होम्योपैथिक मेडिसिन फॉर चिकन पॉक्स [ Homeopathic Medicine For Chicken Pox ]

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यह बड़ा ही संक्रामक रोग है। इसका बीज (विष या कीटाणु) शरीर में प्रवेश कर जाने के परिणामस्वरूप चेचक निकलती है। हवा और मक्खियों द्वारा यह रोग एक स्थान से दूसरे स्थान को जा पहुंचता है। श्वास लेते समय जिस व्यक्ति (या बच्चे) की नाक के भीतर यह विष चला जाता है, उसे ही यह रोग हो जाता है। यह रोग जीवन में केवल एक ही बार होता है और यह रोग प्रायः दो प्रकार का होता है, संयुक्त और असंयुक्त। संयुक्त रोग में दो-तीन या इससे भी अधिक गोटियां एक साथ जुड़ी रहती हैं। जब ये गोटियां पक जाती हैं, तब इनमें पीब पैदा हो जाती है, रोगी का चेहरा, माथा, गला और नाक के भीतर गोटियां होने पर रोग सांघातिक हो सकता है। चेचक का विष शरीर में जाने के 10-12 दिन बाद ज्वर आता है और ज्वर का ताप 103 से 107 डिग्री तक रहता है। चेहरे या शरीर पर जो दाग हमेशा के लिए बने रह जाते हैं, वे इसी चेचक का कुपरिणाम होता है। इसके विपरीत असंयुक्त चेचक की गोटियां अलग-अलग निकलती हैं। इसमें समस्त लक्षण संयुक्त चेचक के समान ही होते हैं, केवल ज्वर उतना तेज नहीं होता।

चेचक के रोगी को सदैव हवादार कमरे में रखना चाहिए और बार-बार रोगी का बिछावन बदल देना और मुलायम शय्या पर उसको सुलाना चाहिए तथा एक भाव से कभी सुलाये न रखना चाहिए। गोटियों में पीब होने पर बोरिक एसिड ‘एक भाग’ ऑलिव ऑयल ‘बीस गुना’ मिलाकर सारे शरीर में मल देना चाहिए। जब गोटियों में पीब हो जाने के बाद वे सूखने लगें, तो गरम पानी में एक साफ कपड़ा भिगोकर उन्हें पोंछ देना चाहिए। रोग के समय – सागू, बार्ली, आरारोट, सोडावाटर के साथ दूध, अंगूर, सेब आदि देना चाहिए और आराम हो जाने पर हल्का पुष्ट भोजन देना चाहिए (मछली, मांस और सेम खाना मना है)। रोगी को पवित्र भाव से रखना और गाय के दूध का मक्खन नित्य उसके शरीर में लगाना चाहिए और इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि रोगी अपना बदन जोर से न खुजलाए, इसलिए उगलियों के आगे कपड़ा बांध देना चाहिए और इस कपड़े को हमेशा बदलते रहना चाहिए।

चेचक के दाग मिटाने के लिए जैतून का तेल (ऑलिव ऑयल) व उसके साथ दूध की मलाई मिलाकर गोटियों पर लगाना चाहिए। घिसा हुआ चंदन या हाइड्रेस्टिस का धावन या हाइड्रेस्टिस का तेल लगाने पर बहुत लाभ होता है। चेचक के रोगी के पहनने और सोने के कपड़ों को जला देना चाहिए, नहीं तो रोग फैल जाता है। यह रोग घर में किसी और को हो सकता है, घर के बाहर भी जहां तक हवा जाए या जहां मक्खियां पहुंच जाएं, रोग के शिकार हो सकते हैं।

चेचक के दाग मिटाने के लिए – सैरासिनिया का सेवन करना चाहिए और चेहरा ढांपे रखना चाहिए तथा चेहरे पर तेज रोशनी नहीं लगने देनी चाहिए। हाइड्रेस्टिस का धावन या तेल लगाने से भी चेचक के दाग दूर हो जाते हैं।

एकोनाइट 3 तथा पल्सेटिला 3 – इन दोनों औषधियों में से प्रत्येक को दो दिन में दो बार लेना चाहिए। पहले एकोनाइट, फिर पल्सेटिला, फिर एकोनाइट, फिर पल्सेटिला। इस प्रकार चार-पांच दिन तक इन औषधियों को लेने से रोग का प्रभावी आक्रमण नहीं होता।

