ग्रंथियां “गांठे” का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Glands ]

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शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों में जो ग्रंथियां होती हैं, उन्हें तीन भागों में बांटा जा सकता है —

  • प्रणालिका सहित ग्रंथियां
  • प्रणालिका रहित ग्रंथियां
  • लसिका (लिम्फटिक) ग्रंथियां

प्रणालिका सहित ग्रंथियां

शरीर में अनेक ग्रंथियां प्रणालिका सहित हैं। उदाहरण के लिए, जो स्वेद ग्रंथियां हैं और जिनकी प्रणालिका त्वचा में खुलती है, जहां पसीना आता है; आंख के कोनों में अश्रु-ग्रंथियां हैं, जिनके कारण आंखों में आंसू आ जाते हैं। ये प्रणालिका सहित ग्रंथियां स्वस्थ रह सकती हैं, सीमा से अधिक स्राव उत्पन्न कर रोग की उत्पत्ति कर सकती हैं, या सूख जाने के कारण इन ग्रंथियों से जो रस निकलता है, उसके अभाव के कारण रोग उत्पन्न हो सकता है।

प्रणालिका रहित ग्रंथियां

ये हार्मोन्स को उत्पन्न करती हैं। इनके स्राव को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए कोई सिस्टम नहीं है; ये स्राव इन ग्रंथियों में से निकलते रहते हैं और शरीर में जज्ब होते रहते हैं। इनका स्राव “आभ्यंतर स्राव” कहलाता है। गुर्दे के ऊपर एक ग्रंथि होती है, जिसका स्राव रक्त-वाहिनियों को शक्ति देता है। ऐसे ही गले के नीचे एक ग्रंथि होती है, जिसे “थाइरॉयड-ग्लैंड” कहते हैं, इसके स्राव का प्रभाव पोषण-क्रिया पर पड़ता है; कुछ ग्रंथियां पाकाशय रस उत्पन्न करती हैं, जिनसे भोजन पचता है और अंडकोश वीर्य उत्पन्न करते हैं।

लसिका ग्रंथियां

इसमें रक्त के पोषण-तत्व सार रूप में रहते हैं। यह ग्रंथियां शरीर के कोष्ठकों का पोषण करती हैं। शरीर के कोष्ठक एक-दूसरे से जुड़े नहीं हैं; एक कोष्ठक तथा दूसरे कोष्ठक के बीच लसिका-रस रहता है, इसी के माध्यम से कोष्ठक जीवन-रस को खाते-पीते, श्वास लेते हैं, इसी से अपना भोजन ग्रहण करते हैं। इस प्रणालिका की शरीर में जगह-जगह ग्रंथियां (गांठें हैं, जिनका काम इस पोषक तत्व में पाए जाने वाले विषों, कीटाणुओं को उस ग्रंथि में कैद कर लेना है। जब शरीर में कोई कीटाणु का विष प्रविष्ट हो जाता है, तब उसे ये ग्रंथियां आगे जाने तथा शरीर में फैलने से रोक लेती हैं; ग्रंथियां सूज जाती हैं, पक जाती हैं। शरीर के बहुत से भाग इन ग्रंथियों से प्रभावित होते हैं।

सल्फर 30 — ग्रंथि-रोग की औषधियों में सल्फर को बहुत उच्च स्थान प्राप्त है। रोगी की ग्रंथियां इतनी रोगाक्रांत होती हैं कि वह पर्याप्त पौष्टिक भोजन करता है, तो भी उसका शरीर पुष्ट नहीं होता। रोगी बच्चा खूब खाता है, फिर भी दुबला-पतला होता जाता है। चिकित्सक को यह स्पष्ट दिखता है कि वह कंठमाला-प्रकृति का रोगी है।

कैल्केरिया कार्ब 30, 200 — शरीर की परिपोषण-क्रिया में गड़बड़ी के कारण रोगी की ग्रंथियों, त्वचा तथा हड्डी पर इस औषधि का विशेष प्रभाव पड़ता है। ग्रंथियां बढ़ जाती हैं, सूज जाती हैं; कंठमाला की प्रकृति में इस औषधि का प्रयोग किया जाता है, इसे क्षयरोग का आरंभ भी समझा जा सकता है। पिट्युटरी तथा थाइरॉयड ग्रंथि को कार्य जब ठीक प्रकार से नहीं होता, तब रोगी के सिर पर पसीना आता है, उसमें से खट्टी बू आती है। यह औषधि कंठमाला, ग्रंथियों की सूजन तथा टांसिल्स में उपयोगी है।

वैसीनीलम 200 — ग्रंथियों का बढ़ना प्रायः टी.बी. रोग का सूचक होता है। जिस व्यक्ति में ग्रंथियों के विकार के कारण या अन्य किसी कारण से क्षयरोग की संभावना हो, उसका उपचार इस औषधि से आरंभ करना चाहिए। सप्ताह में एक बार इसकी 1 मात्रा दें।

