलाइन, सैम्बुकस, मिफाइटिस, स्ट्रैमोनियम।

कार्डियक अस्थमा – (हृत्पिण्ड के दोष के कारण दमा) ग्रिण्डेलिया रोवस्टा, एकोनाइट फेराक्स, आरम मेट, कुरारि, फास्फोरस, प्रनूस स्पाइनोसा।

ज्वर के साथ दमा – नेजा, सैंगुनेरिया, एरालिया।

हिस्टेरिकल अस्थमा – सम्बल, मस्कस ।

दमा का दौरा रात 12 बजे से दिन में 12 बजे तक बढ़े – एण्टिम टार्ट, आर्स, निनि आर्स, कैलि कार्ब, नक्स मस्के, सैम्बुकस, जिजिबर। यदि रोगी सो न सकता हो – कार्बो 30, दो-एक मात्रा।

श्वास लेने में कष्ट – एरालिया रेसि, एसिड हाइड्रो।

श्वास छोड़ने में कष्ट – क्लोरम, आर्सेनिक।

कैलि फॉस 12x – डॉ० शुसलर के मत से दमे के रोग की यह एक उत्कृष्ट औषध है। इसे दो-तीन ग्रेन की मात्रा में दो-चार बार सेवन कराने से आशातीत लाभ होता है।

एण्टिम टार्ट 6, 6x, 30, 200 – गले में सांय-सांय और छाती में घड़घड़ आवाज होती है, चेहरा और मुंह नीला हो जाता है, तब यह औषध देनी चाहिए।

एरालिया Q, 6, 30 – श्वास लेने में कष्ट, रोगी रात-दिन सिर झुकाए कोहनियों पर भार देकर बैठा रहता है।

आर्सेनिक एल्बम 30, 200 – उद्वेग, बेचैनी, श्वास लेने और छोड़ने में कष्ट। रात्रि में कष्ट का बढ़ जाना। सूखा और श्वासोपनलियों के दमा में लाभकारी है।

क्यूप्रम मेट 6, 30, 200 – रोग का आक्रमण एकाएक हो जाता है और एकाएक बंद हो जाता है। आक्रमण के समय चेहरा नीला पड़ जाता है, गलनली में संकोचन होता है, श्वास में बहुत कष्ट रहता है। रोगी में दस्त और उल्टी आदि लक्षण उजागर होते हैं, हाथ-पैरों में खिंचाव होता है।

ग्रिण्डेलिया रोबस्टा 6, 30 – कई वर्षों से दमा का रोग भोगने वाला रोगी, जिसे इन्फ्लुएन्जा के बाद रोग हुआ है, जरा सर्दी लगते ही श्वास-प्रश्वास का कष्ट धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और अंत में दमा का खिंचाव आ पहुंचता है, ऐसी अवस्था में यह औषध लाभ करती है। सीने में जोर-जोर की धड़धड़ बहुत अधिक मात्रा में लसदार गोंद की तरह कफ निकलता है, जो मिचलाया करता है। हृत्पिण्ड में कमजोरी मालूम होना इत्यादि लक्षणों में इस औषध का प्रयोग होता है।

ब्रोमिन 6, 30 – अकड़न की तरह खिंचाव, उसी से मानो श्वास बंद हुई जाती है। जो लोग किश्ती, स्टीमर चलाते हैं, जहाज पर काम करते हैं, उन्हें यह औषध लाभ करती है।

सैंगुनेरिया 6, 200 – ज्वर वाले दमा के रोगी को यह औषध देनी चाहिए।

एकोनाइट 1x तथा इपिकाक 1x – पर्याय-क्रम से देना-आरंभ में सामयिक रूप से रोग की उग्रता को कम करने के लिए इन दोनों औषधियों को आधा-आधा घंटा या जल्दी-जल्दी एक-दूसरे के बाद देना चाहिए, जिससे श्वास लेने तथा कफ पर काबू में सहायता मिले।

