गलक्षत का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Quinsy and Sore Throat ]

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बहुत दिनों तक पुरानी सर्दी भोगने के कारण गले में घाव हो जाता है। कंठमाला-धातु के व्यक्तियों के गले में जख्म होता है और कभी-कभी उपदंश-ग्रस्त व्यक्तियों के गले में भी घाव हो जाता है। जिस प्रकार मुंह के जख्म को साफ कर दिया जाता है, उसी प्रकार इस तरह के जख्म को भी साफ करना आवश्यक है। रोगी को मांस-मछली, चिकने और चर्बी वाले पदार्थ और मदिरा व तंबाकू आदि से परहेज करना होगा, तभी लाभ हो सकता है।

कैलि बाईक्रोम 30, 200 — गहरा गोल जख्म, गर्मी का रोग ही जख्म का कारण हो; नाक की हड्डी तक पर रोग का आक्रमण हो जाए। नाक से सड़े हुए मल की तरह की बदबू निकले, तब इससे लाभ होता है।

कैलि हाइड्रो 6, 30 — उपदंश और पारद मिला (सिफिलिस और मर्करी) विष-दुष्ट जख्म होने पर प्रयोग करें।

एसिड नाइट्रिक 30 — सिफिलिस (उपदंश) का जख्म; पारे के अव्यवहार के बाद रोग का होना, पेशाब में बदबू रहने पर ही इस औषधि से उपकार होगा।

मर्क्युरियस सोल 200 — उपदंश की गौण-अवस्था (सेकेंडरी सिफिलिस), मुंह से निरंतर लार बहती रहती है और उसमें बहुत बुरी गंध निकलती है।

ऑरम मेटालिकम 30 — पारे के अव्यवहार की वजह से रोग हो जाए और गहरा जख्म हो, उसमें से सड़े पनीर की तरह बदबू निकले। जस नीचे की ओर बढ़कर क्रमशः हड्डी पर आक्रमण कर दे, तो इससे लाभ होता है।

बैप्टीशिया 30, 200 — गंदा और सड़ा जख्म, घाव और श्वास से गंदी बदबू निकलती है, इस पर भी दर्द नहीं रहता, तब यह औषधि प्रभाव डालती है।

हिपर सल्फर 6, 30 — पारे के अव्यवहार के कारण अथवा गर्मी के कारण इस रोगी की उत्पत्ति होने पर यह औषधि व्यवहार करनी चाहिए।

हाइड्रेस्टिस 30 — यह औषधि हर तरह के गले के रोग और जख्म में लाभ करती है।

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