खून की उल्टी होना [ Homeopathic Medicine For Hematemesis ]

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पाकस्थली से रक्त ऊपर की ओर उठकर वमन के रूप में मुंह से निकलता रहे, तो उसे रक्त-वमन या खून की उल्टी और अंग्रेजी में ‘हिमाटिमेसिस’ कहते है। यह रक्त कभी-कभी इतना अधिक मात्रा में निकलता है कि उससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। निम्न कारणों से रक्त-वमन हो सकता है :-

  1. पाकस्थली के भीतर घाव या कैंसर । पाकस्थली की शिरा (Vein), धमनी (Artery) कैपिलरी के रोग तथा रक्ताधिक्य ।
  2. पाकस्थली का नया प्रदाह इत्यादि, सिरोसिस ऑफ द लिवर (यकृत की क्षय-प्राप्ति), प्लीहा-रोग, यकृत की शिरा में रक्त का दबाव या उसकी किसी शाखा-प्रशाखा पर ट्युमर आदि का दबाव इत्यादि।
  3. फुसफुस या हृत्पिण्ड के किसी पुराने रोग में शरीर में नियमित रूप से रक्त-संचालन न होने से पाकस्थली की श्लैष्मिक झिल्ली में (म्यूकस-मेम्ब्रेन में) रक्त इकट्ठा होना।
  4. स्त्रियों का ऋतुस्राव और बवासीर के रोग में रक्तस्राव रुक जाना।
  5. टाइफॉयड-ज्वर, पीत-ज्वर, विपर्स (इरिसिपेलस), डिफ्थीरिया, चेचक, आरक्त-ज्वर (स्कार्लेट-फीवर) आदि के कारण रक्त का दूषित होना।

इसके अलावा और भी कई प्रकार के मुंह से रक्तस्राव हो सकते हैं, जैसे नाक से रक्तस्राव; हिमाप्टिसिस का रक्त निगल जाने से यह रक्त पाकस्थली में प्रवेश करता है और मुंह से निकलता है। इसोफेगस (अन्ननली) और डियोडिनम के भीतर ऐब्सेस (फोड़ा) हो, यदि वह फट जाए, तो उसका रक्त पाकस्थली में प्रवेश करता और मुंह से निकलता है।

स्तन से दूध पिलाने वाली स्त्री के स्तन के किसी रोग में रक्तस्राव हो और वह रक्त बच्चा पी जाए, तो वह उसकी पाकस्थली में चला जाता है और फिर वह उसके मुंह से निकलता है। महाधमनी या उसकी शाखा-प्रशाखाओं के भीतर कहीं अर्बुद हो जाता है, तो फटकर उसका रक्त पाकस्थली में जाता है और मुंह से निकलता है।

पाकस्थली के भीतर मामूली रक्तस्राव हो, तो बाहरी लक्षणों से एकाएक कुछ समझ में नहीं आता, क्योंकि वहां से वह मुंह की राह से न निकलकर मल के साथ निकल सकता है। पाकस्थली से यदि अधिक मात्रा में रक्त उठने या निकलने वाला हो, तो उसके पहले (रक्त निकलने के पहले) पाकस्थली के ऊपर बहुत भार मालूम होगा, जी मिचलाएगा और पेट के भीतर अग्नि की भांति गर्मी मालूम होगी, इत्यादि कितने ही लक्षण प्रकट होंगे।

इसमें मुंह का स्वाद मीठा हो जाता है और ऐसा मालूम होता है, जैसे गले के भीतर कोई चीज धक्का देकर ऊपर चढ़ रही है; गले में सुरसुरी होती है, उसके बाद ही बड़े जोर से वमन होता है। वमन में रक्त और कभी-कभी उसके साथ खायी हुई चीज, कभी थोड़ा-सा श्लेष्मा या थूक रहता है। रक्त जितना ही अधिक निकलता जाता है, रोगी का चेहरा उतना ही सफेद होता जाता है। कान से ‘भों-भों’ आवाज होती है, आंख से धुंधला-सा दिखाई देता है, शरीर ठंडा पड़ जाता है, नाड़ी कमजोर किंतु उसकी गति तीव्र हो जाती है।

