स्वरयंत्र का शोथ का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Laryngitis ]

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फैरिंग्स के बाद श्वास-प्रणालिका आरंभ होती है, जो फेफड़े में जाकर समाप्त हो जाती है। इस श्वास-प्रणालिका का ऊपरी भाग “स्वरयंत्र” (लैरिंग्स) कहलाता है। यदि किसी कारण से लैरिंग्स की भीतर वाली श्लैष्मिक-झिल्ली में प्रदाह हो जाता है, तो उसे “लैरिंजाइटिस” कहते हैं। ठंडी वायु, धूल, धुआं या किसी प्रकार की उत्तेजक गैस श्वासयंत्र से ग्रहण करना, अकस्मात ठंड लगना, बार-बार गाना या जोरदार भाषण देना, किसी गर्म पेय को पीना, गल-नली में बाहरी किसी चीज का अड़ जाना, पैरों को सदैव गीला रखना, गले या गरदन में सर्दी का लगना और गले के भीतर वाले किसी यंत्र की सूजन का फैलकर स्वरयंत्र तक जा पहुंचना आदि कारणों से इस रोग की उत्पत्ति होती है। नीचे दी गई औषधियां इसमें लाभ करती हैं।

फेरम फॉस 3x — डॉ. शुसलर के कथनानुसार लैरिंग्जाइटिस में यह बहुत उत्तम औषधि है। इस औषधि को ग्लिसरिन में मिलाकर गले के भीतर लगाने से लाभ होता है। लैरिंग्जाइटिस के रोग में पसीना होने पर बहुत से उपसर्ग घट जाते हैं, इसलिए फेरम फॉस के साथ कैलि सल्फ की यदि पर्याय-क्रम से व्यवस्था की जाए, तो अधिक लाभ होता है।

एकोनाइट 6 — रोग की प्रथम अवस्था में इसका प्रयोग करना चाहिए। एकोनाइट की तरह प्रदाह की प्रथम अवस्था में फेरम फॉस का व्यवहार होता है; लेकिन इसमें एकोनाइट का ज्वर, बेचैनी, उद्वेग आदि कुछ भी नहीं रहता। रोगी की आंखें और चेहरा लाल होता है, पसीना और प्यास भी रहंती है।

हिपर सल्फर 6, 30 — बहुत श्वास-कष्ट, गले में सर्दी घड़घड़ाती है, निगलने में कठिनाई होती है, मानो गले में कुछ अड़ा हुआ हो। निगलने के समय जो पीड़ा होती है, वह कान तक चली जाती है। सिर घुमाने पर गरदन में दर्द होता है, गला फंस जाता है, स्वर कर्कश रहता है, खांसी उठती है। रोगी सर्दी को बिल्कुल सहन नहीं कर पाता है।

बेलाडोना 6 — रोग की प्रथम अवस्था में जब एकोनाइट और फेरम फॉस से लाभ नहीं होता, तब इसका प्रयोग किया जाता है। स्वरयंत्र और गले में दर्द, निगलने में कष्ट, रोग वाली जगह लाल, मुंह सूखा, तेज खांसी के साथ गले में सुरसुराहट होती है।

एण्टिम टार्ट 6, 30 — स्वरयंत्र में पीड़ा होती है, स्वरयंत्र के पास से उठने वाली आवाज कंठनली तक फैल जाती है, खांसने से कफ नहीं निकलता है।

कैल्केरिया आयोड 30 — गल-नली में खींचन, दर्द, जलन, स्वरयंत्र में दर्द, लगातार खांसी, गला फंस जाना और खांसी आदि लक्षण होने पर इसकी मूल-विचूर्ण औषध 5 ग्रेन आधा गिलास पानी में घोलकर, उसकी 1 चम्मच मात्रा प्रति आधा घंटे के अंतर से प्रयोग करें।

इस्क्यूलस 3, 6 — स्वरयंत्र का सूखा रहना, उसमें जख्म-सा हो जाना, सुखी खांसी, खाना निगलने और श्वास लेने में कष्ट।

गुयेकम 30, 200 — लगातार सूखी खांसी, कफ निकालने के लिए गला खखारना, स्वरयंत्र में तेज जलन और उससे बाईं कंठास्थि तक खोंचा मारने की तरह दर्द में लाभदायक है।

एण्टिम क्रूड 30 — स्वरयंत्र और फैरिंग्स में अकड़न, गले का स्वर एकदम बंद; रोगी से बोला नहीं जाता, वक्ताओं, कवियों और गायकों का स्वरयंत्र-शोथ।

आर्सेनिक एल्बम 6, 30 — जल्दी-जल्दी खांसी और खांसी का दिन में अधिक रहना और रात में घट जाना, मिचली का रहना, बहुत कमजोरी, जख्म होने के बाद श्लेष्मा-पीब मिला कफ निकलनी, स्वरंयंत्र में जलन और दर्द, निगलने में कष्ट होना।

रियुमेक्स 3, 30 — स्वरयंत्र में दवाब देने पर खांसी का बढ़ना, रोगी को लगता है कि वह श्वास नहीं ले पाएगा। गला फंसता है और उसमें जलन के साथ दर्द भी होता है।

कोनियम 30 — स्वरयंत्र को स्पर्श करने पर दर्द होना, तंग करने वाली सूखी खांसी, रात में सोते समय खांसी का बढ़ जाना, स्वरयंत्र में सदैव ही इरिटेशन, रोगी का क्लांत होना।

