सांस फूलने की बीमारी का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Difficulty In Breathing ]

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भारी-भारी श्वासकष्ट को दमा (अस्थमा) नहीं कहा जा सकता। यों इनमें थोड़ा-सा ही अंतर है। श्वास का भारीपन मुख्यतः दो कारणों से हो सकता है-(1) अधेड़ या अधिक आयु के वृद्ध व्यक्तियों को श्वास-प्रणालिका के पुराने जुकाम आदि रोगों के कारण, (2) वर्षाकाल में या हृदय की धड़कन आदि की वजह से इस रोग की उत्पत्ति हो जाती है।

ऐस्पिडोस्पर्मा (मूल-अर्क या 1x) – डॉ० हेल ने इस रोग को फेफड़ों का डिजिटेलिस कहा है। यह श्वास-केंद्रों को उत्तेजित कर रुधिर में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ा देता है और कार्बोनिक एसिड को बाहर निकाल देता है, जिससे रोगी का हांफना समाप्त या बंद हो जाता है। यह डिस्पनिया की अच्छी औषधि मानी जाती है।

आर्सेनिक 30 – हृदय की गति तेज हो जाने तथा हृदय के अन्य रोगों में, हांफने लगने में यह औषधि अति उत्तम है। वैसे यह अस्थमा (दमा) की भी अधिक प्रसिद्ध औषधि है।

डिजिटेलिस 2 – हांफने के रोग में जब रोगी की नब्ज अत्यन्त दुर्बल हो जाए, एक मिनट में 30-40 तक पहुंच जाए, तब समझना चाहिए कि इस औषधि का लक्षण उत्पन्न हो गया है। ऐसे समय रोगी रह-रहकर गंभीर श्वास लेता है; सोते समय मालूम होता है कि श्वास एकाएक बंद हो जाएगी, श्वास लेने के लिए रोगी उठ बैठता है। बहुत धीमी नब्ज होने की वजह से श्वास का कष्ट, हांफने लगना इसका चरित्रगत लक्षण है। डॉ० नैश एक रोगी का उल्लेख करते हुए लिखते हैं कि वह देखने में हृष्ट-पुष्ट था, किंतु सड़क पर ऐसे चला जा रहा था, जैसे उसने शराब पी रखी हो, उसके कदम लड़खड़ा रहे थे। उसका श्वास बहुत अधिक फूल रहा था। जब उसे पानी में इस औषध की कुछ बूंद डालकर दी गई, तो तत्काल ही उसका हांफना थम गया ओर वह बड़े आराम से अपनी रास्ते चला गया। इस औषध डिजिटेलिस से वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया।

स्पंजिया 2x 3 – खुश्क खांसी, कुकुर (कुत्ता) खांसी, श्वास थोड़ा-थोड़ा रुक-रुककर आता है मानो श्वास-नली में डाट लग गई है, हृदय की भी धड़कन होती है, तेज धड़कन जिसमें रोगी हांफने लगता है। रोगी के हांफने में श्वास-कष्ट तथा हृदय-कष्ट दोनों होते हैं, या हो सकते हैं।

सल्फर 30 अथवा कैल्केरिया कार्ब 30 – डॉ० जहार के अनुसार वृद्ध व्यक्तियों के हांफने में जो श्वास-प्रणालिका के पुराने जुकाम के कारण हुआ करता है और बसंत-ऋतु के दिनों में अथवा वर्षाकाल या धुंध के मौसम में तंग किया करता है, इन दोनों औषधियों में से कोई एक रोगी का कष्ट-निवारण कर सकती है।

सेनेगा (मूल-अर्क) 3, 6 – डॉ नैश लिखते हैं कि जब कफ छाती में भरा हुआ हो या भर जाता हो, घड़घड़ करता हो, श्वास में कष्ट होता हो, तो इन लक्षणों में वृद्ध व्यक्तियों में यह औषधि बहुत लाभ पहुंचाती है। दूसरों के लिए भी उक्त लक्षणों में लाभकारी है। विशेषकर यह औषधि निम्न-शक्ति में ही लाभप्रद है, उच्च में नहीं। एक वृद्ध स्त्री को हांफने में इपिकाक, आर्सेनिक और एण्टिम टार्ट से कुछ लाभ न हुआ, तब उसे सेनेगा मूल-अर्क की 7 बूंद आधा गिलास पानी में दिए जाने पर आश्चर्यजनक लाभ हुआ।

एपिस 6 – यदि छाती में पानी भरे होने से सूजन हो, तब रोगी अवश्य ही हांफता है, उस की श्वास भारी हो जाती है, कठिनाई से श्वास आता है, दम घुटता है, रोगी को ऐसा प्रतीत होता है कि यह उसकी अंतिम श्वास है और अब वह आगे श्वास नहीं ले सकेगा। डॉ० नैश का कथन है कि यह लक्षण छाती में पानी भर जाने से सूजन होने पर नहीं, यह नर्वस-लक्षण भी है। यदि किसी भी कष्ट में श्वास के संबंध में ऐसा अनुभव हो कि बस यह अंतिम श्वास है, तब इस औषधि को देना आवश्यक है।

एस्पिडोस्पर्शा, क्विब्रैकों (मूल-अर्क) – डॉ० नैश ने इसे फेफड़ों के डिजिटेलिस का नाम दिया है। यह श्वास-केंद्रों को उत्तेजित कर रुधिर में ऑक्सीजन की मात्रा में वायु अधिक संचित नहीं रहती और रोगी का कष्ट-निवारण हो जाता है।

लोबेलिया 3 – फेफड़ों से संबंधित सभी रोग में इससे लाभ होता है।

इपिकाक 30, 200 – डॉ० नैश के कथनानुसार इस औषधि का श्वास-प्रणालिका तथा पाचन-प्रणालिका दोनों पर विशेष प्रभाव है। फेफड़ों में कफ जमा हो जाता है और इतना जमा हो जाता है कि श्वास रुक जाने का अनुभव होता है। इस प्रकार कफ श्वास-प्रणालिका के विरुद्ध हो जाने से दमे का-सा दौरा पड़ता है, ऐसा लगता है कि हूपिंग-कफ का दौरा पड़ गया है, यद्यपि यह बात नहीं होती। इस औषधि का श्वास-नलिका का कष्ट दो रूप में प्रकट होता है – (1) ऐसा कष्ट जिसमें श्वास प्रणालिका में कफ जमा हो जाता है, (2) ऐसा कष्ट जिसमें श्वास-कष्ट में दौरा-सा पड़ता है। रोगी लगातार खांसता जाता है, फेफड़ों में कफ भी भरा रहता है, खांसने का दौरा पड़ता है और श्वास के रुके रहने से कष्ट होता है, ऐसे में यह औषधि बहुत लाभ करती है।

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