निकले हुए रक्त का रंग कभी लाल तो कभी काला होता है, इसका कारण यह है कि पाकस्थली में रक्तस्राव होते ही जो रक्त निकलता है, वह लाल रंग का होता है, और जो बहुत समय तक पाकस्थली में रहकर निकलता है, उसका रंग चमकीला लाल नहीं रहता, वह कालापन लिए रहता है।

पाकस्थली के भीतर गैस्ट्रिक-जूस (पाकाशयिक-रस) के साथ मिल जाने से ही रक्त का इस तरह रंग बदल जाता है। निकला हुआ रक्त कुछ पतला, कुछ थक्का-शुदा और कड़ा रहता है, इसलिए कोई-कोई इसको “कॉफी-ग्राउंड-वॉमिट” यानी पिसी हुई कॉफी की तरह वमन कहते हैं। वास्तव में कभी-कभी या बहुधा वह ठीक काले रंग का व कॉफी के चूरे की तरह दिखाई भी देता है। हिमाटिमेसिस में बहुत बार रक्त मुंह के रास्ते नहीं निकलता, अथवा अधिक परिमाण में रक्तस्राव होता भी है, तो भी पाकस्थली के भीतर जमा रहता है। ऐसा होने पर पाकस्थली फूल उठती है, रोगी का मुंह और चेहरा सफेद या फीका हो जाता है, शरीर ठंडा पड़ जाता है, आक्षेप होता है; कभी-कभी ढूंढने पर भी नाड़ी नहीं मिलती। इस अवस्था में रोगी को मल अलकतरे की तरह काला दिखाई देगा।

ऊपर वर्णित नाक का रक्तस्राव निगल जाने से उक्त रक्त को पाकस्थली से मुंह की राह निकलना, इसोफेगस और डियोडिनम के भीतर ऐब्सेस होने से – ऐब्सेस फटकर उसका रक्त मुंह की राह से निकलना और पाकस्थली में छिद्र हो जाना, ऋतुस्राव बंद हो जाना – इत्यादि कारणों से यदि मुंह से रक्त निकलता है, तो यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि रक्त कहां से आ रहा है? इसलिए पाकस्थली से रक्त निकलने से जो प्रधान लक्षण रहेंगे, उसका निम्नलिखित उल्लेख किया गया है :-

  1. रक्त मुंह की राह से निकलता है, रक्त निकलने या रक्त का वमन होने के पहले मिचली हुआ करती है।
  2. रक्त का रंग – थोड़ी मात्रा में निकले, तो काला और अधिक मात्रा में निकले, तो चमकीला लाल होता है, रक्त के साथ फेन नही रहता, तरल रक्त के साथ थक्के (Clot) रहते हैं।
  3. रक्त के साथ खाई हुई चीजें मिली रहती हैं।
  4. मिचली तथा ऊपरी पेट में भार रहता है।
  5. रक्त में अम्ल (Acid Reaction) आ जाता है।
  6. मल प्रायः अलकतरे जैसा घोर काला होता है, थोड़ी मात्रा में रक्त का वमन होते-होते बहुत अधिक परिमाण में रक्त-वमन होता है।

इस रोग का बहुधा हिमाप्टिसिस और हिमॉफिला के साथ भ्रम हो जाता है –

हिमाप्टिसिस – फेफड़ों से रक्त निकलता है, तो खांसी के साथ निकलता है, खांसी आने के पहले गले में सुरसुरी-कुटकुटाहट होती है, रक्त का रंग चमकीला लाल होता है और उसके साथ फेन मिला रहता है; रक्त के साथ थूक और बलगम (कफ) आदि मिला रहता है; श्वास लेने में कष्ट होता है, सीने में दर्द रहता है; रक्त में क्षार रहता है; अधिक मात्रा में रक्त निकलना बंद हो जाने पर भी कई दिनों तक खांसी के साथ रक्त निकलता रहता है; फेफड़ों की परीक्षा करने पर राल्स (Rales) तथा अन्यान्य शब्द पाए जाते हैं।

हिमॉफिला – यह रोग वंशगत रूप से, जैसे पिता से कन्या को, कन्या से दोहते को, या माता से कन्या को और कन्या से दोहते को हुआ करता है। पिता से पुत्र को सीधा (Direct) नहीं होता, अर्थात यह स्त्रियों के भीतर से ही परिचालित होता है। पुरुषों के भीतर से परिचालित नहीं होता। जिनकी लम्बी गठन, गोरा रंग, पतली त्वचा, त्वचा के नीचे की शिराएं पूर्ण और मोटी होती हैं, ऐसे व्यक्तियों को ही यह रोग अधिक होता है।