इपिकाक 3 – बहुत से चिकित्सक दमे का उपचार इपिकाक से करते हैं। इसके देने से जल्दी ही दमे के दौर व जोर और उसका बार-बार आना थम जाता है। यदि रोगी को छाती पर बोझ पड़ा महसूस हो, श्वास भी तंगी से आ रहा हो, कफ भी गले में चिपका हो और निकाले न निकलता हो, तो सल्फर की मात्रा देनी चाहिए। इससे आश्चर्यजनक लाभ होता है। इसके बाद भी यदि रोगी श्वास-कष्ट से परेशान रहे, तो आर्सेनिक देनी चाहिए। यदि नींद से उठने पर रोग बढ़ा हुआ प्रतीत हो, तो लैकेसिस देने से लाभ हो जाता है। इपिकाक के विषय में डॉ० फैरिंग्टन का कहना है कि दमे के रोगी को छाती में सिकुड़न, खिंचाव और हिलने-डुलने से कष्ट होता है, जब रोगी खांसता है, तब छाती में कफ की घड़घड़ सुनाई पड़ती है, रोगी खूब मोटा-ताजी हो, जिसके शरीर के पुट्टे ढीले-ढाले होते हैं, गरम और नम मौसम को सहन नहीं कर सकता, तब केवल इपिकाक देने से ही काम चल जाता है।

छाती में कफ की घड़घड़ाहट इपिकाक तथा एण्टिम टार्ट दोनों में है। इनमें भेद यह है कि एण्टिम टार्ट का कफ घड़घड़ तो करता है, किंतु निकलता कठिनता से है, जबकि इपिकाक का कफ घड़घड़ भी करता है और निकलता भी आसानी से है। इसलिए घड़घड़ाने वाले कठोर कफ को पहले एण्टिम टार्ट से ढीला कर लेना चाहिए। कभी-कभी छाती में कफ तो होता है, किंतु वह वहीं सूखने लगता है। रोगी सोचता है कि लाभ हो रहा है, लेकिन लाभ न होकर कफ छाती में सूखकर जम जाता है और आगे और भी कष्ट का कारण बनता है। ऐसी अवस्था में एण्टिम टार्ट के कई डोज देकर कफ को बढ़ा लेना चाहिए ताकि बाद में इपिकाक से उसे निकाला जा सके और रोगी को आराम महसूस हो।

ब्लैटा ओरियेंटेलिस (मूल-अर्क) 3x – जब दमे का दौर हो, तब मूल-अर्क की 10-15 बूंद बार-बार गरम पानी में देनी चाहिए और जब दौर निकल जाए, तब उच्च-शक्ति का प्रयोग किया जाना चाहिए।

आर्सेनिक 3 – तरुण या जीर्ण (नया या पुराना) दमे के निमित्त यह औषध बहुत लाभ करती है। जब रोग का आक्रमण एक से दो बजे मध्य-रात्रि में या उसके बाद होता है, लेटने से रोग बढ़ता है, रोगी बैठा रहता है, तब इपिकाक के बाद आर्सेनिक दिया जा सकता है और इस औषध को दोहराया भी जा सकता है।

कैलि बाईक्रोम 3x, 30 – इसका आक्रमण भी आर्सेनिक की तरह मध्य-रात्रि के बाद 3-4 बजे होता है, आर्सेनिक की तरह ही श्वास खींचने के लिए रोगी बैठा रहता है, जब तारदार कफ निकलता है, तभी उसे चैन मिलता है। दमे में आर्सेनिक तथा कैलि बाईक्रोम के लक्षण मिलते-जुलते है।

कैलि कार्ब 6x, 30 – इस औषधि का विशेष-लक्षण प्रातः 3 बजे रोग का बढ़ना है। कोई भी रोग प्रातः 3 बजे या 2 और 3 के बीच में उग्र रूप धारण कर ले, तो इस औषधि को नहीं भुलाया जा सकता। कैलि कार्ब की तरह इसमें भी कफ चिटकने वाला होता है। प्रातः 3 बजे रोग बढ़ने के अलावा इस औषधि की एक अन्य विशेषता यह है कि छाती में कफ काट देता है। दमे में कैलि बाई तथा कैलि कार्ब में अत्यधिक समानता होते हुए भी भेद यह है कि दमे में कैलि बाई का चिटकने वाला कफ बहुत अधिक होता है, किंतु कैलि कार्ब का थोड़ा और खुश्क, यह प्रात:काल आने पर बढ़ जाता है। किसी भी रोग में चुभता हुआ दर्द हो, तो इस औषधि को भुलाना नहीं चाहिए। कैलि आर्स भी 2-3 बजे के बीच उभरता है, हर दूसरे या तीसरे दिन रोग (दमे) का आक्रमण होता है।

