पुराना स्वरयंत्र का प्रदाह का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Chronic Laryngitis ]

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स्वरयंत्र के प्रदाह के संबंध में अभी तक जो कुछ कहा जा चुका है, वह सब नये प्रदाह के संबंध के अंतर्गत हैं। स्वरयंत्र जीर्ण (पुराना) आकार धारण कर कितनी ही बार रोगी को कष्ट प्रदान किया करता है। स्वरयंत्र में यदि बार-बार प्रदाह हो जाता है, तो वह एकदम सामान्य रूप से आरोग्य नहीं होती, प्रायः पुराना आकार धारण करता है। इसके अतिरिक्त लगातार गायन करना या वक्तृता देना, तंबाकू आदि का सेवन करना, सर्दी में नाक बंद हो जाने के कारण मुंह से श्वास लेना या छोड़ना इत्यादि कारणों से भी स्वरयंत्र पर रोग का दौरा होता है।

मैंगेनम 3, 30 — स्वरयंत्र खुश्क, खुरदुरा, सिकुड़ा-सा, स्वरयंत्र का क्षय-रोग, गले में से कफ निकालना कठिन हो जाता है, वह जमा रहता है। गले में ऐसी चुभन जो कान तक पहुंचती है, पुराना गला पड़ा हुआ।

हिपर सल्फर 6 — डॉ० मिचेल के कथनानुसार यह औषधि अन्य सब औषधियों से अधिक कारगर सिद्ध हुई है। गायन करने वाले, वकील या कवि लोगों के गले बैठ जाने पर इसका तत्काल असर दिखाई देता है। स्वरयंत्र से सूखी खांसी आती है और स्वरयंत्र रुंधता-सा लगता है, खांसने पर पीला कफ निकलता है।

बैसोलीनम (ट्युबर्म्युलीनम) 200, 1M — वृद्ध व्यक्तियों की खांसी और जीर्ण स्वरयंत्र प्रदाह में इस औषधि को 15 दिन में एक बार देनी चाहिए। जब लाभ आरंभ हो जाए, तो औषथि देना बंद कर दें।

कार्बोवेज 6, 30 — शक्तिहीनता (कमजोरी) तथा पोषण-क्रिया के अभाव के कारण पुरानी खांसी, ऐसी खांसी जो जुकाम से आरंभ हो और अंत में जाकर स्वरयंत्र तथा छाती में जाकर डेरा डाल दे, तब यह औषधि दें।

लैकेसिस 30 — गले के बाएं हिस्से में टांसिल हो जाए, टांसिल का रोग पुराना होने के कारण बार-बार “खों-खों” करना पड़े, गर्म पदार्थ पीने से कष्ट हो; गला जरा-सा भी स्पर्श सहन न कर सके, इव-पदार्थ यो सैलाइवा भी निगलना कठिन हो जाए, तब इस औषधि को प्रयोग करें।

कॉस्टिकम 3, 30 — गले की नसें कमजोर हो जाएं, कफ अत्यधिक गाढ़ा हो, खांसते-खांसते पेशाब की हाजत हो जाए, स्वरयंत्र की पुरानी खांसी में, यदि गले से आवाज न निकले, तब दें।

कैलि बाईक्रोम 3x, 3, 30, 200 — सूतदार कफ जो कठिनता से निकले, अंदर चिपटा हो।।

एण्टिम टार्ट 6 — घड़-घड़ करता ढीला कफ, जिह्म दूध के लेप जैसी सफेद।।

फास्फोरस 30 — गले में खराश, सूखी खांसी, गला रक्त की कमी से पीला पड़ जाए। इस औषधि में गले के नीचे वायु-नलियों तक से खांसी उठती है, रोगी को गहरा खांसना पड़ता है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 30, 200 — नेताओं, गायकों और वक्ताओं का पुराना स्वरयंत्र-प्रदाह, जरा-सा तेज बोलने से ही खांसी आ जाती है। स्वरयंत्र में सूजन होती है, गले का स्वर बंद हो जाता है, गला फंसता है। रोगी बार-बा-पानी के घूट लेता है। कोई भी चीज निगलने में पीड़ा होती है, सूखी आक्षेपिक खांसी ओती है; पीब-श्लेष्मा मिला कफ निकलता है, रोगी गला खखारा करता है।

कैल्केरिया कार्ब 6, 30 — तंग करने वाली सूखी खांसी, रात में खांसी का वेग बढ़ जाता है। बहुत देर तक खांसने के बाद लसदार और गोंद की तरह कफ निकलता है; स्वरयंत्र और फुसफुस में जख्म होता है। स्वरयंत्र उपास्थि में नेक्रोसिस (हड्डी का जख्म) हो जाता है। अति पुराना रोग, स्वर-नली में बहुत उपदाह हो जाता है।

फेरम पिक्रिक 30 — रोगी को कानों से कम सुनाई देता है, कान के भीतर आवाज होती है, कब्जियत रहती है। सवेरे सोकर उठने पर बहुत अधिक परिमाण में कफ निकलती है, गंला फंसता है, बोलते समय गले का स्वर बंद हो जाता है।

एसिड नाइट्रिक 30 — बहुत दिनों की सूखी खांसी, रोगी दिन भर खांसता है, रात में खांसी का वेग बढ़ जाता है, रोगी सोते समय अधिक खांसता है, किंतु कफ नहीं निकलता। गले के भीतर कांटा चुभने की तरह दर्द होता है।

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