हिमॉफिला के लक्षण – मामूली चोट लगने या जरा-सी कोई कील या कांटा गड़ जाने से, साधारण ऑपरेशन से, जैसे टीका लगाने, दांत उखड़वाने आदि से मारात्मक रक्तस्राव होता है। नवजात शिशुओं की नाभि से बहुत अधिक रक्तस्राव होना, नाक पर मुक्का लग जाने से बहुत अधिक रक्तस्राव होना या प्रसव के समय अधिक रक्तस्राव होना इत्यादि इसके लक्षण हैं। इसका रक्त सहज में बंद नहीं होता, रोगी क्रमशः रक्तशून्य हो जाता है और ऐसे में उसकी मृत्यु मोनो निश्चित होती है।

रक्त बहुत अधिक परिमाण में निकल जाने से एनीमिया के लक्षण प्रकट होते हैं। बहरहाल जो भी हो, हिमाटिमेसिस (रक्त-वमन) अधिक क्षेत्रों में आरोग्य हो जाता है; पर रोग का आक्रमण बार-बार हो, तो रोगी क्रमश; दुर्बल और रक्तशून्य होकर मर भी सकता है। पाकस्थली के कैंसर तथा यकृत, फेफड़े और हृत्पिण्ड का रोग जो हिमाटिमेसिस (रक्त-वमन) होता है, वह आरोग्य नहीं होता।

चिकित्सा और पथ्य – रोगी को सदा सुलाए रखें, उसे उठने न दें, चित्त होकर सोने को कहें, उसे विश्वास दिलाएं कि डरने की कोई बात नहीं है और वह दो-चार दिन में अच्छा हो जाएगा। रोगी के आस-पास किसी को भी किसी तरह का शोरगुल या अशांति मचाने न दें। उसके कमरे को हमेशा ठंडा रखें । बरफ इस रोग में बहुत अच्छा काम करती है। उसे बरफ का टुकड़ा चूसने को दें, इससे उसकी प्यास भी बुझेगी और रक्तस्राव भी रुकेगा। पाकस्थली पर आइस-बैग रखें। यदि बहुत अधिक मात्रा में रक्त निकलता हो और हार्टफेल होने का उपक्रम हो, तो रोगी को चित्त सुलाकर उसके सिर के नीचे से तकिया हटा दें, ऐसा करें जिससे उसका सिर नीचा रहे। यदि चारपाई या पलंग पर लेटा हो, तो उसके पांव की तरफ चारपाई या पलंग के पायों के नीचे एकेक ईट लगा दें। मुंह से रक्त का गिरना बंद हो जाने पर ही उसे ठंडे पेय पदार्थ दें। उसके अच्छी तरह स्वस्थ हो जाने पर अन्य पथ्य की व्यवस्था करें।

रक्त-वमन की होम्योपैथिक औषध निम्न हैं:-

हैमेमेलिस 6 (मूल-अर्क) – काले रक्त की उल्टी। शरीर में धमनी (Artery) का रक्त लाल होता है, शिरा (Vein) का रक्त नीला या काला होता है। इस औषधि में शिरा रक्त का (नीले-काले रक्त का) वमन होता है। वस्तुतः इस औषधि से शिराओं में रुधिर का संचय हो जाता है, इसलिए शिरा रुधिर-संचय में भी यह उपयोगी है। रुधिर (रक्त) का नीला या कालापन इसका लक्षण है।

इपिकाक 30 – रोग का एकाएक आक्रमण होना, रक्त का रंग काला, मुंह का स्वाद खट्टा, शरीर ठंडा, पेट में दबाव मालूम होना, बहुत अधिक प्यास, श्वास में दबाव-सा मालूम होना, कब्ज या रक्त के दस्त । वमन तो इसका मुख्य लक्षण है ही, नकसीर में भी यह उपयोगी है। फेफड़ों से रक्त आने का लक्षण भी इसमें है।

आर्निका 30, 200 – चोट लगना या बहुत अधिक परिश्रम करना यदि रोग का कारण हो और उसके साथ ही शरीर में बहुत दर्द हो, तो इस औषधि से लाभ होता है। यदि चोट लगने से रक्त-वमन हो, तो हर पंद्रहवें मिनट में दें।

