शिशु तथा बाल-रोग की समस्याएं का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Child Diseases And Disorders ]

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शिशु तथा बाल-रोगों को समझना कोई आसान काम नहीं है। बड़े बच्चे तो अपने कष्ट और परेशानी के बारे में बता देते हैं, किंतु जो शिशु बोल नहीं सकते, वह अपने कष्ट के बारे में भला क्या बता सकते हैं। उनके बारे में तो चिकित्सक को अपने ज्ञानानुसार ही जानना-समझना पड़ता है। रोगी शिशु अथवा बालक तो रुक-रुक कर रोता-बिलखता, तड़पता और हाथ-पैरों को इधर-उधर पटकता रहता है, बेचैनी से करवटें बदलता है, छटपटाता है और रोगी-अंग का बार-बार स्पर्श करता है। एक गुणी होम्योपैथ ही उसके क्रियाकलापों और लक्षणों को जानकर समझ सकता है कि उसे क्या दुख सता रहा है।

मल मूत्र का न होना

बेलाडोना 6 या ओपियम 6 — यदि तुरंत जन्म लेने वाले बच्चे को मल-मूत्र में अधिक विलंब हो रहा हो, तो उसे इन दोनों में से कोई भी एक औषधि देनी चाहिए और हाथ गरम कर उसके पेट पर फिराना चाहिए। यदि मलद्वार या मूत्र निकलने वाला छिद्र बंद हो, तो बच्चे को तुरंत किसी योग्य शिशु-रोग चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए।

एकोनाइट 3 — जन्म लेने के बाद किसी-किसी बच्चे को मल तो होता है, किंतु मूत्र नहीं होता। यदि 20 से 30 घंटे में मूत्र न हो, तो यह औषधि देनी चाहिए। यदि इससे कोई लाभ न हो, तो बेलाडोना 6 या कैन्थरिस 6 देनी चाहिए।

सिर बड़ा होना

आर्निका 3, 3x — किसी-किसी बच्चे का जन्म के पश्चात् मस्तक (माथा या सिर) कुछ बड़ा होता है। यदि अधिक दिनों तक यह बड़ा ही रहे और सिर पर कपड़ा इत्यादि बांधने से भी कोई लाभ न हो, तो उसे यह औषधि दें। सिर अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाएगा।

ब्रह्मतालु न भरना

सल्फर 30 — उत्पन्न होने के बाद यदि शिशु का ब्रह्मतालु 4-5 महीने के भीतर न भर जाए, तो उसे इस औषधि का सेवन कराना चाहिए। यदि औषध देने के। सप्ताह में कोई लाभ न हो, तो कैल्केरिया कार्ब 30 देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कभी-कभी कैल्केरिया फॉस 2 चूर्ण और सिलिका 30 देने की आवश्यकता भी पड़ जाती है।

दाने का निकलना

ब्रायोनिया 3, 6 — प्रायः गर्मी आदि कारणों से बच्चे के घमौरियों की तरह के दाने निकल आते हैं, जिनमें बहुत खुजली मचती है। इसमें बच्चे को नहला कर और कोई अच्छा पाउडर लगाकर औषध सेवन कराने से लाभ हो जाता है।

स्तन फूलना

हिपर सल्फर 6 और साइलीशिया 6 — कभी-कभी किसी नए पैदा हुए बच्चे का कोई एक स्तन फूल जाता है, तब इसमें पहले हिपर और बाद में साइलीशिया देने से लाभ होता है।

बेलाडोना 3 — यदि स्तंन में पीब पड़ जाए, तो यह औषधि दें।

यह समझकरे कि बच्चे के स्तन में दूध पैदा हो गया है, उसे दबाना या निचोड़ना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर उसमें प्रदाह पैदा होकर पीब भरा फोड़ा हो सकता है। जन्म लेने के बाद बच्चे के स्तन से दूध की तरह का तरल पदार्थ निकलता है, इसमें किसी औषधि को देने की आवश्यकता नहीं होती। इसमें आर्निका 3, बहुत लाल हो जाने पर बेलाडोना 3 देनी चाहिए।

अर्बुद होने पर

आर्निका 3 — कभी-कभी पैदा हुए किसी बच्चे के मस्तक पर अर्बुद-सा दिखलाई देता है। ऐसे में शुद्ध सरसों का तेल गरम कर उस पर लगाने और यह औषधि देने से लाभ हो जाता है। यदि इससे कोई लाभ न हो, तो कैल्केरिया कार्ब 6 कुछ दिनों तक देनी चाहिए।

बच्चे के शरीर पर घाव

सल्फर 30 — बच्चे को गंदा रखने की वजह से या त्वचा खराब होने से बच्चे की बगल में और कान के पीछे की ग्रंथि आदि में घाव हो जाता है। खाज या पीब भरी फुसियां होने पर इस औषधि का प्रयोग करें।