कोनायम 30 — इस औषधि से ग्रंथियों की समस्या हल हो जाती है। हाथ से स्पर्श की जाने वाली ग्रंथियां और ट्यूमर आदि में इससे लाभ होता है। यदि ग्रंथियों पर चोट लगने से वे सख्त हो जाएं, उसमें भी यह औषधि लाभ करती हैं।

कार्बो एनीमैलिस 3, 30 — कभी-कभी स्त्री के स्तन की ग्रंथियों में कठोरता आ जाती है, उसमें ककड़ियों जैसी गोल-गोल गुठलियां-सी उभर आती हैं। इन गुठलियों के आस-पास की त्वचा नीली पड़ जाती है और उसमें दाग पड़ जाते हैं। यदि जरायु के मुख पर कैंसर हो जाए, तो जरायु का मुख भी पत्थर के समान कठोर पड़ जाता है। बगल की गांठ, जांघ की गांठ अथवा लिम्फैटिक गांठ की सूजन में तथा छाती की गांठ में भी यह औषधि बहुत लाभ करती है।

बैराइटा कार्ब 30 — वृद्ध व्यक्तियों के शरीर में यदि ह्रास की प्रतिक्रिया शुरू हो जाए, प्रोस्टेट बढ़ जाए, अंडकोष कठोर हो जाएं, ठंड बर्दाश्त न हो, पैरों में बदबूदार पसीना आए; अथवा जिन बच्चों में क्षयरोग की प्रवृत्ति पाई जाए, शरीर की ग्रंथियां इस तरफ संकेत करें कि रोगी क्षयरोग से पीड़ित हो सकता हैं बच्चे के शरीर का विकास रुक जाए, खांसी-जुकाम और टांसिल उसे परेशान करें, जबड़े के नीचे की ग्रंथि सूज जाए; इन सब लक्षणों में यह औषधि अत्यंत उपयोगी है।

आयोडम 6, 30 — रोगी की ग्रंथियां बढ़ जाती हैं, भूख अधिक लगती है। वह खूब खाता है फिर भी शरीर क्षीण होता जाता है। उसकी शक्ल क्षयरोगी जैसी हो जाती है। सारा शरीर मुझ जाता है; स्तनों की ग्रंथियां सूख जाती हैं, पुरुषों के अंडकोश सूख जाते हैं। वैसे इस रोग के रोगी की ग्रंथियां बढ़ जाती हैं। आयोडम इसमें बहुत उपयोगी है।

हिपर सल्फर 30 — यदि ग्रंथि-रोग में ग्रंथि पक जाए और उसमें पस पड़ जाए और यह पस निरंतर निकलता रहे, तब प्रायः इस औषधि से रोग में आराम हो। जाता है।

साइलीशिया 30 — इस औषधि में बच्चे के पैरों में बदबूदार पसीना आता है, अंगूठे और उंगलियां पकने व सड़ने लगती हैं। यदि हिपर से पस निकल जाए, किंतु जख्म सूखने में न आ रहा हो, तब इससे जख्म ठीक हो जाता है। बच्चा दुबला-पतला और कमजोर, सिर से गले तब पसीना, दोनों भौंहों के बीच माथे की हड्डी सूजी हुई, गले की ग्रंथियां सूजी हुई; कानों की ग्रंथियों में भी बेहद सूजन; इस औषधि में प्राय; ग्रंथियों के सूजने, पकने और उनमें से पस निकलने की प्रवृत्ति होती है। यह औषधि इसमें उपयोगी है।

ब्रोमियम 3 — इसकी ग्रंथियां सूज जाती हैं, कठोर हो जाती हैं, किंतु उनमें पस नहीं पड़ता, किंतु ग्रंथि-शोथ में काटने वाला दर्द होता है। कंठमाला-ग्रस्त बच्चों पर इस औषधि का विशेष प्रभाव पड़ता है। कान की ग्रंथि को शोथ तथा गिल्लड़ में भी यह लाभप्रद है। इसकी ग्रंथियां सूज जाती हैं, कठोर हो जाती हैं, उनमें तथा अंडकोश के शोथ में भी इससे लाभ होता है। प्रायः सभी ग्रंथियों पर इस औषधि का प्रभाव है। स्तनों की ग्रंथियों में यदि अल्सर का प्रभाव दिखाई दे अथवा बगल की ग्रंथि कठोर पड़ जाए, तब भी इसे देना लाभकारी है। बच्चों के टांसिल में भी यह असरकारी है।

बेलाडोना 30 — यदि ग्रंथि के सूजने पर ऐसा लगे कि वह पक जाएगी। ग्रंथि चाहे बगल में हो, स्तन में हो, सूजकर लाल हो जाए, छूने से दुखे, टपकन हो, आक्रांत-स्थल गर्म हो जाए, तब यह औषधि देनी चाहिए। शरीर में कहीं भी ग्रंथि हों, इससे सूख जाती हैं। स्त्री-पुरुष और बच्चे सभी के लिए लाभकारी है।

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