मनोभ्रंश (डिमेंशिया) का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Dementia ]

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जिस उन्माद रोग में बुद्धि का कार्य कम हो जाता है, एकदम नष्ट हो जाता है, उसे ही “बुद्धि-वैकला” कहते हैं। यह रोग 6 प्रकार का होता है-(1) नया या तरुण, (2) शराब से पैदा हुआ, (3) हस्तमैथुन के कारण, (4) वृद्धावस्था के कारण, (5) यांत्रिक और (6) गौण।

नया या तरुण बुद्धि-वैकल्य

विषाद वायु-रोग की अचेतनावस्था और बुद्धि-वैकल्य का तरुणावस्था का प्रभेद निर्णय करना अति कठिन कार्य है। 15 से 30 वर्ष की आयु तक इसका आक्रमण अधिक होता देखा जाता है। पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को यह रोग अधिक होता है। एकाएक आक्रमण; मूर्खपन, गंदा रहना, मौन रहना, भूल सुनना, कठपुतली की तरह चाल-ढाल, चेहरा फूला और उतरा हुआ-सा आदि इस रोग के लक्षण हैं।

फास्फोरिक एसिड और ऐनीकार्डियम 30 — मानसिक-शक्ति एकदम कमजोर हो जाने या मानसिक चिंता अथवा भाव का स्रोत एक ही प्रकार का होने पर यह रोग हो जाता है। बहुत दिन तक कल-कारखाने में या जहाज के मल्लाह बनकर, जो एक ही प्रकार का कार्य अपने जीवन भर करते हैं, उन्हें ही मुख्यतः यह रोग होता है। ये दोनों इसकी प्रमुख औषधियां हैं।

शराब से पैदा हुआ बुद्धि-वैकल्य

शराब का अति सेवन करने वालों को यह रोग हुआ करता है।

ऐनाकार्डियम 200 — स्मरण-शक्ति का तेजी से कम होना, यहां तक कि अपना नाम तक भूल जाना, इच्छाशक्ति में कमजोरी, रोगी का अपने शरीर में वेश-भूषा पर ध्यान न देना, शरीर की गर्मी स्वाभाविक से भी कम, पाकाशय-प्रदाह आदि इस रोग के विशेष लक्षण हैं। यह औषधि इसमें उपयोगी है।

हस्तमैथुन के कारण बुद्धि-वैकल्य

प्रायः युवक-युवतियों को यह रोग अधिक होता है।

फास्फोरिक एसिड 6 — स्मरण-शक्ति की कमी, मानसिक दुर्बलता, उदासीनता, टकटकी बांध कर देखना, सिर झुकाकर बैठना, हाथ-पैर ठंडे और तर, चरित्र-दोष आदि इस रोग के लक्षण हैं। इसमें यह औषधि बहुत अच्छा काम करती है। यदि इससे लाभ न हो, तो कोनायम देनी चाहिए।

वृद्धावस्था के कारण बुद्धि-वैकल्य

साधारणतः 60 वर्ष की आयु के बाद यह रोग होता है और धीरे-धीरे रोग का आक्रमण होता है।

कैल्केरिया कार्ब 30 — स्मरण-शक्ति का नष्ट हो जाना, क्रोधी स्वभाव, बेचैनी, अव्यवस्थित मति, अधिक आत्म-गरिमा, भ्रांत-विश्वास, किसी मूर्ति या वस्तु की अनुभूति या कल्पना करना, चाल-चलन ऐसा जिससे मालूम हो कि उसकी बुद्धि खराब हो गई है। यह उपसर्ग इस रोग में दिखाई देते हैं। इसका भावी-फल अच्छा नहीं है। यह औषधि इसमें लाभ करती है।

यांत्रिक बुद्धि-वैकल्य

संन्यास-रोग और मस्तिष्क के ट्यूमर रोग के बाद यह रोग घट जाता है।

कोनीयम 6, 30 — डरा हुआ भाव या संदेही चित्त, स्मरण-शक्ति लोप, देखने और सुनने में भ्रम होना, अर्द्धग की अकड़न या पक्षाघात और खींचन इसके प्रधान लक्षण हैं। कोनायम से यह उपसर्ग दूर हो जाते हैं।

गौण बुद्धि-वैकल्य

किसी भी उन्माद-रोग की यह प्रथमावस्था है।

क्रोटेलस 30 — मानसिक दुर्बलता थोड़ी या बहुत। इच्छा-शक्ति और स्मृतिशक्ति की कमी या दुर्बलता अधिक। मानसिक वृत्तियों का एकाएक नाश हो जाना आदि इस रोग के उपसर्ग हैं। यह औषधि इस रोग में लाभ करती है। इस रोग की अन्य औषधियां निम्नलिखित हैं —

हेलिबोरस 3x — रोगी को आसपास की चीजों या मनुष्य आदि के संबंध में उदासीनता, स्मरण-शक्ति की कमी, रो देने की इच्छा, कमजोरी और दुबलापन, हस्तमैथुन से पैदा हुए बुद्धि-वैकल्य में अधिक मात्रा में मूत्र आना, मानसिक चिंता, दृढ़ भ्रांत विश्वास, उन्माद या विषाद वायु-रोग के बाद ही बुद्धि बिगड़ जाने की सूचना। यदि हेलिबोरस से लाभ न हो, तो जिंकम 6 देनी चाहिए।

लिलियम टिग 6 — विषाद रोग के साथ हस्तमैथुन, स्मरण-शक्ति की कमजोरी, परिवार या काम के संबंध में उदासीनता, लेटने पर सिर में चक्कर आना, इंद्रिय-ज्ञान में कमी, सहन करने की शक्ति का न होना, भागने की कोशिश, बकवाद और खिन्न रहना। गहरी मानसिक सुस्ती, बराबर रोने की इच्छा, समझाने-बुझाने से रोग का बढ़ना; शाप देने, मारने और अश्लील बातों को सोचने की तीव्र इच्छा, लक्ष्यहीनता; सब कामों में जल्दबाजी; रोगी समझता है कि उसे कोई यांत्रिक रोग हुआ है।

ऐगारिकस 30 — साधारण या छिपा हुआ बुद्धि-वैकल्य।।

कैल्केरिया फॉस 6x — बुद्धि-वैकल्य इतना अधिक हो कि उसकी किसी विषय में धारणा ही न जमे; रोगी सोच न सके और सहज में ही रो पड़े; सिर में चक्कर और सिर भारी। चिड़चिड़ा स्वभाव, वर्तमान की घटनाएं भी याद न रहें; रोगी आसपास के मनुष्यों को पहचान न सके या घटनाएं समझ न सके। घर में हो पर कहे कि घर जाएंगे। थोड़ी आयु के व्यक्ति या दुबले-पतले शिशु के लिए यह उपयोगी औषधि है।

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