कैल्केरिया कार्ब 6 — त्वचा अस्वस्थ रहने के कारण घाव होने पर इसे दें।

लाइकोपोडियम 12 — यदि घाव से हमेशा रक्त बहता रहे, तो इसका प्रयोग करें।

ग्रैफाइटिस 6 — कान के पीछे वाले घाव से लसदार गोंद की तरह स्राव होता रहे, तो यह दें।

छाले हो जाना

रस-टॉक्स 3 — बच्चा पैदा होने के कई दिन बाद कभी-कभी बच्चे की पीठ, कान और गले के पीछे, हाथ-पैर और बगल आदि में एक तरह के छाले दिखाई देते हैं। इसके भीतर का स्राव पहले पीला, फिर लाल होकर सूख जाता है या फट जाता है। कभी-कभी सिर पर पपड़ी जम जाती है। रस-टॉक्स इसकी प्रधान औषधि है।

विपर्स

बेलाडोना 3s, एपिस 3 या रस-टॉक्स 6 — सर्दी लगना आदि कारणों से बच्चे की शरीर की त्वचा का कोई-कोई अंश पहले लाल होता है, फिर सारा शरीर लाल हो जाता है, ज्वर आ जाता है, प्रदाह वाली जगह सूख जाती है और घाव होकर स्राव निकलता है। यह एक गंभीर रोग है। इस रोग की यह सर्वोत्तम औषधियां हैं।

अकौता

मर्क्युरियस 6 — बच्चों को भी प्रायः यह रोग हो जाया करता है। यह खुजली की तरह होता है, किंतु इसमें सब जगह खुजली की तरह बिखरी न रहकर, कई फुसियां एक ही जगह होती हैं। विशेषकर सोरा धातु-ग्रस्त बच्चों को यह रोग हुआ करता है। इस रोग में यह औषधि बहुत उपयुक्त है। यदि इससे लाभ न हो, तो लाइकोपोडियम 12 देनी चाहिए।

बच्चे की आंख उठना

आर्ज-नाई 3 — कभी-कभी बच्चे की आंख उठ जाती हैं। आंखें फूल जाती हैं, लाल हो जाती हैं, पीब निकलने लगती हैं, जिससे आंख बंद हो जाती हैं, यहां तक कि कभी-कभी आंखों में घाव भी हो जाता है। यह बच्चों के चक्षु-प्रदाह की उपयोगी औषधि है।

एकोनाइट 3x — सर्दी, ओस या ज्यादा रोशनी लगकर आंखों में प्रदाह पैदा हो गया हो, ज्वर, बेचैनी, नींद न आना, आंखों से अधिक पानी गिरना, आंखों की पुतलियों का लाल होना आदि लक्षणों में यह औषधि लाभप्रद है।

कान में मैल और दर्द

स्टैफिसेग्रिया 3 — बहुत दिनों तक कान पका रहने पर कभी-कभी कान में मैल इकट्ठा हो जाता है। यह कान के मैल की प्रधान औषधि है। कभी-कभी कैल्केरिया कार्ब की भी आवश्यकता पड़ जाती है।

ऐकोन 3 — सर्दी लगने, चेचक होने, कान में पानी जाने या दांत निकलने के समय कभी-कभी बच्चे के कान में दर्द हो जाता है। बच्चे के कान पर हाथ लगाते ही वह चिल्ला पड़ता है, इससे पता चलता है कि उसके कान में दर्द है। सर्दी लगकर दर्द होने में यह औषधि उपयोगी है।

बेलाडोना 3 — कान फूलकर वह लाल और गरम हो जाए, तब यह दें।

कैमोमिला 12 — दांत निकलते समय कान में दर्द होने पर यह औषधि लाभ करती है।

टंकार या खींचना

बेलाडोना 6 — बचपन में स्नायु-मंडल की क्रिया थोड़े से में उत्तेजित हो जाया करती है, इसी कारण से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग के लक्षण मिर्गी और हिस्टीरिया के समान होते हैं। दांत निकलने के समय, चेचक अथवा खसरा अच्छी तरह ऊपर न आने पर या कृमि-रोग रहने पर अथवा पाकाशय की गड़बड़ी के कारण से यह रोग होता है। आंखें तथा चेहरा लाल, आंखों की पुतली फैली हुई, माथा गरम, बच्चे का चौंक उठना या उछल पड़ना इत्यादि लक्षणों में यह औषधि बहुत उपयोगी है।

ओपियम 30 — चेहरा मलिन, गरम और सूजा हुआ, समूचे शरीर में कंपकंपी, मुंह से घर-घर या गों-गों की आवाज निकलना, ऊपर की ओर टकटकी बांधे बच्चे का चुपचाप पड़े रहना और कब्ज के लक्षण में यह औषधि लाभ करती है।