फास्फोरस 30 — स्वरयंत्र में कुटकुटी होने के कारण रोगी को रात में बहुत खांसी उठती है, सर्दी अधिक मालूम होती है। बात करते समय स्वरयंत्र कुटकुटाता है, गल-नली मानो संकुचित हो जाती है।

एलियम सीपा 6, 30 — स्वरयंत्र में सुरसुराहट होती है, रोगी हमेशा गला खखारा करता है, आक्षेपिक कूप-खांसी; गले में मानो कुछ फंस गया है, इसी कारण खांसी का उठना, ऐसा प्रतीत होना मानो स्वरयंत्र फट जाएगा। अधिक खांसने से आंख से पानी निकल आता है।

पैरिस कोयाड्रिफोलिया 3, 6 — गले में जलन, हरे रंग का कफ निकलना, रोगी गली खखारता रहता है बिना दर्द का गला फंसना, बहुत बेचैनी।

कॉस्टिकम 30 — गायकों का स्वरयंत्र-शोथ, वह जोर लगाकर नहीं गा सकता, गला फंसना, गले में दर्द, सवेरे और शाम को उपसर्गों का बढ़ना।

नक्सवोमिका 30, 200 — लगातार खांसी का उठना, गले का फंसा होना, ज्वर, शीत, माथे में दर्द, स्वरयंत्र में तेज जलन का अनुभव।

ब्रोमियम 30 — रोगी साफ बात नहीं कर सकता, क्योंकि गले का स्वर बंद होता जाता है, गले के भीतर और स्वरयंत्र में दर्द, खांसी का आगमन, स्वरयंत्र और टेंटुए का शोथ; स्वरयंत्र में सर्दी बैठ जाने के कारण दम अटकने का सा भय।।

नैजा 200 — स्वरयंत्र और वक्षोस्थि के ऊपरी भाग में खींचने वाला दर्द, खांसने पर दर्द का बढ़ जाना, गला भी दर्द से आक्रांत, सूखी खांसी।

ऑरम ट्राइफाइलम 33, 30 — गला भीतर से फूल जाता है, टेंटुए में श्लेष्मा एकत्र होता है, गला फंस जाता है। गले में कांटा गड़ने की तरह का दर्द, स्वरयंत्र और फैरिंग्स में शोथ, उसमें निरंतर दर्द का रहना।

कैलि फॉस 6 — स्वरयंत्र का पक्षाघात, मलिन चेहरा, रोगी धीरे-धीरे बोलता है, रोग की बढ़ी हुई और अंतिमावस्था में बहुत कमजोरी महसूस होती है।

सैंगुनेरिया 30, 200 — स्वरयंत्र का फूल जाना, गाढ़ा कफ निकलता है, स्वरयंत्र में अर्बुद, श्वास छोड़ने की अपेक्षा श्वास लेने में कष्ट होना, गल-नली सूखी, दर्द भरी, सूजी हुई, लाल रंग की, तरुण रोग में लाभदायक है।

कैलि म्यूर 30 — खांसने पर लसदार सफेद रंग का कफ निकलना, श्वास में बदबू, स्वर-लोप, गला बैठ जाना।

ड्रोसेरा 6x, 30 — गला कुटकुट करता है और खांसी आने लगती है, बोलने पर स्वरयंत्र मानो संकुचित हो जाता है, हमेशा ऐसा लगना जैसे गले में कोई चीज फंसी है।

लैकेसिस 30 — लैरिंग्स में स्पर्श सहन न होने वाला दर्द, ऐसा लगना मानो गले में कोई ढेला अड़ा हुआ है, दम बंद हो जाने का उपक्रम होता है।

स्टैनम 30, 200 — स्वरयंत्र में जख्म अथवा स्वरयंत्र बिल्कुल ही ध्वस्त हो जाता है। गले में हमेशा ही उपदाह रहता है, आक्षेपिक खांसी आती है।

आर्सेनिक 30 — गले में शोथ के साथ ही देह की दूसरी-दूसरी जगहों पर शोथ का होना।

सेलिनियम 30, 200 — गरदन की गांठे फूल जाती हैं और ये गांठे कड़ी रहती हैं, लेकिन इनमें दर्द नहीं रहता। खांसी के साथ गाढ़ा कफ निकलता है, स्वरभंग का लक्षण प्रकट होता है।

एपिस 6, 30 — स्वरयंत्र बहुत फूलता है, कष्टदायक श्वास रोक देने वाली खांसी होती है, श्वास में बहुत कष्ट मुंह से लार निकलती है; सभी उपसर्ग सोने और गर्मी से बढ़ते हैं। केफ के निकल जाने पर कष्ट कुछ कम हो जाता है। बेलाडोना से लाभ न होने पर इसे देने की आवश्यकता पड़ती है।

अर्जेन्टम नाइट्रिकम 12, 30 — खांसी के साथ सफेद रंग का मांड की तरह को कफ निकलता है, उसमें किसी प्रकार की गंध या स्वाद नहीं रहता, बात करने पर खांसी बढ़ जाती है, ज्चर हो आता है, छाती और पेट पर पसीना खूब आता है।

एगरिकस 30 — श्वास-नली का उपदाह और निरंतर गले का कुटकुटाना, घूमने-फिरने पर ऐसा लगता है मानो श्वास रुक जाएगी, श्वास लेने के लिए रोगी स्थिर भाव में खड़ा रहता है, खांसी न आकर मुंह से कफ का थक्का निकलता है।

कैलि आयोड 30, 200 — स्वरयंत्र का उपदाह, सूखी खांस, गला कुटकुट करता है और उसमें जलन होती है। हरे रंग का साबुन के फेन की तरह कफ निकलता है, स्वरयंत्र फूला रहता है।

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