कार्बो वेज 30 – यह औषधि विशेषकर वृद्ध व्यक्तियों के दमे में अधिक उपयोगी है। ऐसे लोग जिनकी शक्ति क्षीण हो गई है। दमा का आक्रमण होने पर ऐसा लगता है मानो उनका प्राण निकल जाएगा, श्वास लेने के लिए वे व्याकुल हो उठते हैं। डकार आने पर उन्हें बड़ा आराम मिलता है। यह प्राय: उस दमा में लाभकारी है जो पेट में वायु के अफारे के परिणामस्वरूप पैदा होता है।

लैकेसिस 8, 200 – यदि रोगी आराम से सो जाता है, किंतु सोते हुए दमा के आक्रमण से जाग उठता है। गले या छाती पर किसी प्रकार का दबाव सहन नहीं कर सकता, कपड़े तक के स्पर्श को नहीं सह सकता, अर्थात कपड़े तक के स्पर्श सहन नहीं होते, जाग उठने के बाद खांसते-खांसते अंत में देर-सा पतला कफ निकलता है, जिससे रोगी को चैन मिल जाता है। दरअसल पतला-सा कफ निकलना ऐसा लक्षण है, जिसकी तरफ चिकित्सकों का कम ध्यान गया है, किंतु दमा में यह इसका विशेष लक्षण है।

नैट्रम सल्फ 6x, 12x – यह औषधि ऐसे दमा में उपयोगी है जो नम मौसम की वजह से होता है। नम मौसम या बरसात आयी नहीं कि दमे का प्रकोप शुरू हो गया। बच्चे के दमे की शिकायत में यह बहुत उपयोगी औषधि है।

ब्रोमियम 1, 3 – नाव खेने वाले मल्लाहों का दमा समुद्र में रहने से ठीक रहे और तट पर आते ही उभर आए, तो इस औषधि से ठीक हो जाता है। जब मल्लाह लोग समुद्र तट पर आते हैं, तब उन्हें समुद्र की ऑक्सीजन भरी वायु की अपेक्षा जमीन की खुश्क वायु का सामना करना पड़ता है, ऐसी हालत में यदि दमा उभर आए, तो ब्रोमियम लाभ करती है। डॉ० फैरिंग्टन का कथन है कि समुद्र में रहने से दमा न होना, समुद्र तट पर आने से दमा उभर आना इस औषधि का लक्षण है, इसलिए यह लाभ करती है।

मैडोराइनम 200 – हमने अभी ब्रोमियम का जिक्र किया, जिसका रोगी समुद्र में ठीक रहता है और समुद्र तट पर दमे का शिकार हो जाता है। इसके विपरीत मैडोराइनम का दमे का रोगी समुद्र तट पर आकर ठीक हो जाता है। दमा ही क्या, यदि गठिया का रोगी भी समुद्र तट पर आकर ठीक हो जाए, तो मैडोराइनम ही उसकी औषध है। मैडोराइनम का रोगी छाती, पेट या घुटनों के बल सोता है-इस लक्षण पर भी दमे में यह औषध दी जा सकती है।

जब दमा में अन्य निर्दिष्ट औषधियों से लाभ होता न दिखे, तब मैडोराइनम या बैसीलीनम) को अन्य औषधियों के बीच अवांतर के तौर पर देना चाहिए। कभी-कभी केवल इन दोनों में से किसी एक औषधि से दमा में लाभ हो जाता है। मैडोराइनम को कफ या पस पैदा करने की माता कहा जाता है, इसलिए जहां कफ की जबरदस्त शिकायत हो, वहां इस औषधि का प्रयोग करने से कफ की रोक-थाम हो जाती है।

एलूमेन विचूर्ण – इसका 10 ग्रेन चूर्ण मुंह में रखने से दमा का आक्रमण रुक जाता है।

हाइड्रोसियानिक एसिड 3x – नए दमा में यह औषधि बहुत अधिक लाभ करती है। श्वास-प्रश्वास में सांय-सांय की आवाज मानो कांप-कांपकर श्वास चलता है। सूखी, आक्षेपिक, श्वासरोधक खांसी, दमा में ऐसा मालूम होता है, जैसे स्वरनली संकुचित हो गई है।

एमिल नाइट्रेट Q, 30 – पांच-छह बूंद रूमाल में डालकर लगातार सूघते रहने से दमा का खिचाव घट जाता है।

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