आंतों के रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Intestinal Disease ]

3,456

हम लोगों के पेट के भीतर छोटी और बड़ी दो तरह की आंते अर्थात नस-नाडियां हैं। छोटी आंत आमतौर से बीस फीट और बड़ी आंत पांच फीट लंबी होती है। मानव-शरीर-रचना के हिसाब से छोटी आंत तीन भागों में विभक्त होती है-

  • “डयूडेनम” (Duodenum) यह प्रायः पाकस्थली के मुंह से 10 इंच लंबी रहती है।
  • “जेजूनम” (Jejunum) यह नाभि के चारों ओर घिरी रहती है।
  • “इलियम” (Ileum) यह नाभि के नीचे से समूचे तलपेट में फैली हुई होती है। इसका अंतिम मुख उदर-गह्वर के दाहिने पुढे की जगह पर ऊपर की ओर बड़ी आंत से मिल जाता है। छोटी और बड़ी समूची आंत की लंबाई शरीर के परिमाण से पांच गुना लंबी होती हैं।

बड़ी आंत भी छोटी आंत की तरह कई भागों में विभक्त होती है। इसका पहला भाग है “सिकम” (Caecum-अंत्र पुट), प्रायः ढाई इंच लंबी व तीन इंच मोटी होती है। इसका नीचे की ओर मुंह बंद रहता है और ऊपर की ओर मुंह खुला रहता है, इसलिए इसका नाम “अंध-अंत्र” है। उदर-गह्वर के दाहिने पुट्टे की जगह पर इलियोसिकल-वैल्व के मुंह के नीचे यह अवस्थित है। इस सिकम (अंध-अंत्र) के शरीर से लगी हुई ठीक पीछे की ओर प्रायः तीन इंच लंबे केचुए की तरह एक और पतली नाड़ी होती है, इसका भी नीचे का मुंह बंद रहता है, ऊपर का मुंह खुला होता है। वह मुंह अंधांत्र और इलियोसिकल-वैल्व के मुंह से मिला रहता है, उसका नाम “अपेंडिक्स” (Vermiformappondix) है; अंध-अंत्र के साथ मिले रहने के कारण की उसे “अंध-अंत्र-पुच्छ” कहते हैं।

बड़ी आंत का दूसरा भाग “कोलन” (colon) है, यह देखने में इमरती की तरह होता है। यह चार भागों में विभक्त होता है। पहले भाग को “असैडिंग-कोलन” (Ascending colon) कहते हैं। यह सिकम से ऊपर की तरफ यकृत के निम्न प्रांत तक चढ़ी होती है। दूसरा भाग “ट्रांसवर्स-कोलन” (Transversecolon) कहलाती है। यह आड़े भाव से दाहिनी तरफ यकृत के निम्न-प्रांत से बाईं तरफ प्लीझ के निम्-प्रांत तक चली जाती है। तीसरे भाग को “डिसैंडिंग-कोलन” (Descending color) कहते हैं। यह प्लीहा के नीचे वाले भाग से तलपेट की तरफ उतर पड़ती है। चौथा भाग “रेक्टम” (Rectum) है। उक्त डिसेंडिंग कोलन के अंतिम भाग (अंश) का नाम “सिग्मॉयडफ्लेक्सर” (Sigmoid flexure) हैं। इस सिग्मॉयड़-फ्लेक्सर से गुह्यद्वार तक प्रायः आठ इंच लंबी जो नाड़ी गई है, उसी का नाम “रेक्टम” है। इसे हिन्दी में “सरलांत्रि” या “मलांत्र” कहते है। यह रेकम के अंतिम मुंह मलद्वार (Anus) के प्रायः एक इंच ऊपर स्थित है।

इलियम का अंतिम मुंह जहां वह कोलन (बड़ी आंत) के साथ मिला है, वहां जो एक दरवाजा है, उसका नाम “इलियोसिकैल-वैल्च” (Ilio-Caecal Valve) है। इस दरवाजे के मुंह में सिकम और अपेंडिस का खुला मुंह मिला है। यह दरवाजा इस कौशल से बनाया हुआ है कि छोटी आंत से सभी पदार्थ उसके भीतर से डिलैंडिंग कोलन में प्रवेश कर सकते हैं; पर बड़ी आंत की कोई भी चीज छोटी आंत में लौटकर नहीं आ सकती। बहरहाल जो भी हो, इन नस-नाड़ियों के जो रोग होते हैं, उनमें से कुछ के बारे में आगे बताया जा रहा है।

छोटी और बड़ी आंतें जहां मिलती हैं, उसी जगह पर प्राय; एक ही स्थान में ये तीन रोग-“टिफ्लाइटिस, पेरिटिफ्लाइटिस” व “अपेंडिसाइटिस” होते हैं, इसीलिए पीड़ितावस्था में परीक्षा करने पर, इन तीनों रोगों में असली रोग क्या है, उसका ठीक-ठीक चुनाव कर लेना बहुत कठिन है।

Comments are closed.