फीता कृमि का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Cestoda, Tapeworms ]

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इस जाति के कृमि फीते जैसे चपटे होते हैं और उनका रंग सफेद होता है। ये छोटी आंत में रहते हैं। इनकी लंबाई 5 फीट से लेकर 25 फीट तक होती है। साधारण कृमि में ये सब लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे-मलद्वार कुटकुटाना, नाक खुजलाना, दांत कड़कड़ाना, दांत पीसना, मुंह में पानी भर आना, सिर में चक्कर आना, कानों में “भों-भों” होना, कलेजा धड़कना, अम्ल होना, पेट फूलना, झटके से दस्त आना, पेट में अकड़न, खींचन और पेट के ऊपर एक तरह का दर्द, कभी-कभी कॉलिक या शूल का दर्द इत्यादि। फीता-कृमि के लक्षण हैं।

जिनके पेट में ये कृमि हो जाएं, उन्हें खीरा, ककड़ी आदि कच्चे फल, आलू और मीठा खाने को न दें। खाने की चीज खूब अच्छी तरह सिझाकर खानी चाहिए। मांस बिल्कुल छोड़ देना ही अच्छा है। विशेष आवश्यक होने पर अच्छी तरह सिझाकर कभी एकाध दिन खाएं, सिझा न रहने पर छोड़ दें; इसमें कुत्ता, बिल्ली, गाय, बछड़े, बकरी, भेड़ के साथ विशेष संस्पर्श न रखना चाहिए। खूब पके नारियल का दूध नित्य कुछ दिन पीना चाहिए।

बड़े केंचुए की तरह के कृमि को नष्ट करने के लिए सैण्टोनाइन सबसे उत्तम औषधि है। सूत-कृमि के लिए साधारणतः नियुक्रियम, स्पाइजेलिया, स्टैनम आदि औषधियों दी जाती हैं। गरम पानी में थोड़ा नमक मिलाकर मलद्वार में उसकी पिचकारी देने से कृमि मलांत्र से निकल जाते हैं। फीता-कृमि नष्ट करने के लिए फिलिक्स-मस उत्कृष्ट औषधि है।

चेनोपॉडियम ऑयल — इसे 10 बूंद की मात्रा में प्रातः 7 बजे, 9 बजे और 11 बजे थोड़े से गरम पानी या अन्य किसी पीने के द्रव्य के साथ मिलाकर 1 दिन पीना चाहिए; इससे सब तरह के कृमि निकल जाएंगे। कृमि-रोग में इसका अत्यधिक व्यवहार किया जाता है।

क्यूप्रम आक्सिडेटम 1x — इसे 1 ग्रेन की मात्रा में नित्य सवेरे केवल। बार सेवन करने से विशेष लाभ होता है। आज तक यह औषधि कभी विफल नहीं हुई।

कृमि-जनित उपसर्गों में —

बच्चा हो या युवा, ज्वर आने पर — एकोनाइट, मर्क्युरियस, सिना, साइलीशिया दें। आक्षेप या अकड़न होने पर-साइक्यूटा, बेलाडोना, सिना, इग्नेशिया प्रयोग करें। मस्तिष्क के लक्षणों में-बेलाडोना सिना। मुंह में पानी भर आने पर-एकोनाइट, लाइकोपोडियम, साइलीशिया। गले या पाकस्थली में कुछ ठेला मारकर उठने पर-एकोन, स्पाइजेलिया। वमन करने की इच्छा या वमन होने पर-एकोनाइट, सिना, लाइकोपोडियम, स्पाइजेलिया। पाकस्थली में ऐसा लगना जैसे कोई घुटनों के बल चल रही हो-लाइकोपोडियम। कॉलिक का दर्द-एकोन, मर्क्युरियस, सिना, लाइकोपोडियम। अतिसार में-कैल्केरिया, सिना, मर्क्युरियस, स्पाइजेलिया आदि।

सिना या एकोनाइट 30 — अधिक दिनों तक इनमें से किसी भी एक का सेवन करने से दस्त के साथ; और कभी-कभी मुंह के राह से कृमि निकल जाते हैं।

साइक्यूटा 6x — रोगी की गरदन में बहुत ज्यादा दर्द रहे और बीच-बीच में दृष्टिशक्ति का ह्रास या दृष्टिशक्ति लोप हो जाए।

कैल्केरिया कार्ब — हमेशा सिरदर्द, पेट तना हुआ या अफारा रहने पर दें।

स्पाइजेलिया 30 — हर समय बड़े जोर की भूख रहे, सवेरे जी मिचलाए, पेट से गले की ओर कुछ देला उठता-सा मालूम हो। प्रायः पेट में शूल की तरह एक प्रकार का दर्द होता हे और पतले दस्त आते हों, तो इस औषधि का सेवन करना उत्तम है। इससे मुंह की राह से कृमि निकल जाते हैं और उक्त समस्त उपसर्ग दूर हो जाते हैं।

क्रूपम ऑक्साइडेटम 1X — यह सब प्रकार के कृमियों की महौषध है। इसकी चौथाई या आधा ग्रेन 1 आउंस पानी के साथ और लाभ न होने तक नित्य 2-1 बार सेवन करनी चाहिए।

नैट्रम फॉस 30 — सब प्रकार के कृमि रोग की यह अक्सीर औषधि है।

सिना 2x, 200 — आंख की पुतली फैली, निद्रा में एकाएक चौंक उठना; बेहोश; वमन या मिचली; नाक का अगला भाग खुजलाना; मलद्वार में सुरसुरी और पेट में ऐंठन; मूत्र थोड़ा और दूध की तरह, राक्षसी भूख। सिना सब प्रकार के कृमियों के लिए उत्तम औषधि है।

स्टैनम 6, 30 — इस औषधि के सेवन से शरीर में कृमि नहीं रहते।

ट्युक्रियम 1X — गुह्यद्वार में तेज जलन, स्नायविक उत्तेजना के कारण सिर में चक्कर और निद्रा न आना। यदि सूत की तरह कृमि हों, तो इससे लाभ होता है।

सैंटोनाइन 1X — सब प्रकार के कृमियों में यह औषधि लाभ करती है। पेटदर्द के लक्षण में। अधिक उपयोगी है।

सल्फर 30 — कृमि से उत्पन्न शूल-वेदना में अथवा दूसरी औषध खाने के कारण रोग घट जाने पर इसका प्रयोग करें।

अभी तक बताए गए कृमियों के अतिरिक्त और भी कई कृमि हैं, जैसे-शोणित कृमि, श्लीपद चिपटा कृमि या फीलपांव कृमि, तंतुखननकारी कृमि, वक्र कृमि, उड़ने वाले कृमि आदि।

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