नासार्बुद का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Nasal Polyps ]

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यह अर्बुद नाक के भीतर की श्लैष्मिक-झिल्ली से उत्पन्न होता है और एक प्रकार की गांठ का-सा होता है। यह गांठ एक से ज्यादा भी हो सकती हैं। रोगी जब बोलता है, तब ऐसा लगता है कि वह नाक से बात कर रहा है। वह नाक से श्वास न लेकर मुंह से श्वास लेता है और अपना मुंह खुला रखता है, नाक साफ करते हुए कभी-कभी अर्बुद नाक के सिरे पर सरक आता है, जिससे श्वास रुक जाती है। इससे नाक के बाहरी भाग की वृद्धि हो जाती है।

फास्फोरस 30 — यदि नासार्बुद को स्पर्श करने से रक्त बहने लगे, नासार्बुद होने पर नाक से हरा, पीला पस निकले, तब उपयोगी है।

कैल्केरिया फॉस 6x, 30 — यह नासार्बुद-रोग की अत्युत्तम औषधि है। इसे 6x या 30 शक्ति में देना चाहिए।

सोरिनम 200 — नाक और गले के भीतर मवाद गिरे और रोग क्रॉनिक (पुराना) हो जाए तथा रोगी शीत-प्रधान प्रकृति का हो, तब इससे लाभ होता है।

फार्मिका रुफा ix — नासार्बुद की यह सबसे उत्तम औषधि है। जब अति-वृष्टि (वर्षाकाल) में रोग के उपसर्ग बढ़ जाते हैं, तब इससे लाभ होता है।

थूजा 30 — इस औषधि का लगातार सेवन करने और इसके मूल-अर्क को सुबह-शाम अर्बुद पर लगाते रहने से शीघ्र लाभ होता है।

लेम्ना माइनर 1x, 3, 30 — कई होम्योपैथ चिकित्सकों के अनुसार इस औषधि को 1x में देने से बड़ा लाभ होता है। इसका प्रयोग अवश्य ही किया जाना चाहिए।

ट्युक्रियम मैरम 6 — यदि नाक में श्लैष्मिक-अर्बुद बन गया है, जिससे नाक में बड़े-बड़े छिछड़े-से बनते और उसमें से निकलते रहते हैं। बहुत जीर्ण जुकाम में इस औषधि का सर्वोच्च स्थान है। रोगी जिस करवट लेटता है, उधर का श्वास रुक जाता है। इन लक्षणों में यह उपयोगी है।

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