क्रोटैलस 6 – यह सर्प का विष है। पेट से काले रक्त का वमन होना। ऐसा प्रायः पेट में फोड़ा या कैंसर होने से हुआ करता है। यदि सभी अंगों से रक्त जाने लगे, त्वचा के छिद्रों से भी रक्त जाए, ऐसा रक्त जमने का नाम न ले, तब इसकी उपयोगिता है।

क्रोक्स 30 – जब रक्त जमे, उसका तार बने, रंग काला हो, गाढ़ा हो, जहां से निकले वहां से तार बनकर लटके, वमन में भी ऐसा ही लक्षण हो, तब इसे व्यवहार में लाएं।

मिलेफोलियम 3 – रक्त-वमन में यह औषध उपयोगी है। अनेक प्रकार के रक्तस्राव में इसे दिया जाता है। इसका रक्त इपिकाक के रक्त की तरह चमकीला लाल होता है, जबकि हैमेमेलिस में काला होता है। आंतों से रक्त आ जाता है, बवासीर और नकसीर के चमकीले लाल रक्त के लिए भी यह औषधि उपयोगी है।

फास्फोरस 30 – कभी-कभी दांत आदि निकलवाने के बाद मुख से रक्त जारी हो जाता है, जो लगातार बना रहता है, जमता नहीं; रक्तस्राव में इस औषधि की बड़ी उपयोगिता है। नाक से नकसीर, मुंह से, मसूढों में से रक्त जाना, दाढ़-दांत निकालने पर रक्त बंद न होना, मल-त्याग के समय गुदा से रक्त जाना, बवासीर के मस्सों से रक्त, दो नासिकों के बीच थोड़ा-थोड़ा रक्त जाते रहना, मासिक रक्तस्राव के स्थान पर नाक से रक्त जाना आदि इसके लक्षण है।

एकोनाइट 6 – पाकस्थली के म्यूकस-मेम्ब्रेन में रक्ताधिक्य या प्रदाह, पाकस्थली में अत्यधिक दर्द, उसके साथ ही औंकाई, श्वास-कष्ट, बेचैनी, उद्वेग इत्यादि लक्षणों में इसे देना चाहिए।

आर्सेनिक 30 – चेहरा बदरंग, कानों में आवाज, बेहोशी का भाव, शरीर ठंडा पड़ जाना, ठंडा पसीना आना, हमेशा मिचली या औंकाई आना, डकारें आना, प्यास की अधिकता, पाकस्थली में जलन और साथ ही काले रंग का मल होना, श्वास लेने में कष्ट होना, नाड़ी सूत-सी पतली किंतु शीघ्रगामी, बेचैनी और वमन इत्यादि लक्षणों में इस औषध का प्रयोग होता है।

कार्बोवेज 6, 30 – रक्त जाने के कारण जल्दी-जल्दी बेहोशी आना, चेहरा मुर्दे जैसा हो जाना, शरीर ठंडा पड़ जाना, ठंडा पसीना आना, रोगी का लगातार पंखे से हवा करने को कहना, सविराम क्षीण नाड़ी, कभी-कभी नाड़ी का पता नहीं चलना।

चायना 30, 200 – बहुत अधिक रक्तस्राव के कारण कमजोरी, सारा शरीर ठंडा, पेट के ऊपरी भाग में स्पर्श न सहन होने वाला दर्द।।

इरिजिरन – (औषध-शक्ति रोगी को देखकर) बहुत अधिक मिचली और वमन का वेग, पेट में तीव्र जलन।

सिकेलि 6, 30 – रोगी का स्थिर होकर लेटे रहना, बहुत कमजोरी रहने पर भी किसी प्रकार का कष्ट मालूम न होना; मुंह, होंठ, जीभ, हाथ आदि मृत की तरह दिखाई देना; ठंडा पसीना, सूत-सी पतली नाडी, शरीर पर कपड़ा सहन न होना।

जिरेनियम मैकुलेटम Q – बहुत अधिक रक्तस्राव, किसी भी प्रकार से लाभ न होना। इसके मदर टिंक्चर की 10 से 30 बूंद तक की मात्रा, पानी के साथ 1-1 घंटे बाद देने से प्रायः रक्त बंद हो जाता है।

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