कुष्ठ या कोढ़ का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Leprosy ]

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बहुत समय पहले कुष्ठ को एक भयंकर और असाध्य रोग समझा जाता था। जनसाधारण में ऐसा अंधविश्वास भी व्यापक था कि कुष्ठ पाप करने के कारण होता है तथा परिवार में किसी एक को कुष्ठ रोग होने पर त्वचा के संपर्क से दूसरों को भी यह रोग हो सकता है। आयुर्वेद में तो अनेक प्रकार के कुष्ठ रोगों का वर्णन मिलता है। उनके अनुसार महा कुष्ठ सात तरह के और क्षुद्र कुष्ठ ग्यारह तरह के होते हैं। पहले समय में कुष्ठ को वंशानुगत रोग कहा जाता था, लेकिन अब परीक्षण से ज्ञात हुआ है कि यह वंशानुगत रोग नहीं है, किंतु रोग व्यक्ति के अधिक संपर्क में रहने से यह रोग दूसरे को भी हो जाता है। वास्तविकता यह है कि यह रोग एक प्रकार के जीवाणु से उत्पन्न होता है। यह जीवाणु त्वचा में प्रवेश करके कोढ़ पैदा कर देता है, इसलिए इसे संक्रामक रोग कहा जाता है।

हाइड्रोकोटाइल 6 — त्वचा बहुत मोटी हो जाती है और इसे मोटी त्वचा से छिछड़े झड़ते हैं, किंतु जख्म नहीं बनता। इस औषधि में त्वचा के लक्षण ही मुख्य हैं। कोढ़ की यह मुख्य औषधि है। यदि त्वचा मोटी, छाती, तलहत्थी और तलवों में बेहद खुजली हो, तो इसकी 8 शक्ति की 5 बूंद डिस्टिल्ड वाटर में डालकर सेवन कराएं।

गैफाइटिस 6, 30 — जब बिवाइयों में से या फटी त्वचा में से चिपचिपा स्राव निकले, तब यह उपयोगी है।

आर्स आयोडाइड 3x — जब कांटे जैसी चुभन हो और उंगलियां-अंगूठे झड़ जाएं, तब दें।

बेसीलीनम 200 — अन्य औषधियों के साथ रोगी को यह औषधि 15 दिन में एक बार देते रहना चाहिए। जब यह औषधि दी जाए, तब एक-दो दिन पहले और एक-दो दिन बाद दूसरी कोई औषधि नहीं देनी चाहिए।

ऑरम मेट 30, 200 — जब नाक से बदबूदार, सड़ांध वाला स्राव निकले, रोगी खिन्न-चित्त हो, आत्मघात करने को उद्यत हो।

सल्फर 30, 200 — बहुत दिन का अंतर देकर 1 मात्रा दें।

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