जेल्सीमियम 6, 30 – खसरे में ठंड तथा गर्मी एक-दूसरे के बाद आते-जाते रहते हैं, छींके आती हैं, गला दुखता है, नाक से लगने वाला स्राव बहता है, सिर और गुद्दी में दर्द होता है। प्यास नहीं रहती, रोगी तंद्रा (आलस्य) में पड़ा रहता है, आखों की पलकें भारी रहती हैं और रोगी चेहरे से संज्ञाहीन-सा लगता है।

ब्रायोनिया 6x – रोग की शुरुआत में तेज सिरदर्द, तीव्र ज्वर, जी मिचलाना तथा वमन के साथ दाने उभरने में यदि देर हो रही हो तथा हरकत करने से रोगी को कष्ट होता हो, तो इस औषधि का व्यवहार करना चाहिए।

एण्टिम टार्ट 30, 200 – मसूरिका रोग की दूसरी अवस्था में, जबकि गोटियां उठ आई हों, तब ये औषध दें। खांसी, ब्रोंकाइटिस तथा छाती में घड़घड़ाहट होने पर इससे लाभ होता है। डॉ० ड्यूई का कथन है कि इस औषध को रोग के आरंभ से अंत तक देते रहने से आशातीत लाभ होता है।

थूजा 6x – यदि काली तथा शोध युक्त त्वचा पर दूधिया, चपटे तथा पीब युक्त दानें निकल आएं, तब यह औषध विशेष लाभ करती है।

क्रोटेलस 3 – यदि चेचक का स्वरूप आरंभ से ही घातक प्रतीत हो, तो इस औषध का प्रयोग करना चाहिए ।

हिपर सल्फर 6 – चेचक के दानों को शीघ्र पकाने के लिए प्राय: यह औषध दी जाती है।

वेरियोलीनम 200 तथा सल्फर 200 – रोग के प्रतिरोधक के रूप में तथा उपचार के रूप में यह औषधि सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध होती है। रोगी की चिकित्सा के आरंभ में वेरियोलीनम की 200 शक्ति की एक मात्रा में दी जानी चाहिए। यह चेचक के विष से बना नोसोड है। प्रतिरोधक के तहत सप्ताह में एक बार (200 शक्ति की ही एक मात्रा) दे देने से ही लाभ होता है। बीच-बीच में सल्फर 200 की एक मात्रा दे देनी चाहिए। वेरियोलीनम से चेहरे पर चेचक के दाग नहीं रहते। कई होम्योपैथ का यह अनुभव है कि रोग आरोग्य हो जाने के पर्याप्त समय बाद भी यदि चेहरे पर चेचक के दाग रह जाएं, तो इससे वे दाग अवश्य ही मिट जाते हैं। कई चिकित्सकों का मत है कि आरंभ में इस औषधि का 6x या 12x सप्ताह में एक बार तीन सप्ताह तक देते रहने से रोग नहीं होता। यह एक प्रकार का ‘आभ्यंतर-टीका’ है। रोग के दौरान रोगी को इसी औषधि पर रखने से रोग ठीक हो जाता है। प्रतिरोधक के रूप में यदि वेरियोलीनम न दिया जाए, तो उसके स्थान पर मैलेन्ड्रिनम 30 उसी तरह दी जा सकती है।

थूजा (मूल-अर्क) 30 – बोनिन घॉसन का मत है कि चेचक की दूसरी अवस्था में जब दूधैल, चपटे, पस मिश्रित दाने काली, सूजी हुई त्वचा पर निकल आएं, पस की बदबू आने लगे, तब यह औषध विशेष लाभ करती है। इस औषधि में ‘प्रतिरोधक’ तथा ‘उपचारात्मक’ दोनों गुण विद्यमान हैं।

हाइड्रेस्टिस (मूल-अर्क) 30 – डॉ० गार्थ विलकिंसन का मत है कि जैसे बेलाडोना स्कारलेट फीवर की स्पेसिफिक औषधि है, वैसे ही यह चेचक की भी स्पेसिफिक औषधि है ।

हैमैमेलिस 6 – यदि चेचक के दानों से रक्तस्राव होने लगे, तब दें।

मर्कसोल 30 – जब चेचक में फफोले पकने लगें, तीसरी अवस्था आ जाए, तब उपयोगी है।

क्रोटेलस 6 – यह सर्प-विष से बनी औषधि है। चेचक का स्वरूप यदि आरंभ से ही घातक प्रतीत हो रहा हो, तब यह औषधि सेवन करानी चाहिए।

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