आंत्रावरोध का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Intestinal Obstruction, Bowel Obstruction ]

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यदि किसी कारण से आंतों के भीतर मल निकलने का मार्ग बंद हो जाता है, तो उसको “आंतों का अवरोध” (इंटेस्टाइनल ऑब्स्ट्रक्शन) कहते हैं। इस प्रकार का अवरोध कभी-कभी आंशिक किसी थोड़े से अंश में और कभी-कभी पूर्ण रूप से हो जाया करता है। यह कभी अकस्मात, कभी धीरे-धीरे और कभी बहुत दिन बाद भी होता है। यदि यह एकाएक रुक जाता है, तो उसको एक्यूट (नया) और यदि धीरे-धीरे होता है, तो उसको क्रॉनिक-इंटेस्टाइनल-ऑब्स्ट्रक्शन (पुराना अंत्रावरोध) कहते हैं। 14-15 वर्ष की आयु से लेकर 40 वर्ष की आयु के भीतर ही यह रोग अधिकतरे होते देखा जाता है। साधारणतः निम्न कारणों से ही आंतों का अवरोध होता है-

इंटस्ससेप्शन या इंवैजाइनेशन — आंतों में आंत घुस जाना-यह रोग 10वर्ष की आयु के छोटे बच्चों को ही अधिक होता है। इस रोग में आंत का कुछ अंश आंत के भीतर घुस जाता है, इससे मल निकलने में बाधा पड़ती है, आंतों का अवरोध होता है।

बॉल्युलस — आंतों में गिरह या वट पड़ना यहां आंतों में आंत सट जाने या वट पड़ जाने के कारण आंतें रुक जाती हैं।

स्ट्रिक्चर — संकोचन या संकरा पड़ जाना-यहां स्ट्रिक्चर शब्द का अर्थ हैआंतों में जख्म हो जाना, उसके आराम हो जाने के बाद, जिस स्थान में जख्म हुआ है, उस स्थान की आंत पतली पड़ जाना-इसी को स्ट्रिक्चर कहते हैं। रक्तामाशय में आंतों में जख्म, कैंसर, उपदंशग्रस्त व्यक्तियों की आंतों में जख्म, टियुबर्म्युलर जख्म इत्यादि में स्ट्रिक्चर होता है और संभवतः कोलन (बड़ी आंत) और रेक्टम (मलनाली) में स्ट्रिक्चर होने पर आंतें रुक जाती हैं। टाइफॉयड ज्चर में आंतों में जो जख्म हो जाता है, उससे शायद ही कभी स्ट्रिक्चर होता हो।

ट्यूमर (अर्बुद) — आंतों के पास की किसी जगह के यंत्र में अर्बुद (ट्यूमर) होने पर-— जैसे जरायु का अर्बुद, डिम्बकोष (ओवरी) का अर्बुद हो जाने से आंतों पर दबाव पड़ता है, उससे आंतों का आंशिक या समूची आंत का अवरोध हो जाता है। आंतों में पॉलिपस (एक प्रकार का वृत-विशिष्ट नुकीला अर्बुद जो नाक, कान, गला, जरायु और आंत में पैदा होता है) होने से भी आंतें रुक जाती हैं।

कभी-कभी आंतों में कड़ा पदार्थ इकट्ठा होने से भी आंतें रुक जाती हैं, जैसे बहुत कड़ा, गठीला मल, कृमि, वृद्ध और बच्चों की भयानक कब्जियत, जहां मल रुककर मलनाली का एकदम रोध हो जाया करता है-प्रायः उंगली से ये गांठे निकालनी पड़ती हैं; आंतों में पित-पथरी और जो चीजें हजम नहीं होतीं, उन्हें निगल जाने पर वे आंतों में रुक जाती हैं, जिससे आंतों का अवरोध होता है।

स्टैंगुलेशन — इसका दर्द हमेशा ही बना रहता है और बहुत कष्ट देता है। यह दर्द तलपेट या नाभि के स्थान पर होता है। पहले तो दबाने से दर्द घटता है, लेकिन बाद में बढ़ जाता है। रोग एकाएक आक्रमण करता है और नौजवानों को अधिक होता है।

इंटस्ससेप्शन — दर्द रुक-रुककर होता है, बीच-बीच में बंद हो जाता है, पर भयानक यंत्रणा होती है। इसमें रक्त मिला मल, पेट फूलना, कराहना; वमन प्रायः नहीं होता। यह रोग लड़कपन में होता है। रोग तीव्र गति से आक्रमण करता हैं।

वॉल्वुलस — दर्द की प्रकृति धीमी रहती है, कभी-कभी रुक-रुककर दर्द होता है, कभी नहीं भी होता। यह दर्द नाभि की जगह पर अथवा हृत्पिण्ड के ऊपर होता है। यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है।

