मोह ज्वर का होम्योपैथिक इलाज [ Homeopathic Medicine For Typhus Fever ]

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यह ज्वर एकाएक आ जाता है, कितनी ही बार तो कंपकंपी होकर आता है और ज्वर का ताप क्रमशः बढ़ता-बढ़ता तीन दिनों में ही खूब ऊंचा चढ़ जाता है। इसमें पहले तेज सिरदर्द होता है, जी मिचलाता है, ऊँचा ताप, कभी ज्वर के साथ कंपकंपी, सारे शरीर में दर्द, कब्ज, आंख की पुतली सिकुड़ी, जिह्वा पर मैल की मोटी पर्त और जिह्वा फटी-फटी रहती है। रोगी दिनों दिन कमजोर होता जाता है, शरीर से मरे हुए चूहे की तरह गंध आती है; रोगी प्रलाप करता है, उसका चेहरा लाल हो जाता है और तमतमा उठता है, नाड़ी की गति पूर्ण और तेज रहती है।

शरीर का ताप पहले दिन प्राय: 102-103 डिग्री रहता है, फिर धीरे-धीरे बढ़कर चौथे दिन 105 से 106 डिग्री तक हो जाता है। इस प्रकार का ऊँचा ज्वर बारह-तेरह दिनों तक रहता है, केवल सवेरे के समय थोड़ा घटता है। ज्वर के साथ कोई दूसरा नया उपसर्ग – जैसे बहुत ताप, पेशाब रुका हुआ, ब्रांकाइटिस (वायुनली-भुज प्रदाह), ब्रांको-न्युमोनिया (फुसफुस प्रदाह), मेनिन्जाइटिस (मस्तिष्क-झिल्ली प्रदाह), जल्दी-जल्दी टाइफॉयड अवस्था प्राप्त होना, कर्णमूल-ग्रंथि फूलना, पाइमिया (पीब जनित) स्फोटक प्रभृति यदि न उत्पन्न हो जाए, तो प्राय: चौदह-पन्द्रह दिनों में एकाएक अधिक पसीना आकर ज्वर घट जाता है और ज्वर घटने पर थोड़े दिनों में ही रोगी स्वस्थ हो जाता है, अर्थात पहले के स्वास्थ्य से भी अच्छा स्वास्थ्य हो जाता है। यदि मृत्यु होती है, तो ऊपर कहे उपसर्गों के कारण अत्यन्त दुर्बल हो जाने और कभी-कभी हृदय-गति रुक जाने के कारण होती है।

प्राय: 25 से 35 वर्ष की आयु में पुरुषों को ही यह रोग अधिक होता है। मैले, बदबूदार, गंदे और भीड़-भाड़ वाले स्थान में रहने के कारण यह रोग होता है। रोग का आक्रमण एकाएक होता है। नाड़ी का स्पंदन द्विगुण नहीं होता। दस से तेरह दिनों के बीच में ज्वर खुद ही घट जाता है। फेफड़ों में कफ इकट्ठा होता है। आंखों की पुतलियां संकुचित रहती हैं। कब्ज रहता है, पांच-छह दिनों में घमौरियों की तरह फोड़े निकलते हैं। शरीर का ताप जिस तेजी से बढ़ता है, उसी तरह घट भी जाता है। यदि सावधानी न बरती जाए, तो इस रोग का आक्रमण दोबारा भी हो सकता है।

चिकित्सा और पथ्य – इस रोग में स्वच्छ खुली वायु और अधिक परिमाण में रोगी के लिए बहुत स्वच्छ वायु की आवश्यकता होती है, इसलिए ऐसा प्रबंध करना चाहिए, जिससे रोगी को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध वायु मिले। रोगी के शरीर को गुनगुने पानी में तौलिया भिगोकर साफ कर देना चाहिए। उसे बलकारक पेय देना चाहिए। इस बात के लिए भी सतर्क रहना पड़ेगा कि रोगी की आंखों में अधिक प्रकाश (रोशनी) न पड़े और रोगी के पास कोई ज्यादा शोर न मचाए। रोगी में शक्ति बनाए रखने के लिए दूध, मुर्गी के बच्चे का शोरबा, दूध के साथ मिश्री और अंडे का सफेद अंश पानी में मिलाकर थोड़ा-थोड़ा उसे पीने को दें।

ज्वर का उच्च ताप घटाने के लिए ऐसिटैनिलिडियम 3x और वेरेट्रम विरिड 3, 6 शक्ति और दूसरे लक्षणों के निमित्त टाइफॉयड ज्वर की औषधियां देखें। टाइफॉयड में लिखी सभी औषधियों की प्राय: इसमें आवश्यकता पड़ती है।

रस-टॉक्स 3, 30 – सहज-साध्य मोह-ज्वर में कोई विशेष उपसर्ग न रहने पर यह औषध देनी चाहिए।

आर्निका 6, 200 – गहरी बदहवासी, शरीर पर बैंगनी रंग की फुसियां निकलने पर इस औषध से लाभ होता है।

लैकेसिस 6, 200 – रक्त के खराब होने की अवस्था में यह औषध दी जा सकती है।

ऐगारिकस 3 – अधिक ताप, बहुत बेचैनी, पेशियों का सिकुड़ना और कांपना आदि लक्षणों में इस औषध से अवश्य ही लाभ होता है।

टेरिबिंथिना 30 – मूत्र-विकार के कारण उत्पन्न मोह-ज्वर में यह औषध देनी चाहिए।

हायोसायमस 30 – मस्तिष्क के उपसर्गों में यह औषध दी जाती है।

रोगरिकस 3 – पेशियों की सिकुड़न तथा कंपन एवं अत्यधिक बेचैनी के लक्षणों में दें।

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