विचर्चिका (अपरस) (त्वचा पर खुजली होना) का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Psoriasis (Chronic Inflammatory skin-desease with scales) ]

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यह एक त्वचीय रोग है। इस रोग में त्वचा पर लाल और गोल चिह. पड़ जाते हैं, जिन पर सफेद और चमकदार छिछड़े से चिपके होते हैं। जब त्वचा से ये छिछड़े उतरते हैं, तो रक्त निकल आता है। फिर धीरे-धीरे ये चिह बड़े होते जाते हैं और शरीर के प्रायः सभी भागों में हो जाते हैं। यही विवर्चिका-रोग है। इसमें कभी-कभी खुजली और जलन भी हो जाती है।

आर्सेनिक ब्रोमाइड (मूल-अर्क) 3x — यह विवर्चिका-रोग की प्रधान औषधि है। इसकी 2 से 4 बूंद प्रति 6 घंटे देने से इस त्वचीय रोग का शमन हो जाता है।

सल्फर C.M. — बहुत से होम्योपैथ का कथन है कि विवर्चिका-रोग का उपचार इसकी उच्च-शक्ति से आरंभ करना चाहिए और इसे देते समय बीच में कोई अन्य औषधि नहीं देनी चाहिए और कम से कम इसे दो सप्ताह तक अवश्य दी जानी चाहिए।

हाइड्रोकोडाइले 6 — त्वचा का मोटा पड़ जाना, त्वचा का खुश्क होना, त्वचा पर से छिछड़े उतरना, शरीर पर गोल-गोल चिह्नों का होना, जिनके किनारे उभरे हुए हों। इन लक्षणों में यह औषधि उपयोगी है। यह कोढ़ और श्लीपद-रोग को भी दूर कर देती है।

आर्सेनिक 30 — रोगी को अधिक प्यास और बेचैनी हो। पानी में भीगने अथवा सर्दी-ठंड लगने से रोग की वृद्धि हो जाए, किंतु गरम सेक से राहत मिले। नए और पुराने दोनों प्रकार के रोग में यह लाभ करती है। इसे 30 शक्ति की मात्रा में प्रति 4 घंटे देने से ही शीघ्र लाभ हो जाता है।

पेट्रोलियम 30 — रोगी की त्वचा सूखी, सिकुड़ी, खुरदरी, फटी-फटी तथा अत्यंत असहिष्णु हो जाती है। उंगलियों की नोंक खुरदरी और खुश्क हो जाती हैं। शरद् ऋतु में त्वचा में दरारें पड़ जाती हैं। विवर्चिका की यह अत्युत्तम औषधि है।

रेडियम ब्रोम 30 — समूचे शरीर में खुजली मचती है, त्वचा में ऐसी जलन होती है मानों आग लग रही हो। इस औषधि का त्वचा पर विशेष प्रभाव है। इसे 30 शक्ति में प्रति 4 घंटे दें। स्त्री के जननांगों तथा गुदा की खुजली में भी यह औषधि उपयोगी सिद्ध होती है।

आर्सेनिक आयोडाइड 3x — त्वचा सूखी होती है। रोगी का रोग सेक से बढ़ता और ठंड से घटता है। बड़े-बड़े थक्कों के रूप में त्वचा की परतें उतरती हैं, जिनके नीचे वेदनाशील रक्तस्रावी स्थान होता है। विवर्चिका के इन लक्षणों में यह औषधि प्रयोग करनी चाहिए।

साइक्यूटा वाइरोसा 30, 200 — यह भी विवर्चिका रोग में अत्यंत लाभकारी है।

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