नए अवरोध के तीन प्रधान लक्षण हैं-दर्द, वमन और कब्ज। यह रोग दो तरह से आक्रमण करता है कभी तो ऐसा देखने में आता है कि रोगी को पहले पेट में कुछ गड़बड़ी मालूम होती है, उसके बाद कब्ज हो जाता है और फिर क्रमशः दूसरे-दूसरे उपसर्ग बढ़ जाते हैं। कभी-कभी अकस्मात रोग का आक्रमण हो जाता है, एकाएक शूल की तरह पेट में दर्द उत्पन्न हो जाता है, जिससे रोगी बेचैन हो जाता है। यह दर्द चारों ओर फैल जाता है, वमन आरंभ हो जाता है और खूब जल्दी-जल्दी वमन होता है, उसमें मल की गंध रहती है, हिचकियां आने लगती हैं। यह लक्षण बहुत बुरा है। अवरुद्ध आंतों के भीतर जब तक मल रहता है, तब तक मल होता है, उसके खाली होते ही कब्जियत हो जाती है, यहां तक कि वायु निकलना भी बंद हो जाती है। यदि छोटी आंत का अवरोध हो, तो पेट कम फूलता है, जबकि बड़ी आंत के अवरोध में पेट खूब फूला रहता है। पेट के चारों और तनाव का दर्द बहुत ज्यादा होती है, हाथ भी नहीं लगाया जाता।

इसके अतिरिक्त आरंभ से ही उद्वेग, बेचैनी, चेहरा बदरंग, नाक की नोक ठंडी, सारे शरीर में लसदार ठंडा पसीना, जिह्वा सूखी और फटी-फटी, गले की आवाज बैठी, नाड़ी सूत की तरह पतली और तेज। रोगी को शीत आ जाता है, शॉक लगकर मृत्यु हो जाती है। पुराने अंत्रावरोध के रोगी का स्वास्थ्य क्रमशः भग्न होता जाता है। वह बहुत दुबला हो जाता है, शक्तिहीन हो जाता है, रक्तशून्य हो जाता है और यदि उपचार से आरोग्य नहीं होता, तो मृत्यु हो जाती है।

डॉ० वाइली का कहना है कि बड़ी आंत के नीचे वाले अंश में अवरोध होने पर पेट का आकार घोड़े की नाल की तरह और यंत्रपुट एंव कटपास्थि के निचले अंश का यदि ऑब्स्ट्रेशन हो जाए, तो पेट का आकार सीढ़ी की आकृति का होगा, क्षुद्रांत (छोटी आंत) का यदि अवरोध हो, तो बहुत जोरों का पेरिस्टैलिक-क्रिया (आंतों की कीटकार गति) रहेगी।

इस रोग में रोगी को केवल औषधि देकर निश्चित नहीं रहा जा सकता। औषध की क्रिया कितनी जल्दी या देर से होगी या औषध की क्रिया ठीक होगी ही, यह कहना बहुत कठिन है, इसलिए चाहे जिस उपाय से हो, यदि शीघ्र ही वह अवरोध दूर न किया जा सके, तो अपने ऊपर जिम्मेवारी ने लेकर रोगी को किसी सुदक्ष सर्जन के पास भेज देना चाहिए। इंटेस्टाइनल ऑब्स्ट्रक्शन की चिकित्सा बहुत जटिल कार्य है। आंत के किस स्थान पर यह ऑब्स्ट्रक्शन (अवरोध) हुआ है, उसका स्थान निर्णय करना बहुत कठिन है; इसलिए रोगी की सर्जरी भी कठिन है। इसमें 100 में 99 रोगियों की मृत्यु हो जाती है। होम्योपैथी में ओपियम, प्लम्बम, कोलोसिंथ, नक्सवोमिका, वेरेट्रम आदि दो-बार औषधियां व्यवहार करके देखी जा सकती हैं।

ओपियम 30 — पेट में बहुत-सा मल इकट्ठा रहता है, पर मल-त्याग करने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं होती; मल का, काला और गांठ-गांठ रहता है, देखने में छोटी गोल गेंद की तरह। इसमें मलद्वार बिल्कुल सुन्न-सा रहता है।

प्लम्बम 6, 30 — नाभि की जगह भयानक शूल का दर्द, मल-मलद्वार से न निकलकर मुंह से वमन होता है। उस वमन में मल की तेज गंध रहती है, मलद्वार मानो ऊपर खिंचा रहता है, इलियोसिकैल-प्रदेश फूला रहता है।

नक्सवोमिका 30 — पेट में मरोड़ और ऐंठन की तरह दर्द और लगातार मल-त्याग करने की इच्छा बनी रहती है, पर कोठा साफ नहीं होता, रोगी हर बार यही सोचता है कि थोड़ा मल और हो जाता, तो अच्छा होता।

कोलोसिंथ 30, 200 — पेट में मरोड़, ऐंठन का दर्द, भयानक शूल-वेदना की तरह दर्द और दर्द की धमक से रोगी कुबड़ा बना रहता है, दबाने से दर्द घटती है।

बेलाडोना 6, 30 — नाभि के पास अवरोध, तलपेट फूलना और वहां एक सख्त गोले की तरह अनुभव होना, भंयकर दर्द और कष्ट।

कूपम मेट 3, 6 — रोग के आक्रमण के साथ हिचकी, शूल का दर्द और मल का वमन्।

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