यक्ष्मा (क्षयरोग) के ज्वर का होम्योपैथिक दवा [ Homeopathic Medicine For Phthisis Fever ]

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यक्ष्मा (क्षयरोग) का ज्वर रात-दिन चौबीसों घंटों बना रहता है। सवेरे के समय ज्वर कुछ घटता है, पर तीसरे पहर फिर चढ़ जाता है। ज्वर चढ़ने से पहले रोगी के शरीर में पहले कुछ सिरहन-सी होती है, लेकिन कंपकंपी नहीं होती, तेज ज्वर के समय पसीना बहुत आता है, यों रात में ही ज्यादा पसीना आता है, खांसी भी खूब रहती है। इस रोग में फेफड़े आक्रांत हो जाते हैं। वैसे भी यक्ष्मा का मुख्य आक्रमण फेफड़ों पर होता है, यही ज्वर का कारण बनता है।

ब्रायोनिया 30 – हर समय ज्वर बना रहे और बहुत खांसी आए और गले से कफ भी निकले, तब इसे देना चाहिए।

ड्रोसेरा 6 – अत्यधिक खांसी और ज्वर रहने पर दें।

स्टैनम 30 – ज्वर से भी अधिक खांसी हो और कफ भी अधिक मात्रा में निकलता हो, तो यह औषध देनी चाहिए।

लाइकोपोडियम 30 – फेफड़ों के अधिकांश भागों का रोगग्रस्त हो जाना, तेज ज्वर और खांसी, कब्ज भी हो।

हिपर सल्फर 6 – तेज ज्वर, छाती में कफ की घड़घड़ाहट हो और खांसी भी खूब हो, तो रोगी को नित्य तीन मात्रा देनी चाहिए।

फास्फोरस 30 – क्षयरोग के आरंभ में यह औषधि उपयोगी है, किंतु जब रोग बढ़ जाए, तब इसे किसी भी शक्ति में रोगी को न देनी चाहिए।

साइलीशिया 30 – जब रोग की अवस्था बढ़ी हुई हो तथा ज्वर भी बहुत अधिक हो, तब इसे देना चाहिए।

कैलि कार्ब 200 – यह क्षय रोग की उत्कृष्ट औषधि है। इस औषधि के बिना रोगी का उपकार नहीं होता।

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