कैमोमिला 6 — दांत निकलने के समय ऐंठन होने पर।

सल्फर 30– — चर्म-रोग के दाने बैठ जाने पर अकड़न हो।

बच्चे की सर्दी गर्मी

ग्लोनोइन 3 — बच्चे को सर्दी-गर्मी लगना। पहले गर्मी मालूम होती है, प्यास लगती है, इसके बाद सर्दी लगती है, शरीर की त्वचा शुष्क हो जाती है; सिर में दर्द, आंखें लाल, मिचली या वमन, बार-बार मूत्र होता है। इसके बाद शरीर की गर्मी कम होने लगती है। कभी-कभी बेहोशी छा जाती है, नाड़ी तेज चलती है, बच्चे का दम अटक जाता है, तब यह उपयोगी है।

मस्तिष्क में जल संचय

कैल्केरिया 30, साइलीशिया 30, सल्फर 30 — पैदा होने से लेकर 1 वर्ष के भीतर मस्तिष्क में शोथ हो सकता है। यह रोग 8 से 10 वर्ष की आयु तक रह सकता है। बच्चा मां का दूध मजे में पीता है, फिर भी दुबला होता जाता है; धीरे-धीरे सिर बड़ा होता जाता है। बच्चा बूढ़े जैसा दिखाई देने लगता है और सदा पड़ा रहना चाहता है। उसकी इंद्रियां अवश हो सकती हैं और वह मर भी सकता है। ये तीनों इस रोग की उत्कृष्ट औषधियां हैं।

हेलिबोरस 3 — यदि अज्ञानावस्था में बच्चे का मूत्र बंद हो जाए और वह पानी। के अतिरिक्त और कुछ न लेना चाहे, तो इस अवस्था में यह उत्तम औषधि है।

मस्तिष्क में रक्त संचय

एपिस 3 — मस्तिष्क में रक्त-संचय के कारण आंखों का लाल होना, चेहरा और आंखें तमतमाईं, कपाल और गरदन के पीछे शिराओं का फूल उठना, श्वास जल्दी-जल्दी। और कष्टकर होना. गहरी निद्रा में भी एकाएक चिल्ला उठना आदि इस रोग के प्रधान लक्षण हैं। सिर के बल गिर जाना, दांतों को निकलना, काली खांसी की वजह से सिर में रक्त का वेग बढ़ जाना, शिराओं पर अधिक दबाव पड़नी आदि कारणों से इस रोग की उत्पत्ति होती है। इसमें एपिस बहुत लाभ करती है।

जेलसिमियम 1X — सिर भारी, आंखें बंद किए पड़े रहना, शरीर का ताप 103 डिग्री तक आदि लक्षणों में इसे दें।

बेलाडोना 3x — चेहरा और आंखें कोली और चमकीली, आंखों की पुतलियां फैलीं, तंद्रालु भावे, पर नींद न आना, बीच-बीच में चौंक उठना, ब्रह्मतालु फूल उठना आदि में दें।

बच्चे को निद्रा न आना

बेलाडोना 6 — मस्तिष्क में रक्त की अधिकता या रक्त एकत्र होने पर या प्रसूता अथवा बच्चे का अनुचित खान-पान या कृमि के कारण निद्रा नहीं आती। मस्तक गरम, अकारण बराबर रोना या चिल्ला पड़ना; यह औषधि इसमें लाभ करती है।

कैमोमिला 6 — रह-रहकर शरीर का फड़कना, शरीर गरम, चिड़चिड़ाव और हमेशा गोद में रहने की इच्छा करना।

दूध की उल्टी करना

नक्सवोमिका 6 — स्नायविक उत्तेजना या पाकस्थली के दोष आदि के कारण से बच्चा जो दूध पीता है, उसे वमन द्वारा निकाल देता है। बच्चे की दूध न पीने की इच्छा, खट्टा, बदबूदार वमन या पित्त मिला हरे रंग का वमन, कब्ज आदि के लक्षण में यह औषधि उपयोगी है।

कैल्केरिया कार्ब 30 — अम्ल की वजह से दूध का वमन करने पर।

हिचकी आना

नक्सवोमिका 30 — कभी-कभी सर्दी लग जाने के कारण से बच्चों को जोर-जोर की हिचकियां आने लगती हैं। कुछ बूंदे मिश्री मिला जल या यह औषधि खिला देने से इसमें लाभ होता है। बच्चे के शरीर को गरम रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

दांत निकलना

कैमोमिला 12 — शिशु को छह महीने से लेकर दस महीने के भीतर ही दांत निकल आया करते हैं; पहले निचले मसूढ़े में दो, फिर ऊपर वाले मसूढ़े में दो, इसी तरह तीन साल में सब दांत निकल आते हैं। ज्वर, कब्ज, आक्षेप, अनिद्रा आदि उपसर्ग दांत निकलते समय दिखाई देने पर।

नाक का बंद होना

डल्कामारा 3 — सर्दी सूख जाने पर कभी-कभी बच्चे की नाक बंद हो जाती है। इससे बच्चे को श्वास लेने और छोड़ने में कष्ट होता है; स्तन से दूध पीने और नींद में रुकावट पैदा हो जाती है, सांय-सांय शब्द होता है और कफ निकलता है, नाक सूखी होती है, तब यह औषधि दें।

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