मानसिक रोग का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Mental Disorder ]

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मानसिक कष्ट किसी भी कारण से हो सकता है। रोग, शोक, भय, चिंता आदि भी इसके कारण हो सकते हैं। यहां जिन औषधियों का उल्लेख किया गया है, वे सब मानसिक कष्ट को दूर करने में सक्षम हैं।

ऐक्टिया रेसिमोसा 3, 30 — म्लान-चित्त, जीवन में अंधकार ही अंधकार दिखने लगे, दुख सालता रहे और यह सोचे कि अब परेशानी का मुकाबला कैसे होगा, आहें भरना।।

एकोनाइट 30 — यदि मृत्यु का भय सताने लगे, इसी कारण म्लान-चित्त रहे; सोने की कोशिश करने पर भी नींद न आए, तब उपयोगी है।

सीपिया 30, 200 — उपेक्षा-वृत्ति प्रबल हो जाए, परिवार के प्रति चित्त उदासीन हो जाए, किसी काम में चित्त न लगे। कोई सहानुभूति प्रदर्शित करे, तो रोना आ जाए, सब किसी से अलग एकांत में जा बैठे। माथे, नाक और गालों की हड्डियों पर पूरे रंग के दाग पड़ जाएं। पांव ठंडे और पसीजे हुए रहते हैं। इन लक्षणों में यह औषधि देनी चाहिए।

कैमोमिला 30 — मानसिक पीड़ा हो, दिल टूट जाए, अत्यंत हतोत्साहित हो जाए, अशांत-चित्त हो, मानसिक उत्तेजना में करवट बदले, पांव निश्चल रहें।

फास्फोरस 30 — यदि स्त्री रोगी हो, तो उसमें सीपिया की तरह उपेक्षा और उदासीनता तो पाई जाती है, किंतु वह सहानुभूति पसंद नहीं करती। कभी-कभी उसे दूसरों की चिंता सताती है। वह अकेली नहीं रह सकती, अंधेरे से डरती है। उसे चोरों का, भूत-प्रेतों का डर सताता है। उसे लगता है कि मकान के हर ओर से उसे कोई उसे ताक रहा है। यह औषधि लंबी, पतली, बड़ी-बड़ी भौहों वाली कोमल, सुंदर बालों वाली स्त्रियों के काम की है, ऐसी स्त्रियां जिन्हें खुलकर बहुत अधिक चमकीला, लाल रक्त का मासिक स्राव आता रहता है। उसे ठंडे पानी की प्यास रहती है। इन लक्षणों में फास्फोरस देनी चाहिए।

पल्सेटिला 6, 30 — रोगिणी सहानुभूति की भूखी होती है। उसका मूड बदलता रहता है, स्वभाव परिवर्तनशील होता है। वह ईष्र्यालु और संदेहशील होती है। रात को परेशान और बेचैन हो जाती है और बिस्तर से उठकर इधर-उधर टहलने लगती है। मृदु-स्वभाव की सहनशील स्त्रियों के लिए यह औषधि परम उपयोगी है।

इग्नेशिया 30, 200 — विरोधों से भरी हुई है यह औषधि। रोगिणी का मूड बड़ा विचित्र होता है, कभी अट्टाहास करती है, तो कभी रोती है, इस प्रकार के विरोधी मानसिक लक्षण एक-दूसरे के बाद आते-जाते रहते हैं। इस औषधि का स्नायु-संस्थान पर विशेष प्रभाव है; वह हानिकारक चीजों को खाने की शौकीन होती है, ज्वर की गर्मी चढ़ जाने पर प्यास नहीं लगती, दोषारोपण करने पर उसे क्रोध आ जाता है।

नैट्रम म्यूर 6, 30 — शोक, भय, क्रोध से जो रोग उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें तरुण रोगों में इग्नेशिया तथा जीर्ण रोगों में नैट्रम म्यूर उपयोगी है, इसलिए नैट्रम म्यूर को इग्नेशिया का क्रौनिक कहा जाता है। इस औषधि के लक्षण में रोगिणी दुख में सहानुभूति पसंद नहीं करती। सहानुभूति से वह और भी ज्यादा चिढ़ जाती है, क्रोधित हो जाती है, इसी कारण एकांत पसंद करती है, अकेली बैठी रोया करती है, चुप रहती है; ऐसे में यह औषधि देनी चाहिए।

ऑरम मेटैलिकम 30 — इस औषधि में चित्त अत्यंत म्लान हो जाता है, जीवन का केवल कृष्ण-पक्ष दिखलाई देता है, मृत्यु की चाह होती है, रोगी आत्मघात करने को तत्पर हो जाता है, परमात्मा से उठा लेने की विनती करता है।

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